New Delhi : देश की आजादी के लिए सैकड़ों भारतीयों ने अपने आपको अग्रेजों से लड़ते हुए बलिदान कर दिया। देश को क्रूर अंग्रेजी शासन से आजादी दिलाने के लिए हर भारत वासी ने जो कुछ बन पड़ा वो किया। फिर वो चाहें पढ़ा लिखा वर्ग हो या अनपढ़, पुरुष हों या महिलाएं, अभिजात हों या दलित-आदिवासी। सभी ने अपने स्तर पर संघर्ष किया और अग्रेजी हुकूमत को टक्कर देने का प्रयास किया। अगर हम बात करें दलित-आदिवासी विद्रोह की तो अग्रेजों के खिलाफ सबसे पहले दलित आदिवासियों ने ही आवाज उठाई थी।
The earliest Indians to resist the British colonisarion were the tribes. Here is the story of the Santhal leader Tilka Manjhi, the forgotten First Freedom-fighter. https://t.co/phPknFpNRi pic.twitter.com/pij1pXxupJ
— BRP Bhaskar (@brpbhaskar) March 7, 2018
1857 का विद्रोह जिसे देश का पहला सशक्त विद्रोह माना जाता है उससे भी पहले सांथालों ने अपने अधिकारों के लिए विद्रोह किया लेकिन ये भी शुरूआती विद्रोह नही था। इससे भी पहले बिहार के सुल्तानगंज में 1778 में तिलका मांझी अंग्रेजों से लोहा ले चुके थे। दलित-आदिवासी इतिहासकारों और विचारकों का कहना है कि वीर तिलका मांझी के भारत के प्रति योगदान को नजरअंदाज किया गया है।
तिलका मांझी को भारत का पहला स्वतंत्रता सैनानी या प्रथम विद्रोही माना जाता है। उनका जन्म 1750 में बिहार के सु्ल्तानगंज संथाल परिवार में हुआ था। जिसे एक आदिवासी जाति माना जाता है। उनका मूल नाम जबरा पहाडिया था। उन्हें तिलका नाम अंग्रेजी सेना ने उनके और उनकी सेना के दमन के दौरान दिया था। वो जहां रहते थे वो आदिवासी बहुल क्षेत्र था जहां का अपना अलग रहन सहन था। जब अग्रेजों ने उनकी जमीनों और जंगलों पर मनमाने तरीके से कब्जा कर अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करना शुरू किया तो पूरे समुदाय की रोजी रोटी पर संकट आ गया। यही नहीं अग्रेजों ने वहां के जमीदारों से सांठ-गांठ कर संथाल और पहाड़िया जाति में फूट डलवा दी थी। अग्रेजों की इस नीति को तिलका बचपन से ही देख और भली भांति समझ रहे थे। जब वो किशोर हुए तो उन्होंने इसके खिलाफ आवाज बुलंद की और कई बार अग्रेजी सेना के सूबेदारों को सबक सिखाया।
Thought of paying a special tribute to the “First Freedom Fighter” of India ..LOKMANYA …
So drew a pencil sketch of his ..
Felt good taking back to one of my hobbies after years …#LokmanyaBalGangadharTilak pic.twitter.com/WVWO1aXjfi— Sambit Patra (@sambitswaraj) August 1, 2020
तिलका ठेठ आदिवासी वातावरण में पले बढ़े थे। उनका बचपन मवेशियों, पेड़- पहाड़ों और तीर कमान के बीच बीता। किशोर होते होते उन्होंने आदिवासी युद्ध कला में महारत हासिल कर ली। इसके बाद उन्होंने अग्रेजी सेना की क्रूर नीतियों के खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया। साथ ही उन्होंने दूसरे लोगों से भी जाति और समुदाय से ऊपर उठकर अंग्रेजी शासन के खिलाफ एकजुट होने का आह्वान किया। वो कई बार अग्रेजी खजानों को लूटकर गरीब आदिवासी जनता में बांट चुके थे। तिलका मांझी ने अपनी जाति समुदाय के लोगों को भूख से तड़पते और मरते हुए देखा था। ये सब देखकर उनका खून खौल उठता। धीरे धीरे उन्होंने समुदाय के हर य़ुवा को अपने साथ खड़ा करने लायक बना दिया।
Tilka Manjhi: India's First and Forgotten Freedom Fighter | @madrascourier | https://t.co/YK8KmHT74W
— Tribal Army (@TribalArmy) November 9, 2019
वो और उनकी तीर कमान को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने वाली सेना ने अग्रेजी सूबेदारों और छोटी टुकड़ियों को ललकारना शुरू कर दिया। तिलका का ये नेतृत्व अंग्रेजी सरकार की आंखों में पहली बार 1784 में खटका और तिलका को किसी भी हाल में गिरफ्तार करने की योजना बनाई गई। इसके लिए बड़ी सेना की टुकड़ी को तैयार कर अंग्रेजी कलेक्टर क्लीवलेंड को उन्हें गिरफ्तार करने को भेजा गया। ये हमला अंग्रेजी सेना ने अचानक और छिपकर किया जिसके बाद भी तिलका ने अपने तीर कमान के दम पर बंदूक धारी सेना का मुकाबला किया। इस लड़ाई में तिलका ने कलेक्टर क्लीव को अपने तीरों से मार गिराया। जिसके बाद तो अग्रेजी सरकार में खलबली मच गई ।
Tilka Manjhi was the first freedom fighter who fought against the British empire with bows and arrows, long
before Mangal Pandey took up arms against the empire. #क्रांतिकारी_तिलकामांझी #TilkaManjhi_Jayanti pic.twitter.com/LW3LB0kI0R— Social Crusader🚩 (@Xs2partner) February 11, 2020
हालांकि इसके कुछ दिनों बाद ही तिलका को गिरफ्तार कर लिया गया। जब उन्हें गिरफ्तार किया गया तो अंग्रेजी सेना उन्हें बुरी तरह घायल अवस्था में चार घोड़ो में बांधकर घसीटते हुए थाने लाई। उन्हें 13 जनवरी 1785 को भागलपुर में बीच चौराहे पर सबके सामने फांसी पर लटका दिया गया। भारत का ये वीर सपूत इसके बाद हमेशा के लिए अमर हो गया।