New Delhi: संगीता एक गरीब परिवार से हैं। उनके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। उनके पिता हरबंश लाल ग्रामीण रोजगार सेवक हैं और अभी हाल ही में नियमित हुए हैं। इससे पहले, इस पद पर उन्हें नाममात्र का ही वेतन मिलता था। माता पिता ने बच्चों को पालने के लिए मेलों में चूड़ियां और खिलौने तक बेचे हैं। इस दौरान संगीता भी उनके साथ काम करती थीं। संगीता ने बचपन से ही संघर्ष देखा है। घर की बड़ी संतान होने के नाते वह माता पिता के साथ काम में हाथ बटांती और खुद भी मेलों में चुड़ियां बेचने जाती थीं।
संगीता के माता-पिता ने उन्हें बड़ी मेहनत से पढ़ाया लिखाया। उन्होंने बेटी को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए चूड़ियां बेचीं। आज बेटी ने उनकी मेहनत के बदले उन्हें गर्व करने का मौका दिया है। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के द्रंग विधानसभा क्षेत्र के शिवाबदार की रहने वाली संगीता ने असिस्टेंट प्रोफेसर बनकर यह साबित कर दिया कि मेहनत के आगे हर परेशानी हार जाती है।वह हिंदी विषय की असिस्टेंट प्रोफेसर बन गई हैं। असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के बाद जब संगीता अपने घर पहुंची तो उनके परिजनों और गांव वालों ने उनका भव्य स्वागत किया।
वह हमेशा से शिक्षक या रिपोर्टर बनने का सपना देखती थीं। उन्होंने दोनों दिशा में अपने प्रयास शुरू किए थे। वह कुछ समय से दूरदर्शन शिमला में एंकरिंग का काम भी कर रही थीं। इसके साथ ही वह शिक्षक बनने की तैयारी में भी जुटी हुई थीं। उनका कहना है कि अगर वह शिक्षक न बनतीं तो रिपोर्टर बन जातीं।अभी भी संगीता सोशल मीडिया पर एक पेज का संचालन कर रही हैं, जिसके माध्यम से वो यहां की संस्कृति को प्रमोट करने का प्रयास करती हैं।
संगीता ने ग्रेजुएशन की पढ़ाई तक माता-पिता के साथ मेलों में चूड़ियां और खिलौने बेचने का काम किया।खास बात ये रही कि कभी उन्होंने इस काम को लेकर शर्म महसूस नहीं की। और आज वह प्रोफेसर के पद पर चयनित हो गईं।