New Delhi : Mathura और Vrindavan का होली उत्सव दुनियाभर में प्रसिद्ध है, होली की हुड़दंग और Barsana की लठमार होली केसाथ ही फालैन गांव की होली भी बहुत खास होती है। Mathura के पास ही स्थित Faalen को भक्त प्रहलाद का गांव माना जाता है।यहां आज भी एक पंडा (पुजारी) होलिका दहन पर जलती हुई होली के बीच से निकलता है, लेकिन उसे आग जलाती नहीं है। फालैन केपंडा परिवार द्वारा यहां सदियों से ये परंपरा निभाई जा रही है। इसे देखने के लिए दुनियाभर से लोग पहुंचते हैं। गांव में मेला लगता है।दर्शनार्थियों के स्वागत के लिए लोग अपने–अपने घरों की रंगाई–पुताई करा रहे हैं।
दहन के दौरान निभाई जाने वाली इस परंपरा के लिए पंडा परिवार का वो सदस्य जिसे जलती होली से निकलना होता है, वो एक महीनेपहले से घर छोड़कर मंदिर में रहने लगता है। वहीं रहकर पूजा–पाठ, मंत्र जाप और उपवास करता है। इसके बाद ही होलिका दहन होताहै। इस बार मोनू नामक पंडा जलती हुई होली के बीच में निकलेगा। हर साल होली पर जोखिम भरा ये काम मोनू पंडा के परिवार से कोईएक सदस्य करता है। ग्राम पंचायत फालैन के समाज सेवक प्रेमसुख कौशिक के अनुसार होली पर ये चमत्कार देखने के लिए देश–दुनिया से हजारों लोग फालैन गांव पहुंचते हैं। गांव में पंडा परिवार के 20-30 घर हैं। हर बार होली से पहले पंचायत में ये तय होता है किइस साल जलती होली में से कौन निकलेगा।
फालैन गांव में होलिका सजाने के लिए आसपास के 5-7 गांवों से लोग कंडे लेकर आते हैं। ऐसे में यहां हजारों कंडे एकट्ठा हो जाते हैं।सभी कंडों से करीब 25 फीट चौड़ी और 8-10 फीट ऊंची होलिका तैयार की जाती है। फाल्गुन पूर्णिमा पर गांव और आसपास के लोगहोलिका पूजन करते हैं। रात में होलिका जलाई जाती है। इसके बाद शुभ मुहूर्त में पंडाजी जलती होली में से निकलते हैं। ये कारनामाकुछ ही देर का होता है। इस साल से पहले मोनू के पिताजी 10 बार जलती होली में से निकल चुके हैं। जलती होली से निकलने वालेपंडा का बाल भी नहीं जलता है। गांव के लोग सभी अतिथियों के खान–पान और रहने की व्यवस्था करते हैं।
यहां मान्यता प्रचलित है कि ये गांव दैत्यराज हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद का है। पुराने समय में एक संत ने यहां तपस्या की थी। उससमय इस गांव के एक पंडा परिवार को स्वप्न आया कि एक पेड़ के नीचे मूर्ति दबी हुई है। इस सपने के बाद गांव के पंडा परिवार केसदस्यों ने संत के मार्गदर्शन में खुदाई की थी। इस खुदाई में भगवान नरसिंह और भक्त प्रहलाद की मूर्ति निकली। तब संत ने पंडा परिवारको ये आशीर्वाद दिया कि हर साल होली पर इस परिवार का जो भी सदस्य पूरी ईमानदारी और आस्था से भक्ति करेगा, उसे भक्तप्रहलाद की विशेष कृपा मिलेगी और वह जलती हुई होली से निकल सकेगा। ऐसा करने के बाद भी उसके शरीर पर आग की गर्मी काकोई असर नहीं होगा। यहां भक्त प्रहलाद का मंदिर है और यहीं एक कुंड भी है।
मुहूर्त के मुताबिक पंडा की बुआ प्रहलाद कुंड से एक लोटा पानी लेकर आती है और जलती होली में डाल देती है। इससे होलिका शांत होजाती है। इसके बाद पंडा प्रहलाद कुंड में स्नान करता है और एक गमछा, माला लेकर भक्त प्रहलाद का ध्यान करते हुए जलती हुई होलीसे निकल जाता है। आग से निकलने के बाद भी पंडा के शरीर पर आग की गर्मी का कोई बुरा असर नहीं होता है।