ये वादा रहा : जब ऋषि कपूर ने पूनम ढिल्लन से कहा था – मैं बनावटी नहीं हूं, बहुत ऑनेस्ट हूं

New Delhi : ऋषि कपूर क्या गये उनकी यादों का पिटारा ही खुल गया, ऐसा पिटारा जो खत्म ही नहीं हो रहा है। सबके पास बताने के लिये कुछ न कुछ किस्से हें। बेहद नायाब और सुनने लायक। किस्से सुनने के बाद मन में ऋषि कपूर के लिये सम्मान बढ़ जाता है। ऐसे ही कुछ किस्सों का पिटारा बॉलीवुड की बेहतरीन अदाकारा पूनम ढिल्लन के पास भी है। पूनम ढिल्लन ने ऋषि कपूर के साथ ‘ये वादा रहा’, ‘सितमगर’ और ‘एक चादर मैली सी’ जैसी कई बेहतरीन फिल्मों में काम किया।प्रोफेशनल रिलेशनशिप के अलावा भी पूनम और ऋषि अच्छे दोस्त थे।

पूनम बताती हैं – सुबह उठते ही जब ऋषि जी के जाने की खबर सुनी तो समझ ही नहीं आया क्या रियेक्ट करूं? किसी से क्या कहूं? शायद शॉक शब्द से ज्यादा महसूस कर रही थी। उनके साथ 8 से 9 फिल्में की और ना जाने हमारी कितनी यादें हैं। वो मेरे पसंदीदा एक्टर थे, मेरे फेवरेट को-स्टार थे, मैं उनकी बहुत बड़ी फैन थी। जिन्हे मैं एक्टिंग में अपना आइकन मानती थी वो हमसे दूर चले गए, इससे बड़ी दुःख की बात क्या हो सकती हैं? मुझे एक्टिंग बिलकुल नहीं आती थी, शूटिंग के दौरान ऋषिजी मेरी मदद करते थे। मैंने उनसे एक्टिंग सीखी थी। बहुत तकलीफ हो रही है ये सोचकर कि मैं अपने फेवरेट व्यक्ति को आखरी बार देख भी नहीं पाई। लॉकडाउन की वजह से एक आखरी गुडबाय कहने का मौका भी नहीं मिला, दिल बहुत भारी है।

वे बताती हैं – ऋषि जी अपने दिल में कोई बात दबा के नहीं रखते थे। उनके दिल में जो रहता वो उनके ज़ुबान तक आ ही जाता था। मैंने उनके साथ बहुत काम किया है। मैं जानती हूं कि वे दिखावा कभी नहीं करते थे। इस उम्र में भी उनका इतना सोशली एक्टिव रहना काफी अच्छा लगता था। मैं कई बार उनसे कहा करती थी – क्या-क्या लिखते है आप अपने ट्विटर अकाउंट पर? कुछ भी लिख देते हो। इस पर उनका बस एक ही जवाब आता था – मैं ऑनेस्ट हूं और मुझे अपना ऑनेस्ट ओपिनियन लोगों के सामने रखना अच्छा लगता हैं। ऋषि जी पहले से बनावटी नहीं थे, उनके जहन में जो बात आती थी वो कह देते थे। इंडस्ट्री में उनकी इस नेचर की लोग काफी सराहना करते हैं। अपने यंगर डेज से वे बेबाक रहे हैं और जैसे जैसे बूढ़े होते गए उन्हें और आजादी मिल गई। जब सोशल मीडिया नहीं हुआ करता था तब उनके आसपास वाले ही उनका ओपिनियन सुन पाते थे लेकिन अब सोशल मीडिया की वजह से उनका सरकास्टिक टोन और सेंस ऑफ ह्यूमर सभी तक पहुंच जाते थे। उन्होंने कहा – कुछ महीने पहले मुंबई के सेंत रेगिस होटल में हम एक कॉमन फ्रेंड की पार्टी में मिले थे। हमेशा की तरह खुश मिजाज थे, वैसे भी आप उनसे जब भी मिलेंगे वे खुश मिजाज ही नजर आते।

मैं उनसे जब भी मिलती हूं उनके साथ एक तस्वीर जरूर लेती और मैंने अपनी आखिरी तस्वीर उनके साथ उसी पार्टी में ली थी। मैं अक्सर अपनी ली हुई पिक्चर उन्हें भेजा भी करती थी जिसे देखकर वे भी बहुत खुश होते थे। उन्हें ज्यादा तस्वीर लेने का शौक नहीं लेकिन जब देखते तो काफी खुश होते थे। कई बार तो मज़ाक भी करते थे मुझसे कि मैं उनकी कितनी फोटोज लेती हूं। उन्हें डांटने की आदत भी थी लेकिन जिस अंदाज़ से वो डांटते थे उससे किसी को तकलीफ नहीं होती थी। एक अलग ही सेंस ऑफ ह्यूमर होता था।

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