भारत रत्न प्रणब क्लर्क बने, जर्नलिज्म किया…और राष्ट्रपति बने, पर PM की कुर्सी छूकर निकल गई

New Delhi : भारत रत्न प्रणब मुख्यर्जी नहीं रहे। 84 साल के प्रणव मुख्यर्जी 10 अगस्त से हॉस्पिटल में भर्ती थे। उन्होंने 10 अगस्त को खुद ट‍्वीट कर कोरोना संक्रमण की जानकारी दी थी। इसको लेकर जब वे हॉस्पिटल में भर्ती हुये तो उसी दिन उनके मस्तिष्क की सर्जरी की गई थी। मुखर्जी को बाद में फेफड़े में संक्रमण हो गया। सरकार ने 7 दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर साल 1969 में उन्होंने कांग्रेस से अपनी राजनीतिक पारी शुरू की। इससे पहले वे अलग-अलग जगहों पर नौकरी करते रहे। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत बतौर क्लर्क किया था। इसके बाद उन्होंने बांग्ला न्यूज पेपर में जर्नलिज्म किया और टीचर भी रहे।

करीब 50 साल के राजनैतिक जीवन में प्रणब मुख्यर्जी ने कई सारी जिम्मेदारियां निभाईं। उन्होंने विदेश, रक्षा, वाणिज्य और वित्त मंत्रालय का काम देखा। वे 5 बार राज्यसभा के सदस्य चुने गये। 2 बार लोकसभा सांसद बने। 77 साल की उम्र में राष्ट्रपति बने। उनके पास इतिहास, राजनीतिक शास्त्र और कानून की डिग्रियां थीं। 2008 में उन्हें पद्म विभूषण और 2019 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद समेत तमाम गणमान्य लोगों ने शोक व्यक्त करते हुये कहा है कि प्रणव मुख्यर्जी के जाने से भारतीय राजनीतिक पटल पर शून्यता आ गई है।
प्रणब मुखर्जी ने साल 1963 में कलकत्ता के पोस्ट और टेलीग्राफ ऑफिस में एक अपर डिवीजन क्लर्क के रूप में करियर की शुरुआत की थी। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक ऐसे व्यक्ति रहे जो उनके अंदर भी काम कर चुके थे और बाद में उनके बॉस भी बने। इंदिरा गांधी के शासनकाल में 1980 से 84 के दौरान मनमोहन सिंह सचिव थे जबकि प्रणव मुखर्जी कैबिनेट मंत्री।

मनमोहन सिंह ने 2017 में प्रणब की ऑटोबायोग्राफी के विमोचन के मौके पर कहा था- जब मैं प्रधानमंत्री बना, तब प्रणब मुखर्जी इस पद के लिये ज्यादा काबिल थे, लेकिन मैं कर ही क्या सकता था? कांग्रेस प्रेसिडेंट सोनिया गांधी ने मुझे चुना था। मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। प्रणब को प्रधानमंत्री नहीं बनाने का शिकवा करने का पूरा हक है। वैसे प्रणब मुखर्जी के जीवन में कई ऐसे मौके आये जब लगा कि वे प्रधानमंत्री के उपयुक्त उम्मीदवार हैं लेकिन ऐसा कभी हुआ नहीं। प्रणब मुखर्जी कांग्रेस की नरसिम्हा सरकार में और यूपीए 1, यूपीए 2 में सेकेंड मैन रहे लेकिन कभी कमान उनके हाथ नहीं आई।

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