होनहार सपूतों को सबने किया सलाम- जब दिहाड़ी मजदूर पिता के दोनों बेटों ने किया IIT में टॉप

New Delhi : प्रेरणा कभी पुरानी नहीं होती वो सालों बाद तक दूसरों में जुनून पैदा करती है। आज जिस कहानी का हम जिक्र कर रहे हैं वो 2015 की है, जब एक दिहाड़ी मजदूर पिता के दो बेटों ने उन्हें रातों-रातों सबकी नजरों में ला दिया था। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के जिस गांव में कभी छोटे अधिकारी भी हाल लेने नहीं आते थे, जब उसी गांव के दो हीरे चमके तो नेताओं से लेकर मीडिया तक की भी़ड़ गांव में जुटने लगी। ये दो हीरे थे राजू और बृजेश ये दोनों भाई हैं। राजू ने ऑल इंडिया 167 रेंक पाई थी तो बृजेश का स्थान 410वां रहा था।

देश के सबसे बड़े टेक्निकल इंस्टीट्यूट में एडमिशन लेने का सपना हर साल लाखों युवा देखते हैं लेकिन सफल कुछ ही हो पातें हैं, और जब ये सफलता इतने संघर्षों से निकल कर सामने आती है तो सभी को प्रेरित करती है। प्रतापगढ़ के लालगंज गांव के रहने वाले इन दो होनहार बेटों ने अपनी शुरूआती पढ़ाई करने के दौरान बकरियां चराईं, दूसरों के खेतों में मजदूरी की और बिना बिजली वाले गांव में रात को लालटेन के नीचे पढ़ाई की। परिवार की कुल पूंजी के रूप में उनका एक कच्चा घर, उसमें एक साईकिल और दो चार बकरियां थी। परिवार के पास कोई जमीन थी नहीं तो खेती के अलावा पिता को गुजरात के सूरत में जाकर मजदूरी करनी पड़ी। यहां वो दो शिफ्ट में काम करने के बाद घर पर 12 हजार रुपये महीने के भेज पाते थे।

पिता ने गरीबी के कारण बेटों को कभी काम करने को नहीं कहा, उन्हें अपने बेटों की प्रतिभा का पता था। दोनों भाइयों ने गांव के सरकारी स्कूल से किसी तरह पांचवी पास की और जवाहर नवोदय विद्यालय में दाखिला लेने के लिए परीक्षा दी। जिसमें दोनों भाईयों का सिलेक्शन हो गया। अब उनकी पढ़ाई का खर्च परिवार से नहीं जाता था। दसवीं में 95 फीसदी अंक लाए थे इसलिए आईआईटी में दाखिले की तैयारी के लिए वजीफा मिल गया।
इसी वजीफे के दम पर वो आईआईटी की तैयारी करने में जुट गए। जिस संस्थान में प्रवेश के लिए वो दिन रात तैयारी कर रहे थे उसे गांव में कोई नहीं जानता था। सब आईआईटी की बजाए आईटीआई को जानते थे। यहां तक की जब दोनों भाईयों ने ये परीक्षा पास कर ली तो उनके पिता और परिवार वालों को भी नहीं पता था कि बेटों ने क्या कर दिया है। मीडिया और नेताओं के गांव आकर उनसे मिलने और मदद का आश्वासन देने के बाद पिता धर्मराज ने जाना कि बेटों ने कुछ बड़ा किया है जिससे उन्हें गर्व हुआ। परीक्षा पास करने के बाद संस्थान में प्रवेश के लिए दोनों भाईयों को कुल 2 या ढ़ाई लाख रुपये चाहिए थे।

मीडिया के जरिए जब ये खबर फैली तो राहुल गांधी से लेकर उस समय प्रदेश के मुख्यमत्री रहे अखिलेश यादव ने उन्हें मदद देने का आश्वासन दिया। गांव में विधायकों और शिक्षा मंत्री की भीड़ भी जुटी। अब दोनों भाई अपनी पढ़ाई कर रहे हैं। भाइयों का कहना है नौकरी कर गांव में एक अच्छा स्कूल बनवाएंगे ताकि यहां के बच्चों को फ्री में शिक्षा मिल सके।

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