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महिला टीचर के जज्बे को सलाम, बच्चों को पढ़ाने के लिए 2 नदियों को पार कर स्कूल पहुंचती हैं कर्मिला

New Delhi: नदी में कमर तक पानी रहता है तो पार करके स्कूल पहुंचती हूं, उससे ज्यादा हो तो नहीं आ पाती हूं। समस्या है। बच्चों के भविष्य को देखकर हर रोज स्कूल आती हूं। यहां सिर्फ 10 बच्चे पढ़ते हैं। छोटा सा गांव है। नदी पार करके ही स्कूल आना पड़ता है और दूसरा कोई रास्ता नहीं है। ये मामला छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले की है। जहां झींगों गांव की रहने वाली महिला टीचर कर्मिला टोप्पो 2 नदियों को पार कर स्कूल पहुंचती हैं। उनके इस जज्बे को देखकर अब जिला कलेक्टर ने उनकी तारीफ की है। जो अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए नदी को पार करके स्कूली बच्चों का भविष्य गढ़ रही हैं।

कर्मिला टोप्पो की पोस्टिंग वाड्रफनगर विकासखंड में गुरमुटी गांव के धौरपुर प्राथमिक स्कूल में है। जो कि नदियों और जंगलों के बीच में बसा हुआ एक आदिवासी मोहल्ला है। यहां पर प्राथमिक शाला का संचालन किया जाता है, लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए इरिया और मोरन दो बडी नदियों के संगम को पार करके जाना पड़ता है।

कर्मिला वाड्रफनगर से स्कूटी से आती है और फिर नदी से लगे हुए मढ़ना गांव में स्कूटी को खड़ा करके करीब तीन किलोमीटर तक पैदल अपने स्कूल धौरपुर पहुंचती है। लेकिन इस बीच में पड़ने वाली नदी भी कर्मिला के रास्ते को नहीं रोक पाती है और कमर तक पानी मे नदी को पार करके कर्मिला अपने स्कूल जाती है। जहां पर करीब 10 बच्चे प्राथमिक स्कूल में पढ़ने के लिए आते हैं और जोखिम भरे रास्ते को तय करके कर्मिला यहां तक पहुंचती है।

ग्राम पंचायत गुरमुटी का आश्रित ग्राम धौरपुर नदी के दूसरी ओर है। यहां तक पहुंचने नदी पर पुल बनाना भी आसान नहीं है। दो नदियों का संगम होने के कारण पाट की चौड़ाई काफी अधिक है। जंगली रास्ते पर यात्री वाहनों की आवाजाही भी नहीं होती। आसपास के दूसरे गांवों को जोड़ने की कोई व्यवस्था भी नहीं है। पुल निर्माण में करोड़ों की राशि खर्च होगी, उस अनुपात में इसका लाभ भी नहीं मिलेगा। ऐसे में छोटी सी बसाहट में रहने वाले लोगों को सुलभ आवागमन वाले क्षेत्र में लाकर बसाना ज्यादा सुविधाजनक होगा।

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