कच्चा तेल रसातल में, – 283 रुपये बैरल हुए भाव, भारत को फायदा, महंगाई पर लगाम लगेगी

New Delhi : कोरोना आपदा और लॉकडाउन ने तेल व्यापार की कमर तोड़ दी है। बाजार में तेल की डिमांड न के बराबर है। ऐसे में कच्चे तेल की कीमतें रसातल में पहुंच गईं हैं। तेल की कीमतें निगेटिव में पहुंच गई हैं। अमेरिकी बेंचमार्क क्रूड वेस्ट टैक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) में कच्चे तेल की कीमतों में इतिहास की सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिली। डब्ल्यूटीआई का वायदा भाव सोमवार को माइनस 3.70 डॉलर (करीब 283 रुपए) प्रति बैरल के अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया। ऐसा कच्चे तेल की मांग में आई भारी कमी की वजह से हुआ। यह 34 साल के स्तर पर है। कोरोना की वजह से बाजार में मांग कम होने और अमेरिका में इसका भंडारण जरूरत से ज्यादा होने की वजह से यह स्थिति पैदा हुई है। मौजूदा समय में हालात यह हैं कि अमेरिका में अब कच्चे तेल के भंडारण के लिए जगह की कमी महसूस होने लगी है। ऐसे में कीमतों में और भी कमी आने की उम्मीद है।


सोमवार को डब्ल्यूटीआई के मई वितरण में भी 300% से ज्यादा की गिरावट देखी गई। 1986 के बाद यह पहली बार है, जब कच्चे तेल की कीमतों में इतनी गिरावट देखने को मिली। रिस्ताद एनर्जी के प्रमुख ब्योर्नार टोनहुगेन के मुताबिक, वैश्विक आपूर्ति की मांग में कमी की समस्या की वजह से तेल की कीमतों में वास्तविक तौर पर गिरावट आने लगी है।
भारत की निर्भरता ब्रेंट क्रूड की सप्लाई पर है, न कि WTI की। ब्रेंट का दाम अब भी 20 डॉलर के ऊपर बना हुआ है। गिरावट सिर्फ WTI के मई वायदा में दिखाई दी, जून वायदा अब भी 20 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर है। लिहाजा भारत पर अमेरिकी क्रूड के नेगेटिव होने का खास असर नहीं होगा। लेकिन कच्चे तेल के दाम से कैसे भारत पर असर पड़ता है यह जानना जरूरी है।
भारत कच्चे तेल का बड़ा इंपोर्टर है। खपत का 85 फीसदी हिस्सा आयात के जरिए पूरा किया जाता है। ऐसे में जब भी क्रूड सस्ता होता है तो भारत को फायदा होता है। तेल जब सस्ता होता है तो आयात में कमी नहीं पड़ती बल्कि भारत का बैलेंस ऑफ ट्रेड भी कम होता है। रुपये को फायदा होता है, डॉलर के मुकाबले उसमें मजबूती आती है और महंगाई भी काबू में आ जाती है। जाहिर है जब बाहर से सस्ता कच्चा तेल आएगा तो घरेलू बाजार में भी इसकी कीमतें कम रहेंगी।
जब कच्चे तेल के दाम गिरते हैं तो पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स के दाम में भी गिरावट दर्ज की जाती है। यानी पेट्रोल और डीजल सस्ते हो सकते हैं। कच्चे तेल के दाम में एक डॉलर की कमी का सीधा-सीधा मतलब है पेट्रोल जैसे प्रॉडक्ट्स के दाम में 50 पैसे की कमी। इसी तरह यदि क्रूड के दाम 1 डॉलर बढ़ते हैं तो पेट्रोल-डीजल के भाव में 50 पैसे की तेजी आना तय माना जाता है।

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