New Delhi : कोरोना आपदा के दौरान भारत सिर्फ अमेरिका ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिये देवदूत के रूप में सामने आया है। भारत ने अपना दिल ही नहीं बल्कि दवाइयों के भंडार भी खोल दिये। महाशक्ति अमेरिका हो, यूरोप या सार्क के सहयोगी भारत ने हर देश को अपने यहां उपलब्ध दवाई भेजी है। मकसद सिर्फ इतना ही है कि इस भयावह बवंडर से मानव समुदाय को बचाया जाए।
भारत ने HCQ टैबलेट देने के लिए 13 देशों की सूची बनाई है। फर्स्ट फेज में अमेरिका ने 48 लाख टेबलेट मांगी थी लेकिन अभी उसे 35.82 लाख टेबलेट दी जाएंगी। जर्मनी को भी 50 लाख हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन टैबलेट भेजी जाएगी। इस सूची के तहत पड़ोसी देश और सार्क सहयोगी बांग्लादेश को 20 लाख, नेपाल को 10 लाख, भूटान को दो लाख, श्रीलंका को 10 लाख, अफगानिस्तान को पांच लाख और मालदीव को 2 लाख टैबलेट की आपूर्ति की जाएगी। भारत अमेरिका, ब्राजील और जर्मनी को ऐक्टिव फर्मास्यूटिकल इंग्रिडेंट्स भेजेगा जिसका इस्तेमाल जरूरी मेडिसीन बनाने में किया जाता है। अमेरिका को 9 मीट्रीक टन एपीआई भेजी गई है। वहीं, जर्मनी को पहली खेप में 1.5 मीट्रिक टन एपीआई भेजी गई थी। ब्राजील को 0.50 मीट्रिक टन एपीआई की पहली खेप भेजी जानी है।
न्यूक्लियर हथियार से लेकर ट्रेड व्यापार तक भारत को आंख तरेरने वाले,एनएसजी की सदस्यता से लेकर सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता में अड़ंगा डालने वाले, भारत के आंतरिक मामले पर बेवजह हस्तक्षेप करने वाले देश आज भारत के समक्ष याचक की मुद्रा में खड़े हैं। भारत की ताकत का अंदाजा दुनिया के शक्तिशाली देशों से लेकर विकासशील व छोटे देशों को भी है, लेकिन भारत कभी उनकी जरूरत बन जाएगा इसका अंदाजा शायद ही उन्हें रहा होगा। इसकी वजह कोरोना मरीजों के इलाज में इस्तेमाल किए जाने वाली ऐंटी मलेरिया मेडिसीन हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और पैरासिटामॉल है जिसका भारत सबसे बड़ा उत्पादक है।
दुनिया कोरोना वायरस से लड़ाई लड़ रही थी तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने चुप्पी साध रखी थी। पिछले महीने सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता चीन कर रहा था और जब अस्थायी सदस्यों ने कोरोना पर चर्चा का प्रस्ताव पेश किया तो चीन ने यह कहकर ठुकरा दिया कि सुरक्षा परिषद जनस्वास्थ्य समस्याओं पर चर्चा का मंच नहीं। हालांकि, अध्यक्षता जाते ही सुरक्षा परिषद में COVID 19 के प्रभावों पर चर्चा कराई गई। इतना ही नहीं उसने जिस भी देश को मेडिकल सप्लाई भेजी, सभी में भारी खामियां पाई गईं और उन्हें लौटाने की नौबत आ गई।
चीन जहां बाधाएं पैदा करने में व्यस्त रहा, भारत दूरगामी दृष्टिकोण के साथ बड़े भाई की तरह पूरी दुनिया को एकजुट करने में लगा हुआ है। पीएम नरेंद्र मोदी ने पहले दक्षेस देशों की वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए बैठक बुलाई तो इसके बाद जी20 देशों को एकजुट करने में जुट गए और उनकी पहल पर बैठक भी हुई। कभी अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने HCQ मेडिसीन भेजने में असमर्थता जाहिर करने पर भारत पर आंखें तरेर ली थीं, और अब हालत यह है कि भारतीय पीएम दुनिया एकमात्र वर्ल्ड लीडर हैं जिन्हें राष्ट्रपति का कार्यालय ट्विटर पर फॉलो करता है।