वास्तव में एक ऐसा पुल जरूर दिखाया गया है जो कि भारत के रामेश्वरम से शुरू होकर श्रीलंका के मन्नार द्वीप तक पहुंचता है। परन्तु किन्हीं कारणों से अपने आरंभ होने से कुछ ही दूरी पर यह समुद्र में समा गया है। रामेश्वरम में कुछ समय पहले लोगों को समुद्र तट पर कुछ वैसे ही पत्थर मिले जिन्हंब प्यूमाइस स्टोन कहा जाता है। लोगों का मानना है कि यह पत्थर समुद्र की लहरों के साथ बहकर किनारे पर आए हैं।

साल 1480 से पहले तक भारत – श्रीलंका के बीच लोग श्रीरामसेतु का इस्तेमाल करते थे!

New Delhi : हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्रीराम सेतु का निर्माण वानर सेना की मदद से भगवान राम ने कराया था। जब उन्हें मां सीता को बचाने के लिए लंका पहुंचना था। ऐसा कहा जाता है कि रामायण (5000 ईसा पूर्व) का समय और पुल वास्तव में अस्तित्व में था। कुछ पुरातत्वविदों का मानना है कि राम सेतु रामायण का एकमात्र पुरातात्विक और ऐतिहासिक सबूत है। विज्ञान के अनुसार, यह स्वाभाविक रूप से बनाया गया मार्ग है जो पंबन द्वीप से मन्नार द्वीप को जोड़ता है। हालांकि, पुल अब मौजूद नहीं है और इसके बारे में बहुत बहस हो चुकी है।

कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि “पद्म पुराण” के अनुसार – यदि भगवान राम ने राम सेतु का निर्माण किया, तो उन्होंने इसे नष्ट भी कर दिया।

सेतुसमुद्रम मामला जो सुप्रीम कोर्ट में लंबित है उसमें आये तर्कों पर अगर गौर करें तो यह सच लगता है कि पुल था और उसका इस्तेमाल भी होता था

एक बार केंद्र की यूपीए सरकार ने सेतु समुद्रम मामले में सर्वोच्च न्यायालय में एक बयान में कहा – तो सेतु कहां है? हम किसी पुल को नष्ट नहीं कर रहे हैं। कोई पुल नहीं है। एक मानव निर्मित संरचना नहीं थी। यह किसी सुपरमैन ने बनाया और उसने ही इसे नष्ट कर दिया था। यही कारण है कि सदी के लिए इसके बारे में कुछ भी नहीं बताया जा सका। सीनियर एडवोकेट फली ए नरीमन ने कहा था- शास्त्रों का कहना है कि राम-रावण युद्ध के बाद भगवान राम ने खुद ही इसे कई टुकड़ो में तोड़ दिया था। यदि ऐसा है, तो यह पहले से ही प्राचीन समय से टूट चुका है और इसलिए यह अब पूजा की जगह नहीं हो सकता है।

इतिहासकार और पुरातत्वविद प्रोफ़ेसर माखनलाल ने एक बार BBC से कहा था – इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कोरल और सिलिका पत्थर जब गरम होता है तो उसमें हवा कैद हो जाती है जिससे वो हल्का हो जाता है और तैरने लगता है। ऐसे पत्थर को चुनकर ये पुल बनाया गया।

वो बताते हैं – साल 1480 में आए एक तूफ़ान में ये पुल काफ़ी टूट गया. उससे पहले तक भारत और श्रीलंका के बीच लोग पैदल और पहियों के ज़रिये इस पुल का इस्तेमाल करते रहे थे। अगर इसे राम ने नहीं बनाया तो किसने बनाया।

लेकिन उन दावों का क्या जो कहते हैं कि रामायण और इसके पात्र कल्पना मात्र हैं? वो कहते हैं – क्या रामायण अपने आपको मिथिकल कहता है? ये हम, आप और अंग्रेज़ों ने कहा है। दुनिया में ओरल ट्रैडिशन भी होती हैं। अगर आप हर चीज़ का लिखित प्रमाण मानेंगे तो उनका क्या होगा जो लिखते पढ़ते नहीं थे। सवाल ये भी है कि इतने विवाद के बाद क्या भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने आज तक कभी इसकी तहकीकात की है। एके राय साल 2008 से 2013 तक – डायरेक्टर मॉन्युमेंट्स के पद से रिटायर होने से पहले – सेतुसमुंद्रम मामले में सुप्रीम कोर्ट में नोडल अफ़सर थे। उन्होंने कहा था – विवाद के बाद इस मामले में कोई भी हाथ नहीं डालना चाहेगा क्योंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में है जब तक सुप्रीम कोर्ट निर्देश नहीं देता, कुछ नहीं होगा।

और ये मामला लोगों की भावनाओं और परंपराओं से जुड़ा है। क्या एएसआई रामसेतु पर कुछ भी ठोस तरीके से कह सकती है? एके राय कहते हैं – एएसआई ने कभी इस मामले की जांच की कोशिश नहीं की। ऐसे सुबूत भी नहीं हैं जिसके आधार पर हम कह सकते हैं कि ये मानव निर्मित है। ऐसा करने के लिए नई एजेंसियों का शामिल होना ज़रूरी है। हमारे पास हां या ना कहने का आधार नहीं है। अगर आप रामेश्वरम जाएं तो वहां ढेर सारे कुंड हैं। वहीं आपको लोग मिलेंगे जो आपको पानी में तैरने वाले पत्थर दिखाएंगे।

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