New Delhi : पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सिर्फ अपनी खास भाषण शैली, कविताओं के साथ-साथ मनमोहक मुस्कान के लिये ही नहीं बल्कि कड़े फैसले लेने के लिए भी विख्यात हुये। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 1998 में उस समय देखने को मिला जब उन्होंने केंद्र की सत्ता संभालते ही एक ऐसा फैसला लिया जिसने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया और भारत न्यूक्लियर पॉवर बना दिया। वाजपेयी के इस सपने को पूर्ण रूप देने में पूर्व राष्ट्रपति और ‘मिसाइल मैन’ एपीजे अब्दुल कलाम ने खास भूमिका निभाई।
On 11th May 1998, India successfully tested Shakti-I nuclear missile at the Indian Army's Pokhran Test Range in Rajasthan, Feel proud of our scientist.#Pokhran#NationalTechnologyDay pic.twitter.com/6wUMKhtWeN
— Shivam Satija (@ShivamSSatija) May 11, 2020
11 मई 1998 – यही वो दिन था जब राजस्थान के पोखरण में एक के बाद एक तीन परमाणु बमों के सफल परीक्षण के साथ भारत न्यूक्लियर पॉवर बन गया। परमाणु परीक्षण का पूरा कार्यक्रम बेहद गोपनीय रखा गया। भारत ने परमाणु परीक्षण को सफल बनाने के लिए इंडियन आर्मी की मदद ली और आर्मी की 58 इंजीनियरिंग रेजीमेंट इस परीक्षण का हिस्सा बनी थी। केंद्र में वाजपेयी की सरकार बने सिर्फ तीन माह हुये थे और हर कोई इस बात को जानकर हैरान था कि सिर्फ तीन माह के अंदर अटल बिहारी वाजपेयी ने इतना बड़ा कदम उठा लिया।
परमाणु परीक्षण इसलिए भी आसान नहीं था क्योंकि भारत इस बात को जानता था कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए पाकिस्तान को समर्थन दे रही थी। ऐसे में अगर भारत की ओर से किये जा रहे परमाणु परीक्षण की जरा भी भनक अमेरिका या फिर सीआईए को लगी तो ऐसा करना संभव नहीं हो पायेगा। वहीं सीआईए को इस बात का अंदेशा हो गया था कि भारत सरकार साल 1974 के बाद एक बार फिर से परमाणु परीक्षण को अंजाम दे सकती है। ऐसे में भारत के परमाणु वैज्ञानिकों ने पूरे कार्यक्रम को बेहद गोपनीय रखा।
India’s quest for scientific inquiry, #technology & innovation has been eternal.
On May 11, two great leaders – Sh AB Vajpayee & Dr Abdul Kalam – escalated India’s pride to new heights by conducting #Pokhran tests.
This day, India also flew its 1st indigenous aircraft #Hansa-3. pic.twitter.com/LI6FnNnHYb— Dr Harsh Vardhan (@drharshvardhan) May 11, 2020
‘मिसाइलमैन’ एपीजे अब्दुल कलाम ने इस परमाणु कार्यक्रम को सफल बनाने में अहम योगदान दिया। अब्दुल कलाम उस समय डीआरडीओ के अध्यक्ष थे। इस दौरान उन्होंने कुछ ऐसा किया जिसके बिना यह परमाणु परीक्षण संभव नहीं था।
दरअसल एपीजे अब्दुल कलाम को उस समय एक छद्म नाम दिया गया और वह अब्दुल कलाम से कर्नल पृथ्वीराज बने।
वह कभी भी ग्रुप में टेस्ट वाली साइट पर नहीं जाते थे। वह हमेशा ही अकेले सफर करते ताकि किसी को भी उन पर शक न हो। आर्मी यूनिफॉर्म ने उनका काम आसान कर दिया। सीआईए जासूसों को लगा कि ये सभी आर्मी के ऑफिसर्स हैं और इनके परमाणु वैज्ञानिकों से कोई संबंध नहीं हैं।
एपीजे अब्दुल कलाम ने आर्मी के कर्नल गोपाल कौशिक के साथ मिलकर पूरी प्लानिंग को अंजाम दिया। 10 मई की रात को पूरा काम किया गया। इस पूरे ऑपरेशन को ऑपरेशन शक्ति नाम दिया गया था। इस दौरान कई कोड्स थे जैसे व्हाइट हाउस, ताज महल और कुंभकरण। डीआरडीओ, एमडीईआर और बार्क के वैज्ञानिक डिटोनेशन जैसे जरूरी काम में लगे हुये थे।
#May11 |→ On this day the test was successful in #Pokhran. "MISSION SHAKTI"
The most powerful day of Indian Science and Technology.
It's a day to remember Dr. A PJ Abdul Kalam and former Prime Minister Shri Atal Bihari Vajpayee#NationalTechnologyDay pic.twitter.com/hhr9n2tpot— Dhruvil Gajjar (@meggi_07) May 11, 2020
डीआरडीओ के हेड के तौर पर अब्दुल कलाम ने उस समय साफ कर दिया था कि वह आने वाले हफ्तों में कोई भी इंटरव्यू नहीं दे पायेंगे। सुबह तीन बजे परमाणु बमों को इंडियन आर्मी के चार ट्रकों के जरिये ट्रांसफर किया गया। इन ट्रकों को कर्नल उमंग कपूर कमांड कर रहे थे। इससे पहले इंडियन एयरफोर्स के एएन-32 एयरक्राफ्ट से मुंबई के छत्रपति शिवाजी इंटरनेशनल एयरपोर्ट से जैसलमेर बेस लाया गया था। जैसे ही भारत ने तीन परमाणु बमों को डेटोनेट किया और देश ही नहीं पूरी दुनिया इसे जानकर हैरान रह गई थी। हालांकि भारत के इस परीक्षण के बाद कई देशों ने प्रतिबंध लगाए थे, जिसमें अमेरिका, चीन, कनाडा और जापान सबसे आगे थे। वहीं रूस, यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस ने भारत के इस कदम की निंदा करने से इंकार कर दिया था।