अनाथालय में रहकर मोहम्मद अली ने खुद बनाई अपनी तकदीर, बांस की टोकरियां बेंची…बन गए कलेक्टर

New Delhi: मोहम्मद अली शिहाब (Muhammad Ali Shihab) केरल (Kerala) के मलप्पुरम जिले के एडवान्नाप्पारा के रहने वाले हैं। शिहाब की घर की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि वह छोटी सी उम्र में ही अपने पिता के साथ पान और बांस की टोकरियां बेचने लगे। स्थिति तब और बिगर गई जब साल 1991 में एक लंबी बीमारी के कारण शिहाब के पिता की मौत हो गई। उस समय शिहाब घर की जिम्मेदारी उठाने लायक भी नहीं हुए थे।

अनाथालय में शिहाब को ना केवल पेट भरने को खाना मिला बल्कि वह रास्ता भी मिला, जिससे उनकी ज़िंदगी बदल गई। यहां उन्हें पढ़ने का मौका मिला। शिहाब पढ़ाई में बहुत अच्छे थे। शिहाब उस अनाथालय में 10 साल रहे। इस दौरान वह अपनी पढ़ाई से सबके चहेते बन गए। शिहाब के लिए अनाथालय किसी जन्नत से कम नहीं था। मोहम्मद अली शिहाब (Muhammad Ali Shihab) ने यहां रहते हुए यूपीएससी (UPSC) के अलावा विभिन्न सरकारी एजेंसियों द्वारा आयोजित 21 परीक्षाओं को पास करने में सफल रहे।

ज्यादातर लोग अपनी असफलता के लिए किस्मत को जिम्मेदार मान लेते हैं, तो वही कुछ लोग अपनी मेहनत और लगन से अपनी किस्मत को बदल लेते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी मोहम्मद अली शिहाब (Muhammad Ali Shihab) की है, जिन्होंने अपनी मेहनत से अपनी किस्मत लिखी।‌ उनका बचपन अनाथालय में बिता, गरीबी में बड़े हुए लेकिन वर्तमान में आईएएस (IAS) अधिकारी के पद पर देश की सेवा कर रहे हैं।

मोहम्मद अली शिहाब (Muhammad Ali Shihab) सिविल सर्विस की परीक्षा के पहले दो प्रयासों में असफल रहे थे लेकिन उनका इरादा पक्का था। साल 2011 में शिहाब अपने तीसरे प्रयास में 226वां रैंक के साथ यूपीएससी (UPSC) परीक्षा पास कर लिए। इंग्लिश में कमजोर होने के कारण शिहाब को इंटरव्यू के दौरान ट्रांसलेटर की ज़रूरत पड़ी थी, जिसमें उन्होंने 300 में से 201अंक प्राप्त किए। उसके बाद शिहाब नागालैंड के कोहिमा में नियुक्त हुए। एक गरीब पान बेचने वाला पिता और लाचार मां के बेटे ने अपने सपने को पूरा किया।

मोहम्मद अली शिहाब (Muhammad Ali Shihab) सिविल सर्विस की परीक्षा के पहले दो प्रयासों में असफल रहे थे लेकिन उनका इरादा पक्का था। साल 2011 में शिहाब अपने तीसरे प्रयास में 226वां रैंक के साथ यूपीएससी (UPSC) परीक्षा पास कर लिए। इंग्लिश में कमजोर होने के कारण शिहाब को इंटरव्यू के दौरान ट्रांसलेटर की ज़रूरत पड़ी थी, जिसमें उन्होंने 300 में से 201अंक प्राप्त किए। उसके बाद शिहाब नागालैंड के कोहिमा में नियुक्त हुए। एक गरीब पान बेचने वाला पिता और लाचार मां के बेटे ने अपने सपने को पूरा किया।

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