गांधारी का श्राप हो गया था विफल- धरती पर आज भी जिंदा हैं भगवान श्रीकृष्ण के वंशज

New Delhi :  हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, चन्द्र वंश हिंदू धर्म के क्षत्रिय वर्ग के चार प्रमुख वंशों में से एक है। भागवत पुराण के अनुसार चन्द्र वंश में प्रसिद्ध राजा ययाति (नहुष के पुत्र) हुए। ययाति की शादी शुक्राचार्य की बेटी देवयानी हुई थी। देवयानी की असुर पुत्री शर्मिष्ठा से गहरी दोस्ती थी। विवाह के समय शर्मिष्ठा को दहेज़ के रूप में देवयानी के साथ खेलने के लिए दे दिया गया। शुक्राचार्य ने चेतावनी दी कि ययाति शर्मिष्ठा से विवाह नहीं करेगा। शर्मिष्ठा को एक अशोक वाटिका में स्थान दे दिया गया जबकि देवयानी महल में रह रही थी।

बाद में देवयानी को बिना ययाति ने शर्मिष्ठा से विवाह कर लिया.ययाति को देवयानी के 2 बेटे और शर्मिष्ठा से 3 बेटे हुए। देवयानी को जब इस बात का पता चला तो उसने यह बात अपने पिता को बता दी. तब शुक्राचार्य ने ययाति को शाप दे दिया कि वह अभी बूढा हो जाये और सारी शक्ति क्षीण हो जाये।शुक्राचार्य ने कहा की अगर उनका कोई पुत्र उनकी वृद्धावस्था लेले और बदले में अपनी जवानी देदे तो वह फिर से जवान हो सकते हैं। इसके बाद ययाति ने पुत्रों के सामने प्रस्ताव रखा कि जो उसे अपनों जवानी देगा उसे ही राज्य मिलेगा।
सबसे छोटे बेटे पुरु ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. कुरुवंश (कौरव पांडव) इन्ही के वंशज हुए हैं। यदु को उसके पिता ययाति ने श्राप दिया था कि वह कभी राजा नहीं बन सकता। वह दक्षिण की ओर आज के मथुरा शहर चला आया और नागा जनजाति में विवाह कर लिया। उस जनजाति में राजा नहीं होते थे, एक परिषद शासन चलाती थी। यदु उस शासक परिषद में शामिल हो कर उसका मुखिया बन गया। उसके बच्चों से अलग-अलग वंश परंपराएं निकलीं जैसे अंधक, भोजक और वृष्णि, जो साथ मिलकर यादवों के नाम से मशहूर हुईं। वसुदेव इसी वंश के थे। वसुदेव का विवाह मथुरा के राजा उग्रसेन की भतीजी देवक की पुत्री देवकी से हुआ था। वसुदेव और देवकी से कृष्ण का जन्म हुआ। वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी थी जिनसे सुभद्रा नामक कृष्ण की एक बहन थीं। इसका विवाह अर्जुन से हुआ और यह अभिमन्यु की माता थीं।
ऐसे हुआ यदुवंश का अंत : महाभारत के युद्ध में अपने पुत्र कौरवों की मृत्यु से दुखी गंधारी ने श्री कृष्ण को श्राप दे दिया कि उनका यदुवंश भी इसी तरह नष्ट हो जाएगा। पौराणिक विवरणों से पता चलता है कि यादवों में विकास की वृद्धि हो चली थी और ये मदिरा-पान अधिक करने लगे थे। कृष्ण-बलराम के समझाने पर भी ऐश्वर्य से मत्त यादव न माने और वे कई दलों में विभक्त हो गये। एक दिन प्रभास के मेले में, जब यादव लोग वारुणी के नशे में चूर थे, वे आपस में लड़ने लगे। वह झगड़ा इतना बढ़ गया कि अंत में वे सामूहिक रूप से कट मरे। इस प्रकार यादवों ने गृह-युद्ध कर अपना अन्त कर लिया। इस तरह से भगवान श्रीकृष्णचन्द्र को छोड़कर एक भी यादव जीवित न बचा।https://twitter.com/JVKu1uQzaq0KsCB/status/1120677564903649280?s=20

जाडेजा भी खुद को भगवान श्री कृष्ण का वंशज मानते हैं। गुजरात के जाड़ेजा यदुवंशियों का ही भविष्य रूप हैं। इनके पूर्वज द्वारका नगरी में श्रीक कृष्ण की प्रजा के रूप में जाने जाते थे।

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