New Delhi: हर किसी की जिंदगी में संघर्ष होता है। हर कोई कुछ न कुछ कठिनाई झेलकर ही सफलता की सीढ़ी चढ़ता है। गोलगप्पे बेचकर क्रिकेट कोचिंग की फ़ीस देने वाले यशस्वी जायसवाल आज भारत के मशहूर बल्लेबाज़ों में से एक हैं। लेकिन उनकी कहानी हर किसी को झकझोर देती है, भावुक कर देती है।
सपने पूरे करने के लिए इंसान को खुद को पूरी तरह झौंक देना पड़ता है। कई बार परिवार के प्यार, माता-पिता की छाया से भी दूर रहना पड़ता है। बचपन से ही क्रिकेटर बनने का पक्का इरादा कर चुके यशस्वी जायसवाल ने 10 साल की उम्र में घर छोड़ दिया। यहां तक कि वह पिछले 10 साल से परिवार के साथ दीवाली का त्योहार नहीं मनाए। बल्कि छुट्टियों का वक्त वह अपनी मेहनत में लगाते।
हर बच्चा दीवाली का सालभर इंतजार करता है। कोई कहीं भी रहे दीवाली पर घर पहुंचने की कोशिश करता है लेकिन 10 साल की उम्र होने के बावजूद…यशस्वी क्रिकेटर बनने के सपने को पूरा करने के लिए अपने परिवार के साथ दीवाली नहीं मना पाए। कई बार इसे लेकर उन्होंने अपने जज्बात बयां किए। यशस्वी जायसवाल ने इसे लेकर सालों पहले इंस्टाग्राम पर एक लंबा-चौड़ा पोस्ट शेयर किया था, जिसमें उन्होंने परिवार के साथ दीवाली न मना पाने का जिक्र भी किया था। जब परिवार के बच्चे अपने घर को जाते थे तब घर से दूर यशस्वी क्रिकेटर बनने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे। पिता के दिखाए ख्वाब को पूरा करने के लिए वो दिनभर परिश्रम करते, रात में टेंट में लौटते तो भी कई बार आराम नहीं कर पाते थे।
यशस्वी जायसवाल ने माता-पिता के साथ तस्वीर शेयर कर एक पोस्ट में बताया कि उन्होंने 10 साल से माता-पिता के साथ दिवाली नहीं मनाई है। जायसवाल ने लिखा कि वो अपने माता-पिता से कितना प्यार करते हैं इसे शब्दों में बताना मुश्किल है। यशस्वी क्रिकेटर बनें, ये उनके पिता का सपना था और पिता के दिखाए सपने पर ही वो आगे बढ़े और खेलना शुरू किया। यशस्वी ने लिखा कि वो अपने पिता की तरह बनना चाहते हैं। जायसवाल जिस मकाम पर हैं, उन्हें वहां तक पहुंचाने के लिए उनके माता-पिता असंख्य बलिदान दिए। 21 साल के यशस्वी जायसवाल ने अपने डेब्यू मैच में ही शतक जड़ दिया ये दोहरा शतक हो सकता था लेकिन उनकी पारी 171 रनों पर सिमट गई।
पिता का सपना पूरा करने के लिए क्रिकेटर बने
इसी मैसेज में उन्होंने माता-पिता के त्याग, बलिदान और उनके प्यार का जिक्र किया था। यशस्वी ने लिखा था, “मैं वहां पहुंचने की कोशिश कर रहा, जहां जाना चाहता हूं. आपके शब्द मुझे हर पल हार न मानने के लिए प्रेरित करते हैं और आपका ये कहना कि मत घबराओ तुम ये कर सकते हो, मुझमें नया जोश भर देता है। मैं आपका शुक्रिया अदा करना चाहता हूं कि आपने मुझे क्रिकेट खेलने का ये सपना दिखाया। ये पिता का सपना था, जिसे पूरा करने के लिए मैंने खेलना शुरू किया।