सनातन धर्म के अनुसार महादेव का ना ही कोई अंत है, ना ही कोई आरंभ। शिव का ना कोई रूप, ना कोई आकार माना गया है।देवों के देव महादेव शंकर भगवान से जुड़ी जो सबसे खास बात है वो यह है कि केवल शिव ही हैं जिन्हें मूर्ति और निराकार लिंग दोनों रूपों में पूजा जाता है। आज हम आपको शिवलिंग से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में बताएंगे।
देश भर में शिव के 12 ज्योर्तिंलिंग स्थापित हैं और इनकी पूजा की जाती है।मान्यता है कि शिवलिंग की पूजा समस्त ब्रह्मांड की पूजा के बराबर मानी जाती है, क्योंकि शिव ही समस्त जगत के मूल हैं। शिवलिंग के शाब्दिक अर्थ की बात की जाए तो शिव का अर्थ है परम कल्याणकारी और लिंग का अर्थ होता है ‘सृजन’। लिंग का अर्थ संस्कृत में चिंह या प्रतीक होता है। इस तरह शिवलिंग का अर्थ हुआ शिव का प्रतीक। भगवान शिव प्रतीक हैं, आत्मा के जिसके विलय के बाद इंसान परमब्रह्म को प्राप्त कर लेता है। शिवलिंग वातावरण सहित घूमती हुई पृथ्वी तथा समस्त अनंत ब्रह्माण्ड ( क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है ) की धुरी है। शिवलिंग का अर्थ अनंत भी है जिसका मतलब है कि इसका कोई अंत नहीं है न ही प्रारंभ है।
108 Shiv Mandir-Kalna,West Bengal. Also known as the Nav Kailasha temple, the temple was built in the year 1809 and is an architectural marvel.The temple structure is a combination of two concentric circles, each of which has small temples dedicated to Bhagwaan Shiv@sattology pic.twitter.com/1EI3sCiUUd
— Aditi Bansal (@proudlymessedup) July 6, 2020
वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार इसी शिवलिंग में मिल जाता है और फिर संसार इसी शिवलिंग से सृजन होता है। इसलिए विश्व की संपूर्ण ऊर्जा का प्रतीक शिवलिंग को माना गया है। लिंग शिव का ही निराकार रूप है। मूर्तिरूप में शिव की भगवान शंकर के रूप में पूजा होती है। शिवलिंग का इतिहास कई हजार वर्षों पुराना है। आदिकाल से शिव के लिंग की पूजा प्रचलित है।
पौराणिक कथा के अनुसार
भगवान शिव को महादेव भी कहा जाता है। इसका भी कारण है। जब समुद्र मंथन के समय सभी देवता अमृत के आकांक्षी थे, लेकिन भगवान शिव के हिस्से में भयंकर हलाहल विष आया और उन्होंने बड़ी सहजता से सारे संसार को समाप्त करने में सक्षम उस विष को अपने कण्ठ में धारण कर लिया और नीलकण्ठ कहलाए। समुद्र मंथन के समय निकला विष ग्रहण करने के कारण भगवान शिव के शरीर का दाह बढ़ गया। उस दाह के शमन के लिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हुई, जो आज भी चली आ रही है।