New Delhi : बिहार के क्वारैंटाइन सेंटरों का हाल बुरा है। ज्यादातर जगहों पर लोगों को नियमित भोजन नहीं मिल रहा है। हाल ही में कटिहार, पूर्णिया, दरभंगा जैसी जगहों से मीडिया रिपोर्टस आईं कि प्रवासी मजदूरों को नमक-चावल, नमक-पोहा जैसी चीजें खाने में दी जा रही हैं। इसमें अब अधिकांश जगह सुधार किया गया है लेकिन क्वारैंटाइन सेंटर में कुछ लोग ऐसे आ जाते हैं कि पूरी व्यवस्था ही ध्वस्त हो जा रही है। ऐसा ही एक नमूना है अनूप ओझा। इसके क्वारैंटाइन सेंटर के रसोइये और प्रबंधन अनूप के खाने-पीने से त्रस्त हैं क्योंकि अनूप एक टाइम में 40 रोटी और 10 से 20 प्लेट चावल खाते हैं।
बक्सर के इस क्वारैंटाइन सेंटर में तीन वक्त के खाने की व्यवस्था की गई है। रसोइया रोज सभी प्रवासियों के लिए खाना बनाता है। सभी पेट भर खाते हैं, लेकिन अनूप का पेट भरना आसान नहीं। 21 साल के अनूप ओझा राजस्थान से आने के बाद क्वारैंटाइन में हैं और बड़ा सवाल तो अब यह है कि क्या कोरोना ऐसे लोगों का भी कुछ बिगाड़ सकता है?
प्रवासियों को नास्ते में लिट्टी चोखा मिला। अनूप अकेले 85 लिट्टी खा गये। तब उनके इस हुनर से साथ रह रहे दूसरे प्रवासी और रसोइया वाकिफ हुये। अनूप ने बताया – 40 रोटी और 10-20 प्लेट चावल खाना उसके लिए आम बात है। ऐसी बात नहीं कि क्वारैंटाइन सेंटर में वह ज्यादा खा रहे हैं। आम दिनों में घर पर वह इतना ही खाना खाते हैं। उनके गांव के लोगों ने बताया कि एक बार वह 100 समोसा खा गये थे।
अनूप की कद काठी बेहद सामान्य है। वजन 70 किलोग्राम है। उनको चावल खिलाने में क्वारैंटाइन सेंटर के व्यवस्थापक को कोई परेशानी नहीं है, लेकिन रोटी बनाने में रसोइया का दम निकल जाता है। वह आम लोगों की तुलना में सिर्फ खाना अधिक नहीं खाते, काम भी खूब करते हैं। अनूप का दावा है कि वह अकेले 5-6 लोगों के बराबर काम करते हैं। अनूप की खुराक की बात सुन पिछले दिनों अंचलाधिकारी खुद मिलने पहुंचे। अनूप से बात करने के बाद अंचलाधिकारी ने क्वारैंटाइन सेंटर के व्यवस्थापक को आदेश दिया कि इनकी खुराक में कमी नहीं होनी चाहिये।