New Delhi : ऋषिकेश के पास मणिकूट पर्वत पर नीलकंठ महादेव मंदिर स्थित है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान निकला विष शिव ने इसी स्थान पर पिया था। विष पीने के बाद उनका गला नीला पड़ गया, इसलिए उन्हें नीलकंठ कहा गया। ऋषिकेश को हिमालय का प्रवेशद्वार कहा जाता है। नीलकंठ महादेव उत्तर भारत के मुख्य शिवमंदिरों में से एक है। मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने जब विष ग्रहण किया था तो उसी समय पार्वती ने उनका गला दबाया, ताकि विष उनके पेट तक न पहुंच सके। इस तरह विष उनके गले में बना रहा। विषपान के बाद विष के प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया था।
सुप्रभात🌞
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मैं आरंभ हूँ, 🔅मैं ही अंत हूँ,
मैं जिवन हूँ, 🔅मैं मृत्यु भी हूँ,
निलकंठ हूँ, 🔅मैं ही नारायण हूँ,
मैं केवल देवनहीं,🔅मैं महादेव हूँ, pic.twitter.com/oIDJF88AD2— सुथार रसीकभाइ और कोकिलाबेन.गर्व से कहो हम हिंदू है (@rasiksuthar434) September 5, 2020
बैल रूपी शिव का मुख रुद्रनाथ में प्रकट हुआ। यहाँ भगवान शिव कि पूजा नीलकंठ महादेव के रूप में की जाती है। दूसरा आकर्षण नंदी कुंड है जो कि एक मनोहारी झील है और बर्फ से ढंकी चोटियों से घिरी हुई है। कथाओं के अनुसार भगवान शिव की सवारी नंदी बैल इसी झील में पानी पिया करते थे। pic.twitter.com/NRTbl49W37
— Jaya_Upadhyaya (@Jayalko1) September 6, 2020
गला नीला पड़ने के कारण ही भगवान शिव को नीलकंठ नाम से जाना गया। मंदिर के समीप पानी का झरना भी है, जहां श्रद्धालु मंदिर के दर्शन करने से पहले स्नान करते हैं। यह मंदिर वैसे तो ऋषिकेश शहर के निकट है, लेकिन पौड़ी जिले के यमकेश्वर ब्लॉक के अंतर्गत आता है। ऋषिकेश से नीलकंठ तक वाहन या पैदल दोनों तरीकों से पहुंचा जा सकता है। वाहन से जाने के लिए तीन सड़क मार्ग हैं। बैराज या ब्रह्मपुरी के रास्ते जाने पर 35 किमी दूरी पड़ती है।
सड़क का नजदीक रास्ता रामझूला टैक्सी स्टैंड से है। यह रास्ता 23 किमी का है। वहीं स्वर्गाश्रम रामझूला से पैदल रास्ता 11 किमी है। जबकि ऋषिकेश शहर से पैदल दूरी 15 किमी है। नीलकंठ महादेव मन्दिर जाने के लक्ष्मणझूला से टैक्सी मिलती है। निजी वाहन से भी यहां पहुंचा जा सकता है।