New Delhi : हिन्दी साहित्य का वो सूरज जिसका उदय तो बिहार से हुआ लेकिन उसके प्रकाश से पूरा भारत नई रोशनी में नहाया। वो उर्वसी का सूर्य था तो अपने ही समय का लेकिन उसका प्रकाश आज भी लोगों में अंधकार के खिलाफ लड़ने की शक्ति दे रहा है। इस सूरज का नाम है “दिनकर” रामधारी सिंह दिनकर। रामधारी सिंह दिनकर की कविता और उनके पूरे साहित्य को इतनी स्वीकृति मिली है कि वो आज जनमानस में बसे हुए हैं। उनके द्वारा रची गईं कुछ पंक्तियां लोगों के इतने प्रचलन में आईं कि आज वो कहावत सी जान पड़ती हैं।
1920: Rashtrakavi Ramdhari Singh Dinkar left his school in Mokama at noon as he had to catch the steamer to get back home.
2020: Youth in Begusarai have to travel nearly 100 kms to attend a university in Darbhanga. Why?
"याचना नहीं, अब रण होगा"#MithilaWantsDinkarUniversity pic.twitter.com/PqeiuysOZ4
— #CoronaSoldier Arvind Jha (@jalajboy) September 23, 2020
112th anniversary of the poet and author Ramdhari Singh 'Dinkar.' Will never forget Jaiprakash Narain addressing a packed rally during the Emergency and reciting Dinkar's immortal lines, 'Singhasan Khaali Karo Ke Janata Aaati Hai,' give up the throne for the people are coming! pic.twitter.com/3ix4zTGElX
— Joy Bhattacharjya (@joybhattacharj) September 23, 2020
Today is 112th birth anniversary of great Indian nationalist poet, Ramdhari Singh Dinkar.
Read more about him here.. ► https://t.co/AOU5IM3Z pic.twitter.com/ej9gARRSSN
— 𝐀𝐦𝐢𝐭 𝐉𝐚𝐢𝐬𝐰𝐚𝐥 𝐉𝐚𝐢𝐧 (@ArkJaiswal) September 23, 2020
जैसे- “याचना नहीं अब रण होगा
जीवन जय या कि मरण होगा”
“सिंहासन खाली करो कि जनता आती है”
“क्षमा शोभति उस भुजंग को जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन विष रहित निरा सरल हो” …ऐसी ही उनकी बहुत सी पंक्तिया चलन में आईं। एक समय था जब लोगों को इनकी कविताएं कंठस्थ रहती थी। उनका कविता पाठ जिस दिन और जिस जगह निश्चित किया जाता था उसे लोग दिमाग में बिठा लेते थे और कई दिन पहले से ही उन्हें सुनने के लिए पहुंचने की तैयारियां शुरू कर देते थे। उनके आगे किसी दूसरे कवि की वरियता ही खत्म हो जाती थी।
सबको बस यही इंतजार रहता कि दिनकर जी कब मंच पर आंएगे और कविता पाठ करेंगे उन्हें सुनने के लिए लोग दूर दूर से आते थे। लोग बताते हैं कि एक समय ऐसा था जब प्रधानमंत्री नेहरू की रैलियों से ज्यादा भीड़ इनके काव्य पाठ में जुटती थी। जब वो कविता पाठ करते थे लोग टकटकी बांधे मुंह बाय केवल उन्हें ही देखते रहते और चुपचाप उनकी कविता सुनते रहते। उनका काव्य पाठ सुनने प्रोफेसर, डॉक्टर, वकील से लेकर स्थानीय किसान-मजदूर भी जुटते। ऐसी थी उनकी प्रसिद्धि। फिर भी उनके परिचय के रूप में यही कहा जा सकता है कि एक कवि जिसने हर भाव में कविता की साहित्य रचा उन्हें वीर रस के रूप में तो जाना ही जाता है लेकिन उन्होंने कोमल कांत प्रेम काव्य के साथ ही बेहद सुंदर बाल साहित्य भी रचा। इसे समझने के लिए उदाहरण के तौर पर इन कविताओं को देखा जा सकता है।…
I pay homage to him on the birth anniversary of Rashtrakavi Shri Ramdhari Singh "Dinkar" Ji, a scholar writer and famous writer of Hindi. I also demand Dinkar University in Begusarai.
#MithilaWantsDinkarUniversity pic.twitter.com/Uj94YpIVb5— Rohini Jha (@RohiniJha11) September 23, 2020
जन चेतना की कविता-
सदियों की ठण्डी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ।
वीर रस-
हरि ने भीषण हुंकार किया,
अपना स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले,
भगवान् कुपित होकर बोले-
‘जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।
यह देख, गगन मुझमें लय है,
यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल,
मुझमें लय है संसार सकल।
अमरत्व फूलता है मुझमें,
संहार झूलता है मुझमें।
बाल कविताएं-
“अगर सूर्य ने ब्याह किया, दस-पाँच पुत्र जन्माएगा,
सोचो, तब उतने सूर्यों का ताप कौन सह पाएगा?
अच्छा है, सूरज क्वाँरा है, वंश विहीन, अकेला है,
इस प्रचंड का ब्याह जगत की खातिर बड़ा झमेला है।”
“हार कर बैठा चाँद एक दिन, माता से यह बोला,
सिलवा दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला।
सनसन चलती हवा रात भर, जाड़े से मरता हूँ,
ठिठुर-ठिठुरकर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ।”
जब उन्हें राजनेताओं ने सर आंख पर बिठाया और राजनीति में आने के लिए कहा तो उन्होंने उन्ही नेताओं को राजनीति मानदंड और नैतिक मूल्य भी बताए। 1952 में जब भारत की प्रथम संसद का निर्माण हुआ, तो उन्हें राज्यसभा का सदस्य चुना गया और वह दिल्ली आ गए। उनके हिन्दी में काम को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 1965 से 1971 ई. तक अपना हिन्दी सलाहकार नियुक्त किया। उन्हें पद्म विभूषण की उपाधि से भी अलंकृत किया गया। उनकी पुस्तक संस्कृति के चार अध्याय के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा उर्वशी के लिये हिन्दी साहित्य का सर्वोच्च सम्मान भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया। लेकिन इतने पद, जिम्मेदारियों और सम्मान के बाद भी वो अपने मुल कर्म (साहित्य सृजन) से नहीं डिगे।
Rashtrakavi Ramdhari Singh Dinkar College of Engineering was stated in 2016 by @NitishKumar jee
It is a welcome step
But we also want #DinkarUniversity in Begusarai which will empower people by modern education in other streams as Arts & commerce. #MithilaWantsDinkarUniversity pic.twitter.com/lvnH5orBCQ— nityanand jha sonu (@nityamsu) September 23, 2020
Tribute to National Poet of India Shree Ramdhari Singh Dinkar Ji on his 112nd birth anniversary. 🙏
His classical poems will always continue to inspire us.#DeshKiDharohar #Ramdharisinghdinkar pic.twitter.com/sEqVbhfcpz— Gargi Shaktawat (@ShaktawatGargi) September 23, 2020
अगर हम दिनकर के किसी एक खंडकाव्य को भी चुन लें तो हमें उसमें जीवन की नैतिकता भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों की झलक मिल ही जाएगी। ये खूबी हिन्दी साहित्य के किसी दूसरे कवि या साहित्यकार में दिखाई नहीं देती। लेकिन ये अकारण नहीं है कि दिनकर का काव्य संसार इतना व्यापक बन पाया उन्होंने भारतीय संस्कृति और एतिहासिक संदर्भों को समझने के लिए गहन अध्ययन किया था। उन्होंने पहले तो हाई स्कूल और इंटर की परीक्षा अव्वल दर्जे से पास की फिर बाद में तीन विषयों इतिहास दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान में उन्होंने स्नातक किया। यही वजह है कि उनका ये गूढ़ अध्ययन उनकी कविता उनके साहित्य में सरल अर्थ में दिखता है। भारतीय संस्कृति को उन्होंने अच्छे से समझा था और इसे उन लोगों को समझाने का भी उन्होंने भरसक प्रयास किया जो अपने अनुभवों से कुछ सीखने के बजाए दूसरों की धारणाओं को जीवन भर ढोते रहते हैं कविता ‘परंपरा’ को देखिए-
“परंपरा को अंधी लाठी से मत पीटो
उसमें बहुत कुछ है
जो जीवित है
जीवन दायक है
जैसे भी हो
ध्वंस से बचा रखने लायक है
पानी का छिछला होकर
समतल में दौड़ना
यह क्रांति का नाम है
लेकिन घाट बांध कर
पानी को गहरा बनाना
यह परम्परा का नाम है
परम्परा और क्रांति में
संघर्ष चलने दो
आग लगी है, तो
सूखी डालों को जलने दो…
परम्परा जब लुप्त होती है
सभ्यता अकेलेपन के
दर्द मे मरती है
कलमें लगना जानते हो
तो जरुर लगाओ
मगर ऐसी कि फलो में
अपनी मिट्टी का स्वाद रहे
और ये बात याद रहे
परम्परा चीनी नहीं मधु है
वह न तो हिन्दू है, ना मुस्लिम”
You share your birthday with #RamdhariSinghDinkar
The ‘Rashtrakavi’ who inspired Indian minds pic.twitter.com/Z5pqwECQ2o
— The Times Of India (@timesofindia) September 23, 2020
On 23rd September, the Birthday of our National Poet Shri Ramdhari Singh Dinkar, Please join hands in trending this tweet from 11 am onward. This is an appeal to all the Mithilanchal and people from Bihar staying in India and abroad, Please #support pic.twitter.com/B0ycUWMfDO
— Seemant Bharti (@simant_uw) September 18, 2020
Remembering Ramdhari Singh Dinkar on his birth anniversary🙏🙏#Ramdharisinghdinkar (23 September 1908 – 24 April 1974), known by his Pen Name Dinkar, was an Indian Hindi poet, essayist, patriot and academic,who is considered as one of the most important modern Hindi poets. pic.twitter.com/Y1CmUhxLE5
— Apu Das (@apu_india) September 23, 2020
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा था “दिनकरजी अहिंदीभाषियों के बीच हिन्दी के सभी कवियों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय थे और अपनी मातृभाषा से प्रेम करने वालों के प्रतीक थे।” हरिवंश राय बच्चन ने कहा था “दिनकरजी को एक नहीं, बल्कि गद्य, पद्य, भाषा और हिन्दी-सेवा के लिये अलग-अलग चार ज्ञानपीठ पुरस्कार दिये जाने चाहिये।” रामवृक्ष बेनीपुरी ने कहा था “दिनकरजी ने देश में क्रान्तिकारी आन्दोलन को स्वर दिया।” नामवर सिंह ने कहा है “दिनकरजी अपने युग के सचमुच सूर्य थे।”