New Delhi : हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, चन्द्र वंश हिंदू धर्म के क्षत्रिय वर्ग के चार प्रमुख वंशों में से एक है। भागवत पुराण के अनुसार चन्द्र वंश में प्रसिद्ध राजा ययाति (नहुष के पुत्र) हुए। ययाति की शादी शुक्राचार्य की बेटी देवयानी हुई थी। देवयानी की असुर पुत्री शर्मिष्ठा से गहरी दोस्ती थी। विवाह के समय शर्मिष्ठा को दहेज़ के रूप में देवयानी के साथ खेलने के लिए दे दिया गया। शुक्राचार्य ने चेतावनी दी कि ययाति शर्मिष्ठा से विवाह नहीं करेगा। शर्मिष्ठा को एक अशोक वाटिका में स्थान दे दिया गया जबकि देवयानी महल में रह रही थी।
सन् 1555 मे युद्धकला में पारंगत श्रीकृष्ण के वंशज अहीरों ने सबसे अहम मोर्चा संभाला और ऐसी तलवारें चलाईं की शेरशाह के सैनिकों के हज़ारों हज़ार मुंड काट रणचंडी को अर्पित कर दिए।
शेरशाह सुरी बुरी तरह पराजित हुआ। pic.twitter.com/IAhJbmqoym— चंद्रवंशी क्षत्रिय राव विक्रम सिहँ यदुवंशी (@Vhm810986Vicky) June 15, 2020
भगवान श्रीकृष्ण के वंशज पिछड़े नहीं हो सकते हैं। लेकिन इन्हें यह स्वयं मानना होगा। मुलायमजी गौसेवा में रुचि रखते थे अतः उन्हें समर्थन मिला। ये नहीं रुचि रखते। pic.twitter.com/Jigh6rEYDD
— शंखनाद 🇮🇳 (@ramkumarmathura) June 15, 2019
#योगमाया कालिका🚩
प्राचीन #इंद्रप्रस्थ दिल्ली🚩योगमाया अवतरण श्रीकृष्ण की बहन यशोदापुत्री के रुप मे हुआ था,श्रीकृष्ण ने
योगमाया मंदिर की स्थापना की थी पहले महाकाली कहलाती थी #भरत कुरुवंश की कुलदेवी🚩फिर पुनःउद्धार पृथ्वीराज के नाना अनंगपाल तोमर ने करवाया, वह कौरव-पाण्डव वंशज pic.twitter.com/JU9oSUlhCz
— दिब्या वर्मा ) हिंद की बेटी🚩 (@0jaihind) October 3, 2020
बाद में देवयानी को बिना ययाति ने शर्मिष्ठा से विवाह कर लिया.ययाति को देवयानी के 2 बेटे और शर्मिष्ठा से 3 बेटे हुए। देवयानी को जब इस बात का पता चला तो उसने यह बात अपने पिता को बता दी. तब शुक्राचार्य ने ययाति को शाप दे दिया कि वह अभी बूढा हो जाये और सारी शक्ति क्षीण हो जाये।शुक्राचार्य ने कहा की अगर उनका कोई पुत्र उनकी वृद्धावस्था लेले और बदले में अपनी जवानी देदे तो वह फिर से जवान हो सकते हैं। इसके बाद ययाति ने पुत्रों के सामने प्रस्ताव रखा कि जो उसे अपनों जवानी देगा उसे ही राज्य मिलेगा।
सबसे छोटे बेटे पुरु ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. कुरुवंश (कौरव पांडव) इन्ही के वंशज हुए हैं। यदु को उसके पिता ययाति ने श्राप दिया था कि वह कभी राजा नहीं बन सकता। वह दक्षिण की ओर आज के मथुरा शहर चला आया और नागा जनजाति में विवाह कर लिया। उस जनजाति में राजा नहीं होते थे, एक परिषद शासन चलाती थी। यदु उस शासक परिषद में शामिल हो कर उसका मुखिया बन गया। उसके बच्चों से अलग-अलग वंश परंपराएं निकलीं जैसे अंधक, भोजक और वृष्णि, जो साथ मिलकर यादवों के नाम से मशहूर हुईं। वसुदेव इसी वंश के थे। वसुदेव का विवाह मथुरा के राजा उग्रसेन की भतीजी देवक की पुत्री देवकी से हुआ था। वसुदेव और देवकी से कृष्ण का जन्म हुआ। वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी थी जिनसे सुभद्रा नामक कृष्ण की एक बहन थीं। इसका विवाह अर्जुन से हुआ और यह अभिमन्यु की माता थीं।
ऐसे हुआ यदुवंश का अंत : महाभारत के युद्ध में अपने पुत्र कौरवों की मृत्यु से दुखी गंधारी ने श्री कृष्ण को श्राप दे दिया कि उनका यदुवंश भी इसी तरह नष्ट हो जाएगा। पौराणिक विवरणों से पता चलता है कि यादवों में विकास की वृद्धि हो चली थी और ये मदिरा-पान अधिक करने लगे थे। कृष्ण-बलराम के समझाने पर भी ऐश्वर्य से मत्त यादव न माने और वे कई दलों में विभक्त हो गये। एक दिन प्रभास के मेले में, जब यादव लोग वारुणी के नशे में चूर थे, वे आपस में लड़ने लगे। वह झगड़ा इतना बढ़ गया कि अंत में वे सामूहिक रूप से कट मरे। इस प्रकार यादवों ने गृह-युद्ध कर अपना अन्त कर लिया। इस तरह से भगवान श्रीकृष्णचन्द्र को छोड़कर एक भी यादव जीवित न बचा।https://twitter.com/JVKu1uQzaq0KsCB/status/1120677564903649280?s=20
यादव भाइयों,
प्रभु श्रीकृष्ण ने अपने सारे जीवन में धर्म-सत्य-न्याय की लड़ाई लड़ी थी।आप भी उन्हीं प्रभु श्रीकृष्ण के वंशज हो और "आपका कर्तव्य" है कि आप भी "धर्म-सत्य और न्याय" की स्थापना हेतु "2019 के महाभारत" में "धर्म-सत्य और न्याय की स्थापना" में @narendramodi का साथ दो.! pic.twitter.com/CnUGabUnrx
— मोदीभक्त पं० अखिलेश मिश्र आज़ाद (@akhilmishra913) January 14, 2019
हम कृष्ण के वंशज हैं, पापियों के विनाश के लिए हीं हमारा जन्म होता है! किसी को संदेह है तो कंस और कौरवों का इतिहास पढ़ ले।
हम ढकोसला नहीं करते, उनके जैसे ढोंगी नहीं हैं हम। बातें चाहे विकास की हो या विचार की। जो कहता हूँ वो करता हूँ, जो करता हूँ वो कहता हूँ।। pic.twitter.com/0fYnJAJqo5
— Tej Pratap Yadav (@TejYadav14) January 24, 2020
जाडेजा भी खुद को भगवान श्री कृष्ण का वंशज मानते हैं। गुजरात के जाड़ेजा यदुवंशियों का ही भविष्य रूप हैं। इनके पूर्वज द्वारका नगरी में श्रीक कृष्ण की प्रजा के रूप में जाने जाते थे।