New Delhi : मानव समाज को अंधकार से प्रकाश की ओर लाने वाले भगवान महावीर का जन्म ईसा से 599 वर्ष पूर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में त्रयोदशी तिथि को लिच्छिवी वंश में हुआ था। इस बार महावीर जयंती 6 अप्रैल यानी आज है। महावीर स्वामी ने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत – अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) और ब्रह्मचर्य बताये।
महावीर जयंती के दिन प्रात: काल से ही उनके अनुयायियों में उत्सव नजर आने लगता है। जगह-जगह पर प्रभात फेरियां निकाली जाती हैं। बड़े पैमाने पर जुलूसों के साथ पालकियां निकाली जाती हैं, जिसके बाद स्वर्ण और रजत कलशों से महावीर स्वामी का अभिषेक किया जाता है। मंदिर की चोटियों पर ध्वजा चढ़ाई जाती है। दिनभर जैन धर्म के धार्मिक स्थलों पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस दिन भगवान महावीर की मूर्ति को विशेष स्नान भी करवाया जाता है।
महावीर स्वामी ने अपने उपदेशों से जनमानस को सही राह दिखाने का प्रयास किया। उन्होंने पांच महाव्रत, पांच अणुव्रत, पांच समिति और छह जरूरी नियमों का विस्तार से उल्लेख किया। जो जैन धर्म के प्रमुख आधार हुए। जिनमें सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को पंचशील कहा जाता है।
भगवान महावीर के अनुसार सत्य इस दुनिया में सबसे शक्तिशाली है, हर परिस्थिति में इंसान को सच बोलना चाहिए। वहीं उन्होंने खुद के समान ही दूसरों से प्रेम करने का संदेश दिया। उन्होंने संतुष्टि की भावना मनुष्य के लिए अति आवश्यक बताई। जबकि ब्रह्मचर्य का पालन मोक्ष प्रदान करने वाला बताया। उनका कहना था कि ये दुनिया नश्वर है चीजों के प्रति अत्यधिक मोह ही आपके दुखों का कारण है।
जैन धर्म को आकार देने का श्रेय महावीर स्वामी को जाता है। जैन धर्म को ये नाम भी महावीर स्वामी की ही देन है। अपनी कठोर तपस्या के बाद ऋजुपालि का नदी के तट पर उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। कठिन तपस्या के दौरान उन्होंने अपनी इन्द्रियों और परिस्थितियों पर अद्भुत नियंत्रण प्राप्त किया। इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने के कारण उन्हें जिन यानी विजेता कहा गया। इसके बाद महावीर स्वामी जिन कहलाए और उनके अनुयायियों को जैन कहा जाने लगा।
महावीर स्वामी का जन्म कुंडलग्राम में हुआ है। वे जन्म से क्षत्रिय थे और बचपन का नाम वर्धमान था। जातक कथाओं की मानें तो वे क्षत्रिय होने के कारण अति वीर थे और जब वे तपस्या में लीन थे तब उन पर जंगली जानवरों के कई हमले हुए और उन्होंने सहनशीलता और वीरता से सभी को परास्त किया। उनके इसी गुण के कारण उनका नाम महावीर स्वामी हुआ।
महावीर स्वामी जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान श्रीआदिनाथ की परंपरा में चौबीसवें तीर्थंकर माने गए हैं। महावीर स्वामी ने अहिंसा परमो धर्म सूत्र दिया। महावीर स्वामी के जीवन के कई ऐसे प्रसंग हैं, जिनमें सुख-शांति पाने के सूत्र बताए गए हैं।
चर्चित प्रसंग के अनुसार एक दिन किसी वन में महावीर स्वामी तप कर रहे थे। उसी वन में कुछ चरवाहे अपनी गाय और बकरियां चराने आए हुए थे। सभी चरवाहे अशिक्षित थे, वे तपस्या के बारे में कुछ भी जानते नहीं थे।
चरवाहों ने महावीर स्वामी को बैठे हुए देखा। वे नहीं जानते थे कि महावीर तप कर रहे हैं। चरवाहों ने महावीरजी के साथ मजाक करने लगे, लेकिन स्वामीजी अपने तप में मग्न थे, चरवाहों की बातों से उनका ध्यान नहीं टूटा।
कुछ ही समय में आसपास के गांव में ये बात फैल गई। गांव में कुछ विद्वान भी थे जो महावीर स्वामी को जानते थे। वे सभी तुरंत ही वन में उस जगह पहुंच गए, जहां महावीरजी तप कर रहे थे।
जब वहां लोगों की भीड़ हो गई तो स्वामीजी ने अपनी आंखें खोली।
गांव के विद्वान लोग चरवाहों की गलती पर माफी मांगने लगे। लोगों ने स्वामीजी के लिए वहां एक कमरा बनवाने की बात कही। जिससे की कोई उनकी साधना में बाधक न बन सके। भगवान महावीर ने सभी की बातें शांति से सुनी। उन्होंने कही का ये सभी चरवाहे भी मेरे अपने ही हैं। छोटे-छोटे बच्चे अपने माता-पिता का मुंह नोचते हैं, मारते हैं, इससे परेशान होकर माता-पिता बच्चों से नाराज नहीं होते हैं। मैं इन चरवाहों से नाराज नहीं हूं। आपको मेरे लिए कमरा बनवाने की जरूरत नहीं है। कृपया ये धन गरीबों के कल्याण में खर्च करें।