New Delhi : कोरोना आपदा और लॉकडाउन भी क्या क्या दृश्य दिखा रही है। हर जगह इंसान अदम्य साहस के साथ एक नये चेहरे में नजर आता है। मुजफ्फरनगर में तैनात कांस्टेबल रिंकू भी इस अदम्य साहस का परिचायक बना है। उसने ऐसे लोगों को आईना दिखाया है जो इस संकटकाल में किसी न किसी बहाने से घर पर बैठे हैं, ताकि ड्यूटी न करना पड़े और बीमारी से सुरक्षित रहें। रिंकू अपने 3 साल के मासूम बेटे को खोने के बाद भी छुट्टियों में नहीं रहे और ड्यूटी पर लौट आये। उन्होंने कहा – अपने और परिवार के गम से ज्यादा मुझे राष्ट्र का गम सता रहा है। राष्ट्र सेवा ही सर्वोपरि है।
अपने मासूम बेटे को खोने का गम दिल में लिये और पत्नी को किसी तरह ढांढ़स बंधाते हुए चार दिन में ही ड्यूटी पर लौट आये। महामारी के दौर में ऐसे डॉक्टर भी सामने आये हैं, जिन्होंने घर परिवार सब त्यागकर मरीजों की सेवा की। बहरहाल लॉकडाउन के दौरान कांस्टेबल रिंकू कुमार के इकलौते बेटे हार्दिक की तबीयत अचानक खराब हो गई। छुट्टी लेकर वह ससुराल में मेरठ गए। वहां बीमार बेटे को निजी अस्पताल में भर्ती कराया, लेकिन 3 साल के बेटे ने 15 अप्रैल को दम तोड़ दिया। बेटे को खोने पर उन्हें और पत्नी रजनी पर गम का पहाड़ टूट पड़ा।
उन्होंने वैश्विक महामारी को इस सदमे से बड़ा बताते हुए बेटे की अंत्येष्टि ससुराल अब्दुल्लापुर मेरठ में ही कर दी। लॉकडाउन की वजह से वह हापुड़ जिले में स्थित अपने पैतृक गांव सदुल्लापुर भी नहीं जा पाये।
अंतिम संस्कार की क्रियाएं पूरी कराकर अपने गांव गये बिना ही ड्यूटी लौट आये। बकौल रिंकू उन्हें दुख की घड़ी में गमजदा पत्नी के साथ रहने की इमरजेंसी छुट्टी मिल जाती, लेकिन उन्हें घर के गम से ज्यादा राष्ट्र की थी जो कोरोना महामारी से जूझ रहा है। उन्होंने चार दिन बाद आकर पुलिस सेवाओं के प्रति फर्ज निभाया। उन्होंने राष्ट्रहित में पत्नी और एक साल की बेटी को ससुराल मेरठ छोड़कर थाने में ड्यूटी ज्वाइन कर ली।