New Delhi: success story ashtosh pratihast
ये आशुतोष प्रतिहस्त हैं। बिहार के सीतामढ़ी के रहने वाले हैं। सीतामढ़ी के जिस गांव में आशुतोष प्रतिहस्त रहते थे वहां वे सबसे शरारती थे। उनकी शरारत से सब परेशान थे। लोग यहां तक कहने लगे थे कि आशुतोष बर्बाद हो चुके हैं। उनके पिता जहां से गुजरते सब यही कहते कि आपका बच्चा बर्बाद हो चुका है। उसे संभाल लीजिए अन्यथा बहुत देर हो जाएगी। उसका कोई भविष्य नहीं है। उनकी मां इससे बहुत परेशान हो गईं। नौबत यह आ गई कि उन्हें डिप्रेशन हो गया। डॉक्टरों ने साफ कह दिया कि उन्हें डिप्रेशन से निकालना है तो उस माहौल से बाहर निकलना पड़ेगा।
समय के साथ आशुतोष को एहसास हुआ कि उन्हें कुछ करना होगा। फिर उन्होने करोड़ों कमाने का जुगाड़ निकाल लिया। आशुतोष की कहानी बहुत लोगों को प्रेरित करती है। जो लड़का दिन रात घूमता-फिरता…लड़-झगड़कर घर आता। आज के समय में वही लड़का करोड़ों का मालिक है। जिसे एक समय सभी ने कह दिया था कि वह कुछ नहीं कर पाएगा।
मां को डिप्रेशन होने के बाद डॉक्टरों की सलाह से 2005 में आशुतोष के पिता दिल्ली चले गए। वहां जाकर उन्होंने कुछ दिन काम किया। इसके बाद उन्होंने अपने परिवार को भी दिल्ली बुला लिया। आशुतोष और उनका परिवार जब दिल्ली शिफ्ट हुआ तब भी उनकी शरारतें जारी रहीं। उनके मन में जो आता वह करते थे। इसकी वजह से पिता को नुकसान की भरपाई करनी पड़ती थी।
आशुतोष को तब पैसों की अहमियत का पता चला। यही वह वक्त था जब उन्हें असम के एक केंद्रीय विद्यालय भेज दिया गया। कारण यह था कि उसकी फीस काफी कम थी। उस समय उनके घर की आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी। असम जाकर उन्हें बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ा। मसलन, वह हिंदी बोलते थे। जबकि वहां के लोग असम की भाषा बोलते थे। इसकी वजह से उनके दोस्त उनका मजाक भी बनाते थे। वह एक साल के बाद दिल्ली वापस आ गए।
वापस लौटने पर आशुतोष अपने माता-पिता से पूछने लगे की अमीर कैसे बना जाता है। माता-पिता ने बताया कि अगर वह अमीर बनाना चाहते हैं तो पढ़ाई करनी होगी। इसके बाद वह अच्छे से पढ़ाई में लग गए। धीरे-धीरे उनका मन पढ़ाई में लगने लगा। और वह परीक्षा में पूरे-पूरे नंबर लाने लगे।
इस खुशी में आशुतोष के माता-पिता ने उन्हें गिटार लेकर दिया था। फिर कुछ ही समय बाद उन्हें गिटार बहुत अच्छे से बजाना आ गया। उसी दौरान उनके पिता की नौकरी चली गई। इसने घर की आर्थिक स्थिति को कमजोर कर दिया। उनके परिवार की स्थिति इतनी खराब हो चुकी थी कि उन्हें कर्ज मांगकर काम चलाना पड़ रहा था।
आशुतोष ने सोचा की उन्हें अपने घर की इस खराब स्थिति से बाहर निकलना ही पड़ेगा। तब तक उन्होंने गिटार बजाना अच्छे से सीख लिया था। उन्होंने गिटार की ट्यूशन देना शुरू किया। इससे वह 6 हजार रुपये तक कमा लेते थे। फिर उन्होंने 12वीं क्लास भी पूरी कर ली। बोर्ड में उनके 92 फीसदी अंक आए। तब उनके रिस्तेदारों ने बोला कि उन्हें UPSC की दिशा में बढ़ना चाहिए। इसके बाद उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी में मोतीलाल नेहरू कॉलेज में एडमिशन ले लिया।
हालांकि, आशुतोष पर कई तरह की जिम्मेदारियां भी थीं। ऐसे में उन्हें कॉल सेंटर से लेकर और तरह-तरह की नौकरी करनी पड़ीं। यह उन्हें यूपीएससी से दूर लेकर जा चुका था। हालांकि, अमीर बनने की ख्वाहिश उनमें जिंदा रही। इसके बाद एक एजुकेशन-टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म शुरू किया। इसका नाम IDigitalPreneur है। 11 महीनों में ही यह कंपनी कई करोड़ की बन गई। दौलत उन पर बरसने लगी।