NEW DELHI : 22 जनवरी को अयोध्या में बना रहे राम मंदिर का उद्घाटन है और इस अवसर पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शिरकत कर रहे हैं. इसी बीच सोशल मीडिया से लेकर आम लोगों के बीच में इस बात को लेकर बाद विवाद हो रहा है कि क्या धार्मिक अनुष्ठान में देश के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति को शामिल होना चाहिए या नहीं होना चाहिए. एक वर्ग का कहना है कि होना चाहिए तो दूसरे वर्ग का कहना है भारत धर्मनिरपेक्ष देश है इसीलिए नहीं होना चाहिए. कुछ लोगों का यह भी तर्क है कि जब सोमनाथ मंदिर का उद्घाटन हो रहा था तो देश के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद इसमें शामिल होने गए थे लेकिन देश के प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने साफ जाने से इनकार कर दिया था.
अयोध्या राम मंदिर शुभारंभ कार्यक्रम को लेकर कांग्रेस ने भी इस बार साफ ऐलान कर दिया कि मंदिर की प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठा में नियमों का पालन नहीं हो रहा है और सभी शंकराचार्य ने भी इस आयोजन का बहिष्कार किया है इसलिए हम भी इस समारोह में नहीं जाएंगे. कांग्रेस ने इस कार्यक्रम को आरएसएस और बीजेपी का निजी कार्यक्रम बताया है. कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, मलिकार्जुन खड़गे, अधीर रंजन चौधरी को अयोध्या आने का न्यौता दिया गया था।
तो आइए आज इस अवसर पर लिए हम आपको बताते हैं कि आखिर पंडित नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन समारोह में क्यों नहीं गए और आयोजन समिति को पत्र लिखकर उन्होंने क्या जवाब दिया था.
सोमनाथ मंदिर के निमंत्रण पर पंडित नेहरू का जाम साहब को लिखा पत्र
1- उन्होंने लिखा है कि जिस तरह की समस्याएं हैं अभी उसमें मंदिर उद्घाटन के लिए दिल्ली छोड़ना उचित नहीं समझते।
2 – उन्होंने स्पष्ट कहा कि कोई भी एक व्यक्ति के रूप में इसमें हिस्सेदारी कर सकता है, लेकिन सरकार के प्रतिनिधि के रूप में इसमें शामिल होना एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के चरित्र के अनुरूप नहीं है।
4- इसके पहले के पत्रों में उन्होंने बताया है कि किस तरह एक राजप्रमुख (कुछ समय तक पूर्व राजा राज्यपाल की भूमिका में रहे) विदेशी एम्बेसीज को अलग-अलग देशों से मिट्टी लाकर वहाँ चढ़ाने को कह रहे हैं जिससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या भारत सरकार एक मंदिर का उद्घाटन करवा रही है।