सवा लाख से एक लड़ाऊं-बांदीपोर में जय हिंद गाता अकेले ही राष्‍ट्रध्‍वज लेकर निकल पड़ता था वसीम

New Delhi : उत्तरी कश्मीर का बांदीपोर जिहादियों का मजबूत गढ़ रहा है। वसीम बारी और उसके परिवार ने यहां उनके वर्चस्व को सीधी चुनौती ही नहीं दी, कई जगह ध्‍वस्‍त करने में भी सफल रहे। वसीम बारी कई बार अकेले ही राष्‍ट्रध्‍वज लेकर सड़क पर निकल पड़ते थे। यही वजह है कि उनका परिवार कश्‍मीर में अमन और विकास के दुश्‍मनों की आंखों की किरकिरी बना हुआ था। उन्होंने अलगाववाद की सियासत के आगे घु़टने टेकने की बजाय स्वाभिमान का जीवन चुना।

गुलाम कश्मीर से घसपैठ करने वालों के लिये बांडीपोर एक ट्रांजिट कैंप भी है। यहां से वह वादी के अन्य जिलों में अपने ठिकानों पर जाते हैं। इसी वजह से यहां के लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समझौते की जिंदगी जीने को प्राथमिकता देते हैं। अलगाववादी किसी भी ग्रामीण को लेशमात्र संदेह होने पर अगवा कर जान ले लेते हैं।
नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी जैसे क्षेत्रीय दल भी इस क्षेत्र में अपनी सियासी गतिविधियां संभलकर चलाते हैं। ऐसे में भाजपा के साथ जुड़ना और तिरंगा लेकर खुलेआम जम्‍मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम का समर्थन करने का साहस कम लोग ही कर पाये। इन सबके बीच वसीम बारी और उनके परिवार ने बेखौफ राष्‍ट्रवाद का ध्‍वज उठाये रखा।

वसीम बारी का पूरा परिवार भाजपा से जुड़ा हुआ था। उनके पिता भी भाजपा की जिला इकाई के उपाध्यक्ष रह चुके हैं। भाई उमर भी युवा इकाई के वरिष्ठ नेताओं में एक था। बहन भी भाजपा की महिला इकाई से जुड़ी है। वसीम के पिता बशीर मूल रूप से दक्षिण कश्मीर में अनंतनाग के रहने वाले थे। उन्होंने बांदीपोर में शादी की और यहीं पर बस गये थे। बारी का एक मामा इख्वान कमांडर रह चुका है। वसीम बारी के बारे में यहां के दूरदराज के इलाके के गरीब लोगों से पूछो सभी उसे भला आदमी कहेंगे।
उसने उज्ज्वला योजना का लाभ सही लोगों तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उसने जनधन खाते भी खुलवाये। वह अक्सर लोगों की समस्याओं को लेकर नौकरशाहों से भी भिड़ जाते थे। वसीम बारी का पूरा परिवार थाने के पास करीब 22 साल पहले आकर ही बसा था, क्योंकि उसका मामा इख्वानी रहा है और परिवार हमेशा अलगाववादियों की हिटलिस्ट में था।

बारी के एक पड़ोसी ने कहा – हम उसे कई बार कहते थे कि वह अलगाववादियों के मुद्दे पर चुप रहा करे, लेकिन वह कभी डरा नहीं। स्वतंत्रता दिवस हो या गणतंत्र दिवस, राष्ट्रध्वज लेकर वह चौक में पहुंच जाता था। अगर कोई साथ खड़ा न हो तो वह अकेला ही बाजार में राष्ट्रध्वज लेकर निकल पड़ता था।
उसने कई बार कस्बे में तिरंगा रैली निकाली। जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम लागू होने के बाद खुलेआम उसका समर्थन किया। श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती और पुण्यतिथि पर वह हमेशा समारोह आयोजित करता था। वह कहता था – हमें रावलपिंडी और इस्लामाबाद के बजाय दिल्ली की तरफ देखना चाहिए। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बड़ा फैन था। पूरा परिवार हिटलिस्ट में था,लेकिन वह कभी पीछे नहीं हटा।

वरिष्ठ पत्रकार आसिफ कुरैशी ने कहा – कश्मीर में आम लोग भाजपा के प्रति सात-आठ साल पहले तक क्या सोचते थे, यह किसी को बताने की आवश्‍यकता नहीं है। ऐसे हालात में बांदीपोर जैसे क्षेत्र में भाजपा का झंडा बुलंद करना, खुलेआम बिना किसी सुरक्षा के राष्ट्रध्वज लेकर चलना दिलेरी का काम था। यह वसीम बारी और उनका पूरा परिवार जानता था, लेकिन वह कभी पीछे नहीं हटे। करीब छह साल पहले जब यहां चुनाव चल रहे थे तो मैं बांदीपोर गया। वहां मैंने बाजार में एक अकेले युवक को देखा, जो भाजपा का प्रचार करते हुए लोगों से नरेंद्र मोदी के लिये वोट मांग रहा था। मैं हैरान रह गया था। मैंने सोचा कि शायद कोई पागल है जो इस तरह नाचते हुए जा रहा है। मैंने जब उससे बात की तो उसने कहा – देश में मोदी सरकार और यहां बारी सरकार। मुझे वोट नहीं, अमन-तरक्की चाहिये।

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