New Delhi : अयोध्या में आगामी 5 अगस्त को राम मंदिर का शिलान्यास होने जा रहा है। इसके पीछे 500 साल के इंतजार और सैकड़ों रामभक्त और कार्यकर्ताओं का बलिदान और संघर्ष छिपा हुआ है। राम मंदिर निर्माण की कहानी रथ यात्रा या राम मंदिर आंदोलन से भी पहले की है। ये वो समय था जब कुछ गिने चुने लोगों ने राम मंदिर के अस्तिव की आवाज को उठाना शुरू किया। इन लोगों ने पूरे देश को राम मंदिर के इतिहास को बताकर देशवासियों में अयोध्या राम जन्म भूमि के प्रति आस्था जगाई। एक ऐसे ही जुझारू और सबसे पुराने कार्यकर्ता हैं परमहंस रामचंद्र दास। जब जब राम मंदिर निर्माण के संघर्ष की गाथा किसी को बताई जाती है उसमें रामचंद्र दास का नाम सबसे पहले लिया जाता है।
Mahant Paramhans Ramchandra Das along with Mahant Vrindavan Das and Baba Abiram Das at great personal risk put Ram Lalla idol at its rightful place, thus aiding Ram Lalla to be Virajman ( a sitting deity). #HeroesOfAyodhya pic.twitter.com/Wo3WX9PXiA
— प्रज्ञा मिश्र (@Sthit_Pragyam) August 1, 2020
कहानी शुरू होती है मुगल शासक बाबर से। मुग़ल शासक बाबर 1526 में भारत आया। 1528 तक वह अवध वर्तमान अयोध्या तक पहुँच गया। बाबर के सेनापति मीर बाकी ने 1528-29 में एक मस्जिद का निर्माण कराया था। हिंदुओं के पौराणिक इतिहास के अनुसार बाबर ने जहां मस्जिद बनाई थी वो पवित्र राम जन्म भूमि के रूप में पहचानी जाती है। जिस पर हिंदुओं का और कुछ इतिहास के साक्ष्यों का कहना है कि वहां पहले मंदिर बना हुआ था जिसे ध्वस्त कर बाबर ने मस्जिद बनवाई थी। जैसे ही मुगल शासन खत्म हुआ मंदिर के इतिहास और राम के प्रति लोगों की आस्था बढ़ने लगी।
लगभग 300 साल तक राम जन्मभूमि के लिए छिटपुट संघर्ष चलता रहा। लेकिन जब ये संघर्ष बीच बीच में हिंसक हुआ तो 1859 में अंग्रेज शासकों ने विवादित स्थल पर बाड़ लगा दी और परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिंदुओं को प्रार्थना करने की अनुमति दे दी। इसके बाद अंग्रेजी शासन में पहली बार 1885 में मामला कोर्ट में पहुंचा। लेकिन राम मंदिर के लिए बड़ी घटना 1949 में सामने आई जब हिंदू वैरागियों ने 24 नवंबर से मस्जिद के सामने क़ब्रिस्तान को साफ़ करके वहाँ यज्ञ और रामायण पाठ शुरू कर दिया जिसमें काफ़ी भीड़ जुटी। झगड़ा बढ़ता देखकर वहाँ एक पुलिस चौकी बनाकर सुरक्षा में अर्द्धसैनिक बल पीएसी लगा दी गई।
Advani, Joshi invited to Ayodhya Bhoomi Pujan: Ram Mandir Trust https://t.co/vUjO8FEnER pic.twitter.com/kuEzIqc6UF
— Newsd (@GetNewsd) August 2, 2020
पीएसी तैनात होने के बावजूद 22-23 दिसंबर 1949 की रात रामचंद्र दास और उनके साथियों ने दीवार फाँदकर राम-जानकी और लक्ष्मण की मूर्तियाँ वहां रख दी जिसे हिंदु राम जन्म भूमि मानते थे। इस घटना ने अयोध्या से दिल्ली तक को हिला दिया। लोग इस घटना को ये कहने लगे कि राम ने वहाँ स्वयं प्रकट होकर अपने जन्मस्थान पर वापस विराजमान हुए हैं। इस घटना ने पूरे देश को राम मंदिर निर्माण के लिए प्रेरित कर दिया।