New Delhi : गरीबी क्या होता है ये एक गरीब ही बता सकता है। गरीबी के कारण बहुत से बच्चे अनपढ रह जाते हैं और सड़क पर सामान बेचते हैं लेकिन एक आदमी है जो ऐसा होने से रोक रहा है। उस इंसान का नाम है हरेकला हजब्बा। हरेकला हजब्बा कर्नाटक में मेंगलोर के रहने वाले हैं। हजब्बा यूं तो कहने के लिए अनपढ़ हैं, लेकिन समाज में ज्ञान का प्रकाश फैला रहे हैं। डेक्कन क्रॉनिकल में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 30 साल से संतरे बेचकर अपना गुजारा चलाने वाले हजब्बा ने पाई-पाई जोड़कर अपने गांव में गरीब बच्चों के लिए एक स्कूल का निर्माण करा दिया है। यही नहीं, अब वह एक कॉलेज बनाने का सपना पूरा करना चाहते हैं।
Harekala Hajabba has educated poor children in his village, Newpadupu, in Dakshin Kannada through meager earnings from selling oranges in Mangalore. He will be recognized with Padma Shri. #PeoplesPadma #PadmaAwards2020 pic.twitter.com/O6YV6lxP3Q
— MyGovIndia (@mygovindia) January 25, 2020
Padmashri Awardee Shri Harekala Hajabba was felicitated in the 39th ABVP state conference. Hajabba is a street fruit seller, he constructed a school in the village with an insight that no kids in his village should miss from obtaining an education.#39thABVPKarConf@ABVPVoice pic.twitter.com/AVijfzMXdu
— ABVP Karnataka (@ABVPKarnataka) February 11, 2020
हजब्बा मेंगलोर से करीब 25 किलोमीटर दूर हरेकला में नई पप्ड़ु गांव के रहने वाले हैं। वह स्थानीय लोगों के लिए किसी संत से कम नही हैं। यही वजह है कि उन्हें यहां अक्षरा सांता (अक्षरों के संत) के नाम से जाना जाता है। हजब्बा का जन्म एक बेहद गरीब परिवार में हुआ था। शुरू में उन्होंने बीड़ी बनाने का काम किया। पर कहते हैं कि हौसला इंसान की सबसे बड़ी ताक़त है। हजब्बा ने तब संतरा बेचना शुरू किया तो लगा कि जैसे उनके जीवन जीने का मकसद ही बदल गया। हजब्बा कहते हैं- मैं कभी स्कूल नहीं गया। बचपन में ही ग़रीबी ने मुझे संतरे बेचने के लिए मजबूर कर दिया। एक दिन मैं दो विदेशियों से मिला, जो कुछ संतरे खरीदना चाहते थे। उन्होंने मुझसे अंग्रेजी में संतरे की कीमत पूछी, लेकिन मैं उन लोगों से बातचीत करने में असमर्थ था। वह दोनो मुझे छोड़ कर चले गए। मैं इस घटना के बाद अपमानित महसूस कर रहा था और मुझे शर्म भी आ रही थी की सिर्फ़ भाषा की वजह से उन्हें जाना पड़ा।
हजब्बा नही चाहते थे कि कोई दूसरा भी इस अनुभव से गुजरे। इस वाकये के बाद उन्हें जीवन का मकसद मिल गया। उस दिन हजब्बा ने यह संकल्प लिया कि अपने गांव के ग़रीब बच्चों के लिए एक स्कूल का निर्माण करा कर रहेंगे। उनकी पत्नी मामूना अक्सर शिकायत करती थी कि उनके खुद के तीन बच्चे हैं, इसके बावजूद वह सारा पैसा दूसरों के लिए क्यों खर्च कर रहे हैं। लेकिन बाद में उन्होंने भी हजब्बा का सहयोग करना शुरू कर दिया।
#PeoplesPadma #HarekalaHajabba – Akshara Santa.
A fruit vendor who has devoted his life and and his entire earnings towards educating poor children in his village, Newpadupu, in Dakshin Kannada for over 20 years.#PadmaAwards @PMOIndia @MIB_India @mygovindia @CMofKarnataka pic.twitter.com/HaO6jtazOG— Mann Ki Baat Updates (@mannkibaat) January 27, 2020
This man changed lives in the Karnataka’s coastal town Mangaluru by imparting knowledge. Watch what earned #HarekalaHajabba #PadmaShriAward#PadmaAwards2020 https://t.co/8uj1Bz5X3C
— MyNation (@MyNation) February 2, 2020
#PadmaShri #TulsiGowda #HarekalaHajabba
ಇದು ಪದ್ಮಶ್ರೀ ಪಡೆದ ಕರುನಾಡಿನ ಎರಡು ಮುತ್ತಿನ ಕಥೆವೀಕ್ಷಿಸಿ, ಅಕ್ಷರ ಸಂತ ವೃಕ್ಷ ದೇವತೆ – ಟಿವಿ9 ವಿಶೇಷ ರಾತ್ರಿ 8.30ಕ್ಕೆ
Watch, TV9 Kannada Special at 8.30 PM (26-01-2020)#Promo #TV9Kannada #TV9Special #ಟಿವಿ9 pic.twitter.com/VFPpWIpaCg— TV9 Kannada (@tv9kannada) January 26, 2020
1999 में हजब्बा के सपने ने धीरे-धीरे पंख फैलाना शुरू कर दिया। उन्होने अपने गांव में एक मदरसे की शुरुआत की। जब यह स्कूल शुरू हुआ था तो सिर्फ़ 28 छात्र थे। हालांकि बाद में जब छात्रों की संख्या बढ़ने लगी, हजब्बा को लगा कि इस मदरसे को अब बेहतर स्कूल में तब्दील करना होगा। इसलिए वह खुद के जोड़े हुए एक-एक पाई उस स्कूल की इमारत और भविष्य की पीढ़ियों के लिए उचित शिक्षा के लिए जमा करने लगे।
2004 में हजब्बा ने स्कूल के लिए एक ज़मीन का टुकड़ा खरीदा, लेकिन इतना काफ़ी नही था। उन्हें यह महसूस होने लगा कि उन्होंने अभी तक जो भी पूंजी जमा की है, वह स्कूल के भवन के निर्माण के लिए काफ़ी नही है। तब विवश होकर हजब्बा ने उद्योगपतियों और नेताओं से मदद की गुहार लगाई। वह अपना अनुभव बताते हुए कहते हैंः एक बार में पैसों के लिए एक बहुत धनी आदमी के पास गया, लेकिन उसने मेरी मदद करने की बजाय मुझ पर अपने पालतू कुत्ते छोड़ दिए। धीरे-धीरे उन्होंने इतने पैसे इकट्ठा कर लिए, जिसकी बदौलत ज़मीन पर एक छोटे से प्राथमिक विद्यालय का निर्माण किया जा सके।
फिर एक कन्नड़ अखबार ‘होसा दिगणठा’ ने हजब्बा की कहानी प्रकाशित की। जल्द ही उसके बाद, सीएनएन आईबीएन ने हजब्बा को ‘अपने असली हीरो’ पुरस्कार के लिए नामित किया और स्कूल के निर्माण के लिए 5 लाख रुपए नगद पुरस्कार प्रदान किया।
#HarekalaHajabba #ornage #seller #PadmaShri #mangalore #Dakshinakannada #Karnataka #education pic.twitter.com/6r0yopYpGg
— Dr.A.Prabaharan (@DrAPrabaharan) February 1, 2020
Village Ki Chhori ||
जाने क्यों इस संतरे वाले को मिला सरकार से Padma Shri#PadmaAwards2020 #PadmaShri #HarekalaHajabba@mahima_1212 की रिपोर्ट pic.twitter.com/QRIdYwE2ym
— MyNation (@MyNation) February 2, 2020
जल्द ही हर तरफ से मदद आने लगी। स्कूल को मान्यता भी मिल गई। आज यह स्कूल गांव के 1.5 एकड़ जमीन पर तैयार है। साथ ही यह प्राथमिक स्कूल अब माध्यमिक स्कूल में तब्दील हो चुका है। इस सफ़र के बारे मे हजब्बा कहते हैं- मेरा कर्तव्य इस स्कूल का निर्माण कराना था। अब इसे मैनें सरकार को दे दिया है और वही अब इसका संचालन करती है। यह सिर्फ़ मुसलमानो के लिए नहीं है। यहां हर धर्म का बच्चा पढ़ता हैं।