स्कूली बच्चों को देखकर बना रामलला की प्रतिमा, 2000 फोटो देखने के बाद हुआ सिलेक्शन

NEW DELHI -बच्चों की 2000 फोटो देखीं, तब बनाई रामलला की प्रतिमा, रोज 18 घंटे काम, 2 घंटे की नींद; अरुण योगीराज की पूरी कहानी : सोशल मीडिया के माध्यम से आपको पता चल गया होगा कि अयोध्या के नए राम मंदिर में कौन से राम भगवान की स्थापना होगी। काले पत्थर की मदद से भगवान राम की भव्य प्रतिमा का निर्माण किया गया है, जो अब सोशल मीडिया पर वायरल है। अब इस प्रतिमा को लेकर एक नई जानकारी सामने आ रही है। प्रतिमा का निर्माण करने वाले अरुण योगीराज ने बताया कि बच्चों की 2000 फोटो देखने के बाद यह फैसला लिया गया कि रामलला प्रतिमा का स्वरूप क्या होगा।

मूर्ति बनाने वाले कलाकार ने कहा कि जब मुझे राम मंदिर में स्थापित होने वाली प्रतिमा का निर्माण करने का आदेश मिला तो मैं अपने आप को गौरवशाली समझ रहा था। मैं अपने काम में जुट गया और इस दौरान मैंने कई स्कूल, समर कैंप और पार्क में जाकर बच्चों को ऑब्जर्व किया। मैं घंटों बच्चों को खेलते हुए देखा करता था। बच्चे कैसे हंसते हैं, कैसे मुस्कुराते हैं, कैसे खेलते हैं। प्रतिमा निर्माण के दौरान इन सभी बातों का ध्यान रखा गया।

अरुण योगीराज की पत्नी ने बताया कि मेरे पति के अलावा अन्य मूर्तिकार को भी प्रतिमा निर्माण करने का आदेश मिला था। हमारा परिवार शुरू से ही प्रतिमा निर्माण का काम कर रहा है। आप इसे हमारा पुश्तैनी काम भी कह सकते हैं। हमारे घर के सामने एक वर्कशॉप है, यह हमारे लिए गुरुकुल है, जहां मूर्ति बनाने की ट्रेनिंग दी जाती है।

अनाउंसमेंट से पहले हम लोगों को भी पता नहीं था कि अरुण की मूर्ति सेलेक्ट हो गई है। सिलेक्शन वाले दिन मेरे पति अरुण के पास फोन आया था और उसके बाद वह दिल्ली चले गए। रामलला की प्रतिमा बनाना बहुत बड़ा काम था इसलिए इसे सावधानीपूर्वक किया गया। छोटी सी चूक भी पूरी मेहनत को बर्बाद कर देती। हमारे परिवार में पांच जेनरेशन से मूर्ति बनाने का काम किया जा रहा है। मेरे ससुर और अरुण के पिता बीएस योगीराज शिल्पी कर्नाटक के प्रसिद्ध मूर्तिकार थे। दादा बसवन्ना शिल्पी मैसुरू राजघराने के प्रमुख शिल्पिकर थे। अरुण राज एमबीए पास आउट छात्र हैं। कई सालों तक उन्होंने प्राइवेट कंपनी में काम किया है। साल 2008 से उन्होंने मूर्ति बनाने का पुश्तैनी काम अपना लिया। अरुण की पत्नी कहती है की प्रतिमा मंदिर में स्थापना हो रही है यह अपने आप में बड़ी उपलब्धि है और गर्भगृह में पहुंचना तो हमारे परिवार के लिए वरदान है।

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