New Delhi : दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के नेताओं ने कहा कि 1982 में हुई संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि के आधार पर दक्षिण चीन सागर में संप्रभुता का निर्धारण किया जाना चाहिए। चीन द्वारा ऐतिहासिक आधार पर दक्षिण चीन सागर के बड़े हिस्से पर दावा करने के खिलाफ दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के नेताओं की यह अब तक की सबसे सख्त टिप्पणिण्यों में से एक है। इस बयान के बाद अमेरिका ने आसियान देशों के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास शुरू करते हुये लड़ाकू विमानों से आसमान को थर्रा दिया है।
U.S. aircraft carriers hold joint drills after ASEAN lambastes Beijing over South China Sea https://t.co/JdJEWKAriA
— The Japan Times (@japantimes) June 28, 2020
दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्र संगठन (आसियान) के नेताओं ने अपना रुख साफ करते हुए शनिवार (27 जून) को वियतनाम में दस देशों के संगठनों की ओर से बयान जारी किया। कोरोना वायरस की महामारी के चलते आसियान नेताओं का शिखर सम्मेलन शुक्रवार (26 जून) को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए आयोजित किया गया और लंबे समय से क्षेत्रीय संप्रभुता को लेकर चल रहा विवाद एजेंडे में शीर्ष पर रहा।
आसियान के बयान में कहा गया- हम दोहराते हैं कि 1982 में हुई संयुक्त राष्ट्र समुद्री क़ानून संधि समुद्री अधिकार, संप्रभुता, अधिकार क्षेत्र और वैधता निर्धारित करने के लिए आधार है। उल्लेखनीय है कि इस अंतरराष्ट्रीय संधि में देशों के समुद्र पर अधिकार, सीमांकन और विशेष आर्थिक क्षेत्र को परिभाषित किया गया है तथा इसी आधार पर मछली पकड़ने और संसाधनों का दोहन करने का अधिकार मिलता है।
आसियान के बयान में कहा गया- संयुक्त राष्ट्र की समुद्री क़ानून संधि ने कानूनी ढांचा मुहैया कराया है जिसके अंतर्गत सभी समुद्री गतिविधियां होनी चाहिए। चीनी अधिकारी इस बयान पर टिप्पणी करने के लिए तत्काल उपलब्ध नहीं हो सके, लेकिन दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के तीन राजनयिकों ने बताया कि एशिया में लंबे समय से संघर्ष के केंद्र रहे इस क्षेत्र में कानून का राज स्थापित करने के लिए इस क्षेत्रीय संगठन ने अपने रुख को मजबूत करने का संकेत दिया है। हालांकि, अधिकृत नहीं होने की वजह से इन राजनयिकों ने अपनी पहचान गुप्त रखी।
इस साल आसियान संगठन का नेतृत्व कर रहे वियतनाम ने इस अध्यक्षीय बयान का मसौदा तैयार किया है जिसपर चर्चा नहीं होती, बल्कि राय-मशविरा के लिए सदस्य देशों को भेजा जाता है। वियतनाम समुद्री विवाद के मुद्दे पर चीन के खिलाफ सबसे मुखर रहा है। उल्लेखनीय है कि चीन ने हाल के वर्षों में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इस समुद्री क्षेत्र पर दावे को लेकर आक्रमक रुख अपनाया है। उसके द्वारा जिन इलाकों पर दावा किया जा रहा है, उससे आसियान सदस्य देशों वियतनाम, मलेशिया, फिलीपीन और ब्रुनेई के क्षेत्र में अतिक्रमण होता है। ताइवान ने भी विवादित क्षेत्र के बड़ हिस्से पर दावा किया है।
Leaders from the Association of Southeast Asian Nations (#ASEAN) on Friday stressed the importance of "freedom of overflight", sending a strong message to #China, which has considered implementing an air defense identification zone in the #SourthChinaSea.https://t.co/MENi4kMGoY
— Indo-Pacific Defence (@IndoPac_Defence) June 28, 2020
जुलाई 2016 में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने संयुक्त राष्ट्र की समुद्री क़ानून संधि के आधार पर चीन के ऐतिहासिक दावे को अस्वीकार कर दिया। चीन ने इस सुनवाई में शामिल होने से इनकार कर दिया और फैसले को शर्मनाक करार देते हुए खारिज कर दिया। चीन ने हाल में संबंधित क्षेत्र में मौजूद सात टापुओं को मिसाइल सुरक्षित सैन्य ठिकानों में तब्दील किया है जिनमें से तीन द्वीपों पर सैन्य हवाई पट्टी भी बनाई गई है और वह लगातार इसका विकास कर रहा है जिससे प्रतिद्वंद्वी देशों की चिंता बढ़ गई है। चीन के इस कदम से अमेरिका के एशियाई और पश्चिमी सहयोगी भी चिंतित हैं।