New Delhi : क्या कभी आपने सुना है कि किसी भगवान की प्रतिमा से पसीना आता है ? आश्चर्य जनक तो है लेकिन है सौ फ़ीसदीसत्य। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं जबलपुर के प्राचीन काली माता मंदिर की।
जरा सी गर्मी बढऩे पर यहां काली माता की मूर्ति से पसीना निकलने लगता है। भक्त इसे माता का चमत्कार मानते हैं। माता को गर्मी नहींलगे, इसलिए मंदिर में AC लगवा दिए गए हैं। जब–तब एसी बंद होने पर पसीने की बूंदें टपकने का क्रम आज भी बदस्तूर जारी है।
पसीने की सच्चाई को परखने के लिये भी कई बार AC बंद किया जाता है और जैसे ही AC बंद होता है माता की मूर्ति के चेहरे परपसीना दिखने लगता है। इसी क्रम में नवरात्र के प्रथम दिन सफाई के समय मंदिर के AC बंद कर दिए गए। AC बंद होने के कुछ देरबाद जैसे ही तापमान बढ़ा, माता की प्रतिमा के चेहरे पर पसीने जैसी बूंदें नजर आने लगीं। सफाई के बाद AC चालू करके देवी माता काश्रंगार किया गया।
मंदिर के पुजारी के अनुसार मंदिर में स्थापित प्रतिमा गोंड शासनकाल के आसपास की है। बुजुर्ग बताते हैं कि यह करीब 550 सालप्राचीन है। प्रतिमा की ऐतिहासिकता का अंदाजा भव्यता और नक्कासी को देखकर ही लगाया जा सकता है। मैहर के शारदा देवी मंदिरसे करीब मिलती–जुलती माता काली की प्रतिमा के दर्शन के लिए दूर–दूर से लोग आते हैं। नवरात्र पर यहां वैदिक अनुष्ठान होते हैं।मान्यता है कि यह प्रतिमा मंडला के आसपास की है। प्रतिमा को मदनमहल किले के समीप स्थापित करने की योजना थी। इसी क्रम मेंरानी दुर्गावती के शासनकाल में इसे बैलगाड़ी पर रखकर जबलपुर लाया जा रहा था। बैलगाड़ी जैसे ही सदर बाजार के समीप पहुंची, अचानक उसके पहिए जाम हो गए। बैलगाड़ी में काली माता के साथ शारदा माता की भी एक प्रतिमा थी। सुबह कुछ उपाय करने काविचार करके गाड़ी चालक ने दोनों प्रतिमाओं को उतारकर यहां वृक्ष के नीचे रख दिया।
सुबह होते ही गाड़ी चालक फिर पहुंचा। कुछ सहयोगी भी उसके साथ थे। उन्होंने शारदा माता व काली माता की प्रतिमा को उठाकर गाड़ीपर रखने का प्रयास किया। शारदा माता की प्रतिमा तो बैलगाड़ी पर आसानी से रख ली गई, लेकिन काली माता की प्रतिमा टस से मसतक नहीं हुई। अंतत: लोग केवल शारदा देवी की प्रतिमा को मदनमहल ले गए। वह आज भी यहां स्थापित है। बताया जाता है कि दूसरेदिन काफिले में शामिल एक बालिका को स्वप्न आया कि काली माता को यहीं स्थापित किया जाए, इस आधार पर लोगों ने कालीमाता की प्रतिमा को इसी स्थान पर यानी सदर में ही स्थापित कर दिया। उस समय से माता के पूजन का जो क्रम शुरू हुआ वह आज भीजारी है।
मंदिर के सामने स्थित प्रसाद व पूजन साम्रगी की दुकानें भी करीब दो सौ साल पुरानी हैं। इन दुकानों के संचालक बताते हैं कि विगत 5 पीढिय़ों से वे यह कारोबार कर रहे हैं। इस मंदिर में हर समय माता मौजूद मानी जाती हैं, इसलिए मंदिर के अंदर किसी को भी रात कोनहीं सोने दिया जाता। दिन में यहां मेले जैसा माहौल रहता है। मान्यता है कि मंदिर में श्रद्धा भाव से मांगी गई मनोकामना अवश्य पूरीहोती है।
देवी माता को पसीना क्यों आता है? उनके चेहरे व देह पर पानी की हल्की बूंदें कहां से आती हैं? इस राज को जानने के लिए खूब प्रयासकिए गए। स्थानीय लोग बताते हैं कि एक बार पुरातत्व विदों की टीम आई थी। पहले अनुमान लगाया गया कि प्रतिमा पर तैलीय लेप कीवजह से ऐसा होता होगा। इसे आजमाने के लिए प्रतिमा का जलाभिषेक करके उसे साफ किया गया, इसके बाद भी बूंदें निकलना बंदनहीं हुईं। भक्तों को एक ही उपाय सूझा… माता को पसीना नहीं निकले, इसके लिए उन्होंने मंदिर में एसी लगवा दिए। पसीने का रहस्यआज भी अनसुलझा है। भक्त इसको माता की ही महिमा मानते हैं। बताया गया है कि देश के कोने–कोने से लोग इस प्रतिमा के दर्शन केलिए आते हैं।