NEW DELHI :इन दर्द भरे नग्मों के पीछे कोई और नहीं बल्कि हिंदी सिने जगत का वो नायाब सितारा था जो अपने सीने में ज़माने भर का दर्द समेटे बहुत कम समय में हमसे रुख्सत हो गया । फिल्म डायरेक्शन की बात हो या अभिनय या फिर प्रोडक्शन की बॉलीवुड में अपना सिक्का जमाने वाले इस महान एक्टर गुरुदत्त (Guru Dutt) का जन्म 9 जुलाई 1925 को बेंगलुरु में हुआ था। गुरुदत्त का असली नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था।
Remembering the immortal filmmaker & Actor #GuruDutt on his Birth Anniversary, His remarkable style of films #Pyaasa, #KaagazKePhool, #SahibBibiAurGhulam and #ChaudhvinKaChand #Baazi will go infinitely in history of Cinema. 🎥🎬🙏 pic.twitter.com/xZUpoAllqe
— Madhur Bhandarkar (@imbhandarkar) July 9, 2019
गुरुदत्त पढ़ाई में अच्छे थे लेकिन परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण वह कभी कॉलेज नहीं जा सके।बहुत कम ही लोग जानते हैं कि गुरुदत्त बंगाली नहीं थे। देश की तत्कालीन सांस्कृतिक राजधानी कोलकाता में पढाई करने के कारण वे धाराप्रवाह बंगाली बोलते थे। वैसे गुरु दत्त का मन स्कूल की किताबों में नहीं लगता था। बचपन में एक तस्वीर को देख गुरु दत्त इतने प्रभावित हुए कि नृत्य सीखने की इच्छा उन्हें नृत्य विश्वगुरु उदय शंकर के पास ले गई। एक समय था जब गुरूदत्तको फिल्मों में काम करने का मन नहीं था। वे कैमरा कभी भी फेस नहीं करना चाहते थे। उन्हें प्यासा जैसी फिल्मों में भी काम बड़े इत्तेफाक से ही मिला था। फिल्मों में काम करने के अलावा फ़िल्म निर्देशक विश्राम बेडेकर के साथ बतौर सहायक निर्देशक की तरह काम करते थे।निर्देशन में गुरु दत्त की रूचि वहीं से हुई।
Remembering #GuruDutt, the legendary filmmaker, on his 94th birth anniversary. (09/07)
A man ahead of his time, Guru Dutt is among the few artists who have made a mark in the history of Indian cinema.
What are your favorite films of his? pic.twitter.com/nUvuSvQZYy
— Bollywoodirect (@Bollywoodirect) July 8, 2019
बॉलीवुड में गुरूदत्त 1944 से 1964 तक सक्रिय रहे । इस दौरान उन्होंने सुहागन, भरोसा, चौदहवीं का चाँद, साहिब बीबी और ग़ुलाम, काला बाज़ार, कागज़ के फूल और मिस्टर एंड मिसेज़ 55 जैसी फिल्मों में काम किया।एक सर्वेक्षण के अनुसार उन्हें सिनेमा के 100 सालों में सबसे बेहतरीन निर्देशक माना गया। पत्रिका टाइम के अनुसार, गुरुदत्त के निर्देशन में बनी फिल्म ‘प्यासा’ दुनिया की 100 बेहतरीन फिल्मों में से एक है । सिनेमा की गहरी समझ के साथ-साथ वह समय से काफी आगे की सोच रखने वाले फिल्मकार थे। कागज के फूल में कैमरे के क्लोज अप शॉट्स का इस्तेमाल जिस तरह उन्होंने किया, वह आज भी कल्ट माना जाता है। एक शानदार शख्शियत के मालिक थे गुरुदत्त जिसके अन्दर हर पल कुछ नया करने की जितनी बेचैनी थी उससे कहीं ज्यादा एक खालीपन से भी था । पैसा ,शोहरत सब कुछ होने के बावजूद गुरुदत्त का दाम्पत्य जीवन सुखमय नहीं था । अपनी पत्नी गीता बाली के साथ उनके झगड़े का मुख्य वजह दोनों के अहम् का टकराव मन जाता है। कहा तो ये भी जाता है कि गुरुदत्त अपने फिल्म की लीड एक्टर वहीदा रहमान से भी एकतरफा प्यार कर बैठे थे जिसके वजह से भी दोनों में पति -पत्नी काफी झगड़े होते थे । ये सच है कि फिल्म” कागज़ के फूल “ने सफलता का इतिहास रचा था पर ये भी सच है कि इसी फिल्म से गुरुदत्त दीवालिया भी हुए थे । चारोंतरफ से निराश और हताश होकर इस महान अभिनेता ने 39 वर्ष की आयु में अपना जीवन खत्म कर लिया नींद की गोली का ओवरडोज़ और शराब के कारण गुरुदत्त ने अल्पायु में ही संसार को अलविदा कह दिया ।