दर्द- पॉकेट में एक रूपया नहीं था, ट्रेन की बाथरूम का पीला पानी पीकर सूरत से बिहार आये मेरे बच्चे

New Delhi : कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन के बीच परेशान कामगारों का ट्रेन से घर लौटना भी दर्दनाक सिलसिला हो गया है। ज्यादातर कामगारों और श्रमिकों के हाथ में पैसे नहीं हैं कि वे रास्ते में पानी-खाना खरीद सकें। कहीं कहीं स्टेशन पर पानी और खाना मुहैया कराया जा रहा है, लेकिन वो इतना नहीं है कि मजदूरों का पेट भर सके। तो हो ये रहा है कि आधे और एक लीटर पानी के लिये दर्जनों मजदूर आपस में भिड़ जा रहे हैं। एक पैकेट खाने के लिये बवाल मच जा रहा है। खाने के सामान की लूटपाट की घटनायें आम होती जा रही हैं।

25 मई की सुबह करीब 8:05 बजे मध्‍य प्रदेश के इटारसी जंक्‍शन पर ऐसा ही नजारा दिखा। 1869 श्रमिक स्पेशल एक्सप्रेस के यात्रियों ने खाने के पैकेट के लिये छीनाझपटी शुरू कर दी। प्रवासी श्रमिकों को खाने की सामान को लेकर छीनाझपटी का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है। ट्रेन में सवार प्रवासी मजदूरों को देने के लिए स्टेशन के प्लेटफार्म पर एक ट्रॉली में ब्रेड के पैकेट रखे थे। पूरी ट्रेन के यात्री इस पर झपट पडे़। 24 मई को कानपुर में भी इसी तरह की वारदात हुई थी। ट्रेन अहमदाबाद से आ रही थी और बिहार जा रही थी।

इस बीच एक दिल दहला देनेवाला मामला भी सामने आया है। एक परिवार जो स्पेशल ट्रेन से सूरत से बिहार आ रहा था, ने पूरे रास्ते अपने बच्चों को प्यास बुझाने के लिये बाथरूम का गंदा पानी पिलाया। जेब में एक भी रुपया नहीं था कि वह पानी की बोतल खरीद सकें। पटना में दो पुलिस के जवानों को जब पीड़ा सुनाई तो उनका कलेजा पिघल गया। उन्होंने दानापुर स्टेशन पर न सिर्फ खाने पीने का सामान दिया बल्कि नगद रुपये भी दिये।

हिंदुस्तान न्यूज पेपर की एक रिपोर्ट के मुताबिक मोहम्मद सलाउद्दीन, उसकी पत्नी और तीन बच्चों की हालत इस सफर से खराब हो गई है। सूरत में दाने-दाने को मोहताज थे। ट्रेन चली तो वहां से निकल लिये। सूरत से लेकर पटना तक कोरोना काल में उन्हें दुश्वारियां ही मिली हैं। पहले तो सूरत में उन्होंने कई दिनों तक भूखे पेट रात बिताये। इसके बाद रही सही कसर ट्रेन ने दूर कर दी। सलाउद्दीन ने कहा- सूरत से ट्रेन चली तो बोगी में बहुत भीड़ थी। एक दम मारामारी की स्थिति थी। छोटे बच्चों को लेकर संक्रमण के इस काल में घर तक जाना बड़ी चुनौती थी। भीड़ के कारण डर लग रहा था कि बच्चे कैसे संक्रमण से बच पायेंगे। ट्रेन में भी न तो खाना की व्यवस्था थी और न ही पानी की।

सुपौल के रहने वाले मोहम्मद सलाउद्दीन सूरत में साड़ी की फैक्ट्री में काम करते हैं। गांव के ही दो चार और परिवार साथ में रहता है। साड़ी की कंपनी में काम करता है। होली की छुट्टी में वह सभी घर आये थे और फिर वापस काम पर सूरत चले गये। काम शुरु ही हुआ था कि लॉकडाउन हो गया और वह फंस गये। लॉकडाउन के दौरान पूरा पैसा खर्च हो गया। पैसा खर्च होने के बाद पूरा परिवार दाने-दाने को मोहताज हो गया।

सलाउद्दीन ने बताया – रास्ते में अगर पानी और खाने का सामान दिया जाता था तो वह छीनाझपटी में ही बर्बाद हो जाता था। अगर दस बोतल पानी आता था तो पचास लोग उसपर टूट पड़ते थे। ऐसे में पानी का कभी ढक्कन खुल जाता था तो कभी बोतल ही टूट जाती थी।

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