तुम रामराज्य के वासी हो, अपना सिर ऊंचा रखो :
राम…जय राम…जय-जय राम! इस वाक्य से जो रोमांच पैदा होता है, उसे हर भारतीय महसूस करता है। वास्तव में, कभी औपचारिक रूप से बताए बिना, सभी भारतीय उनकी कहानी जानते हैं और उसकी छाप दिल में लेकर पैदा हुए हैं। देश के हर गांव, कस्बे और शहर में हम रामलीला या टीवी पर रामायण देखते हैं या इसकी कहानी पढ़ते हैं। किस भारतीय ने भगवान राम को आम लोगों को नुकसान पहुंचाने वाले राक्षसों से लड़ते देख अपने भीतर भावनाओं का ज्वार महसूस नहीं किया होगा? जब वह जनकसुता सीता से विवाह करते हैं और उन्हें अयोध्या ले जाते हैं, जब वह निषादराज को गले लगाते हैं और मां शबरी द्वारा चढ़ाए गए बेर खाते हैं, तो हमारा गला रुंध जाता है। जब वह वन की ओर प्रस्थान करते हैं और अपने गृह, अयोध्या से निर्वासन को सहजता से स्वीकार लेते हैं, तो कौन सी आंखें नम नहीं होती?
राजकुमार भरत, उनके भाई, तो टूट ही गए थे। उन्हें उनका उपस्थित न होना खलेगा। वास्तव में, अयोध्या को उनकी बहुत याद आएगी। वे विलाप करते रहे, रोते रहे, उनसे न जाने की विनती की। लेकिन नियति में ही यह तय था कि उन्हें भगवान की अनुपस्थिति का कष्ट सहना पड़ा। और जिस दिन भगवान राम, देवी सीता और राजकुमार लक्ष्मण लौटे, उसे पहली दिवाली के रूप में मनाया गया…।
वर्षों पहले, चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी— चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को, श्रीराम का जन्म राजा दशरथ और रानी कौशल्या के यहां हुआ था। आज तक, हम उनके जन्म और उनके बालपन का उल्लास मनाने वाले भजन सुनते आ रहे हैं… ठुमक चलत रामचंद्र; बाजत पैजनिया… लता दीदी या यहां तक कि विलक्षण प्रतिभाशाली सूर्या गायत्री द्वारा गाया यह भजन आप भी सुनें। आपको रामलला के मनमोहक बचपन का रोमांच महसूस होगा। वह पत्थर दिल ही होगा, जो उनके जन्म की खुशी महसूस न कर पाए।
और अब, अपनी चेतना को 500 वर्ष से कुछ अधिक पीछे की ओर ले जाएं, जब एक विदेशी आक्रांता ने भारत पर हमला किया था। 21 अप्रैल, 1526 को पानीपत की लड़ाई लड़ी गई और आधुनिक उज्बेकिस्तान के बाबर ने तिमुरिदों का शासन स्थापित किया। दो साल बाद, 1528 में, बाबर का सेनापति मीर बाकी अयोध्या आया और हमारे सबसे महान मंदिरों में से एक को नष्ट कर दिया। वह मंदिर, जो भगवान राम के जन्मस्थान का प्रतीक था। राम जन्मभूमि मंदिर। हमने उसे फिर खो दिया।
जब राम वन के लिए निकले थे, तो अयोध्या की जनता बहुत रोई थी। जब उनके मंदिर को बर्बरता से गिराया गया, तो पूरे उपमहाद्वीप के लोग फिर विलाप करने लगे। उन्होंने राम को फिर खो दिया था।
हालांकि, वे इस बात को भूले नहीं। हमने हार नहीं मानी। उसी समय से एक संघर्ष शुरू हुआ, जो 500 वर्षों तक चला। वह लंबा इंतजार खत्म हो गया है, क्योंकि प्रभु वापस आ गए हैं। श्रीराम घर लौट आए हैं। आइए, एक ऐसे भारत का निर्माण करें, जिस पर हम सभी को गर्व होगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम उस भारत का निर्माण करेंगे, जैसा भगवान राम चाहते होंगे।