New Delhi: देवश्री नेत्रहीन हैं, वह देख नहीं पाती लेकिन आज उन्होंने जो मुकाम हासिल किया है वह काबिलेतारीफ है। अपने पिता के सहयोग से देवश्री ने सफलता हासिल की है। देवश्री भले ही नेत्रहीन हैं लेकिन उनके हौसले बुलंद हैं। वह रायपुर के गुढ़ियारी में रहती हैं। उन्हें पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय (Pandit Ravi Shankar Shukla University) से PHd की उपाधि प्राप्त हुई है। अपनी सफलता पर देवश्री ने कहा, ‘आज मैं जो कुछ भी हूं, अपने माता-पिता की बदौलत हूं। उन्होंने हमारा हौसला बढ़ाया और मेरे को हिम्मत दी और इस मुकाम तक पहुंचाया है।
देवश्री ने कहा, ‘मेरे पिता की एक छोटी सी दुकान है और छोटा सा मकान है। हम लोग उसी घर में रहते हैं। उसी दुकान से हमारे पापा परिवार का पालन पोषण करते हैं। मेरे पापा दुकान भी चलाते थे और समय निकाल कर हमको पढ़ाते भी थे। कभी 2 घंटे तो कभी 5 घंटे तो कभी 10 घंटे मेरे को पढ़ाते थे। आज जब मुझे PHd की उपाधि मिली तो मेरे पापा की मेहनत रंग लाई है।’
आंखों की रोशनी न होने के बावजूद रायपुर की देवश्री ने कड़ी तपस्या कर पीएचडी हासिल की है.#Raipur #Chhattisgarh @Ravimiri1https://t.co/CMyxEbEjYj
— ABP News (@ABPNews) May 25, 2023
देवश्री ने बताया कि पूरे दिन थका देने वाला काम करने के बाद जब उनके पिता घर पहुंचते तो उन्हें बेहद कम रोशनी में रात को जाग कर अपनी बेटी के लिए उसकी PHd की थीसिस लिखनी होती थी। यह सब एक पिता तभी कर पाता है जब वह अपनी बच्ची के लिए एक बेहतर और सुनहरा भविष्य देख पाता है। बावजूद इसके कि उसकी खुद की बेटी दुनिया को देख पाने में असक्षम है। देवश्री के लिए अकेले थीसिस लिखना मुश्किल था इसलिए देवश्री के पिता गोपीचंद भोयर ने तय किया कि इस काम में वह बेटी की मदद करेंगे। इसके बाद गाइड से अनुमति लेकर थीसिस लिखने का काम पूरा किया। देवश्री ने बताया कि दिनभर काम करने के बाद पिता गोपीचंद उनके साथ रातभर जागकर थीसिस लिखते थे। देवश्री बोलतीं जाती और उनके पिता उसे कागज पर लिखा करते थे। देवश्री के पिता ने महज 10वीं तक की पढ़ाई की है लेकिन PHd की थीसिस को उन्होंने पूरा किया है।
देवश्री ने बताया कि एक नेत्रहीन होने के नाते उन्हें दुनिया को देखने का दूसरा और बेहतर नजरिया मिला है। जब आम लोग दुनिया की चकाचौंध में खो जाते हैं तो वह उन चीजों पर फोकस करती है जो कि यथार्थ और असली हैं। यही कारण है कि उन्होंने PHd करने का मन बनाया और उनके पिता ने भी उनकी इस इच्छा को न सिर्फ सपोर्ट किया, बल्कि इस काम में वह पूरी शिद्दत से लगे रहे।