New Delhi : राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने तो भारत का स्वर्णिम इतिहास ही बदल दिया है। जिन पर हमें गर्व है उनका मजाक उड़ाया जा रहा है। राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड इस बार 10वीं कक्षा में नई किताब ‘राजस्थान का इतिहास और संस्कृति’ पढ़ा रहा है। इस किताब में बताया गया है कि महाराणा उदयसिंह ने बनवीर की जान ले ली। ई-बुक के अध्याय-1 में राजस्थान के प्रमुख राजपूत वंशों का परिचय है। पेज नंबर 11 पर छापा है- 1537 ई. में उदय सिंह का राज्याभिषेक हुआ। 1540 ई. में मावली के युद्ध में उदय सिंह ने मालदेव के सहयोग से बनवीर की जान लेकर मेवाड़ की पैतृक सत्ता प्राप्त की थी। 1559 में उदयपुर में नगर बसाकर राजधानी बनाया।
महापुरुष समूचे राष्ट्र का गौरव होते है , नयी पीढ़ी को सही इतिहास पढ़ाया जाना किसी देश की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है , पाठ्यक्रम में अपेक्षित सुधार करें । #Maharana_Pratap #महाराणाप्रताप pic.twitter.com/AevA2p2Nhr
— Arjun Singh Rathore (@Arjun_Singh_deh) June 23, 2020
यही नहीं, हल्दीघाटी के नामकरण के भी अजीब तथ्य और तर्क हैं। डॉ. महेंद्र भाणावत की किताब ‘अजूबा भारत का’ के हवाले से लिखा है – हल्दीघाटी नाम हल्दिया रंग की मिट्टी के कारण नहीं पड़ा। ऐसी मिट्टी यहां है भी कहां। लाल, पीली और काली मिट्टी है। हल्दी चढ़ी कई नव विवाहिताएं पुरुष वेश में इस युद्ध में लड़ीं। यही नहीं, हकीम खां सूर के सामने मुगल सेना का नेतृत्वकर्ता जगन्नाथ कच्छवाहा को बताया है, जबकि इतिहासकार कहते हैं कि मुगल सेना का नेतृत्व मानसिंह ने किया था। कच्छवाहा 1576 में लड़े इस युद्ध के आठ साल बाद पहली बार मेवाड़ आया था।
इतिहासकार प्रो. के.एस. गुप्ता बताते हैं – बनवीर की मृत्यु का कोई प्रमाणित कारण नहीं मिलता। ‘महाराणा उदयसिंह’ पुस्तक के लेखक नारायण लाल शर्मा कहते हैं – मावली युद्ध में बनवीर था ही नहीं। उदयसिंह के किले में प्रवेश करने पर दुर्गपाल चील मेहता ने उसे भगा दिया था। एमजी कॉलेज में इतिहास के प्रोफेसर और महाराणा प्रताप पर शोध कर चुके डॉ. चंद्रशेखर शर्मा के मुताबिक बनवीर की मृत्यु मेवाड़ में हुई ही नहीं थी।
वह भागकर महाराष्ट्र चला गया, जहां स्वाभाविक जान हुई। मावली युद्ध में बनवीर की सेना को हराने के बाद उदयसिंह ने सामंतों के साथ चित्तौड़ किले में प्रवेश किया था। बनवीर खिड़की से भाग गया। उदयसिंह का राज्याभिषेक 1537 नहीं, 1540 ई. में हुआ था। युद्ध के पहले से ही अरावली के इस दर्रे का नाम हल्दीघाटी था, क्योंकि यहां पर हल्दू के पेड़ बहुतायत में थे। हल्दू से गिरे फलों के कारण मिट्टी का रंग पीला हो गया था। इसलिए हल्दीघाटी नाम प्राचीन काल से ही प्रचलित रहा।
Maharana Pratap lacked control, says Raj e-textbook https://t.co/coitd1Cejm The textbook calls great Maharana “impatient, lacked in moderation and control”. Shame on the Rajasthan Govt.
— Raj Kumar Jha (@rajpadma) June 23, 2020
कक्षा 12 भारत का इतिहास में ‘मुस्लिम आक्रमण : उद्देश्य और प्रभाव’ में 101वें पन्ने पर हल्दीघाटी युद्ध में प्रताप की हार बताते हुये कारणों का उल्लेख है। इसमें प्रताप की रणनीति में पारम्परिक युद्ध तकनीक को पहला कारण बताते हुये 4 मुख्य कारण बताये हैं। लिखा है कि सेनानायक में प्रतिकूल परिस्थितियों में जिस धैर्य, संयम और योजना की आवश्यकता होनी चाहिये, प्रताप में उसका अभाव था।
इसके अलावा कक्षा 10 की सामाजिक विज्ञान की किताब में हल्दीघाटी युद्ध से जुड़े तथ्य और समीक्षा हटाना भी सवालों में है। बता दें कि आरपीएससी के पूर्व चेयरमैन प्रो. बी.एम. शर्मा कमेटी ने पाठ्यक्रम में बदलाव और नई पुस्तक जोड़ने पर काम किया है। 10वीं सामाजिक विज्ञान और 12वीं इतिहास में समीक्षा भी की है। उन्हीं के संयोजन में नई किताब भी लिखी गई है।
वैसे बोर्ड अध्यक्ष, डॉ. डी.पी. जारोली ने कहा- यह संशोधन समिति मेरे पदभार संभालने से पहले से ही काम कर रही थी। मैं खुद मेवाड़ से हूं। मेरी शिक्षा यहीं हुई। हमने बचपन से मेवाड़ के शौर्य और वीरता की गाथाएं पढ़ी हैं। फिलहाल बोर्ड परीक्षा में व्यस्त हूं। तथ्यों की फिर से समीक्षा कर गलतियों को सुधारा जायेगा।
Unnecessary & Outrageous altercations in the memories of our Brave warriors won't be accepted.@INCRajasthan Government is deliberately trying to portray that a Turk was great, but son of Soil Maharana Lacked courage?
People won't accept this.#Is_Congress_against_Maharana_Pratap pic.twitter.com/HS8eLxP1bv— History Of Rajputana (@KshatriyaItihas) June 23, 2020
शिक्षाविद के.एस. गुप्ता ने कहा- हल्दीघाटी युद्ध में प्रताप की जीत पर कोई संशय नहीं है। प्रताप हमारे स्वाभिमान के पर्याय हैं। पाठ्यक्रम को तोड़-मरोड़कर पेश करना बिल्कुल उचित नहीं है। वर्तमान सरकार के इन कृत्यों की भर्त्सना करता हूं। किताब को अगर इस ढंग से पेश किया गया है तो मेरा संयोजक बतौर नाम भी हटा दिया जाना चाहिये।