New Delhi : जम्मू में स्थित त्रिकूट पर्वत पर मां वैष्णो का निवास है। कहते हैं मां के दर्शन का सौभाग्य केवल उन्हीं को मिलता है जिन्हे मां का बुलावा आता है। वह लोग भाग्यशाली कहलाते हैं। मां वैष्णो देवी की महिमा कुछ ऐसी है। वैसे तो पूरे साल मां का दरबार भक्तों से भरा रहता है लेकिन नवरात्रि के समय यहां कुछ और ही नजारा देखने को मिलता है। नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है। कुछ समय के लिए मां के दर्शन कर पाना भी नामुमकिन सा लगने लग जाता है। कहते हैं कि नवरात्रि के पावन अवसर पर जो लोग मां वैष्णो देवी के मंदिर के दर्शन करते हैं उनकी हर मनोकामना पूरी होती है।
Shri Mata #Vaishno Devi Ji of 1972. When there was no Shrine Board. When not many people knew about it. This is historic footage…..
Jai Trikta Devi
Jai Mata Di@Rameshkumarias @VoiceofDogras @DAkkhar pic.twitter.com/g1hOJerJ20— Kachaloo (@kaladikulcha) September 10, 2020
Today's #railway #photo – the beautiful and spotless Vande Bharat express Train-18 rake standing at the Mata Vaishno Devi Katra railway station in #JammuAndKashmir with a beautiful cloudy sky in the background! Pic courtesy, Vaishali Seta! #IndianRailways #trains #photography pic.twitter.com/mX23t5jFFI
— Ananth Rupanagudi (@rananth) September 10, 2020
वैष्णो देवी के मंदिर में पिंडियों के रूप में देवी काली, देवी सरस्वती और देवी लक्ष्मी विराजमान हैं। आइए आपको बताते हैं कि त्रिकूट पर्वत पर पिंडी के रूप मे विराजमान मां की क्या है पौराणिक कथा। जम्मू-कश्मीर में स्थित मां वैष्णो देवी का मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। कहते हैं कि कटरा कस्बे से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हंसाली गांव में मां वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहते थे। वह नि:संतान होने से दुखी थे। एक दिन उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए कुंवारी कन्याओं को बुलाया। मां वैष्णो भी कन्या वेश में उन्हीं के बीच में बैठी हुई थीं।
पूजा होने के बाद अन्य सभी कन्याएं तो चली गईं पर मां वैष्णो देवी वहीं रुकी रहीं और श्रीधर से बोलीं- सबको अपने घर भंडारे का निमंत्रण दे आओ। श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आसपास के गांवों में भंडारे का संदेश पहुंचा दिया। गांव में संदेश देकर वहां से लौटकर आते समय गुरु गोरखनाथ और उनके शिष्य बाबा भैरवनाथ जी के साथ दूसरे शिष्यों को भी भोजन का निमंत्रण दिया। भोजन का निमंत्रण पाकर सभी गांव वासी हैरान थे कि वह कौन सी कन्या है जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना चाहती है?
सभी लोग भोजन के लिए एकत्रित हुए तब कन्या रूपी मां वैष्णो देवी ने एक विचित्र पात्र से सभी को भोजन परोसना शुरू किया। भोजन परोसते हुए जब वह कन्या भैरवनाथ के पास गई तो भैरवनाथ ने खीर पूरी की जगह, मांस और मदिरा मांगी। कन्या ने उन्हें खाना देने से मना कर दिया। हालांकि भैरवनाथ जिद्द पर अड़ा रहा। भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब मां ने उसके कपट को जान लिया। मां रूप बदलकर त्रिकूट पर्वत की ओर उड़ चली। भैरवनाथ से छिपकर इस दौरान माता ने एक गुफा में प्रवेश किया और नौ महीने तक तपस्या की। यह गुफा आज भी अर्धकुमारी या गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है। इस गुफा का उतना ही महत्व है जितना भवन का। 9 महीने बाद कन्या ने गुफा से बाहर देवी का रूप धारण किया।
#Jaimatadi ❤️ #Vaishnodevi #Katra #JammuKashmir pic.twitter.com/kvftXzNlqF
— अबनीत शर्मा 🇮🇳 (@abneetkumar7172) September 6, 2020
LIVE || Maa Vaishno Devi Aarti from Bhawan || माता वैष्णो देवी आरती || https://t.co/W7HxzdNIO8
— AJAY ARORA (@ar_ajayarora) September 6, 2020
माता ने भैरवनाथ को चेताया और वापस जाने को कहा लेकिन जब वो नहीं माना तो माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार किया। भैरवनाथ का सिर कटकर भवन से 8 किलोमीटर दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा। उस स्थान को भैरोनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। वहीं जिस स्थान पर मां वैष्णो देवी ने भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान भवन के नाम से प्रसिद्ध है।