New Delhi : देश के सबसे जांबाज सिपाही कहे जाने वाले ब्लैक कैट कमांडो आखिर बनते कैसे हैं? ये सवाल सबके जहन में हमेशा रहता है क्योंकि जब भी देश के एलीट एनएसजी कमांडो दुश्मनों के ख़िलाफ़ ऑपरेशन चलाते हैं तो उस वक्त सबका भरोसा इन पर होता है और लोग यही सोचते हैं कि आख़िर किस भट्टी से तपकर ये कमांडो निकलते हैं। आज हम आपको बताते हैं कि एक एनएसजी का ब्लैक कैट कमांडो कैसे बनता है ताकि वो ऑपरेशन के दौरान अपने काम मे पीछे न हटे इसके लिए इन ब्लैक कैट कमांडो का मनोवैज्ञानिक टेस्ट भी होता है।
तो सबसे पहले जानते हैं कि एनएसजी का एक कमांडो कैसे तैयार होता है।
The IEDs were found in a pressure cooker; the weight yet not clear, it will be confirmed after the investigation: Delhi Police
One ISIS operative was arrested from the site with Improvised Explosive Devices (IEDs), earlier today by Delhi Police Special Cell.
— ANI (@ANI) August 22, 2020
कमांडोज की ट्रेंनिग बहुत ही कठिन होती है जिसका सबसे बड़ा मकसद यह होता है कि अधिक से अधिक योग्य लोगों का चयन हो सके। ठीक उसी तरह से कमांडोज फोर्स के लिए भी कई चरणों में चुनाव होता है। सबसे पहले जिन रंगरूटों का कमांडोज के लिए चयन होता है, वह अपनी-अपनी फोर्सेज के सर्वश्रेष्ठ सैनिक होते हैं। इसके बाद भी उनका चयन कई चरणों से गुजर कर होता है।
अंत में ये सैनिक ट्रेनिंग के लिए मानेसर एनएसजी के ट्रेनिंग सेन्टर पहुंचते हैं। तो यह देश के सबसे कीमती और जांबाज सैनिक होते हैं लेकिन जरूरी नहीं है कि ट्रेनिंग सेंटर पहुंचने के बाद भी कोई सैनिक अंतिम रूप से कमांडो बन ही जाए। 90 दिन की कठिन ट्रेनिंग के पहले भी एक हफ्ते की ऐसी ट्रेनिंग होती है जिसमें 15-20 फीसदी सैनिक अंतिम दौड़ तक पहुंचने में रह जाते हैं। लेकिन इसके बाद जो सैनिक बचते हैं और अगर उन्होंने 90 दिन की ट्रेनिंग कुशलता से पूरी कर ली तो फिर वो देश के सबसे ताकतवर कमांडो बन जाते हैं। ये कमांडो सबसे आखिर में मनोवैज्ञानिक टेस्ट से गुजरते हैं जिसे पास करना अनिवार्य है।
एनएसजी अब ये विचार कर रहा है कि एसपीजी की तर्ज पर एनएसजी के कमांडो का मनोवैज्ञानिक टेस्ट हो। अभी एनएसजी DRDO के तहत तैयार किये गए मनोवैज्ञानिक टेस्ट के जरिये हर तीन महीने में ट्रेनिंग से पास होने वाले 700 से 1000 कमांडो को गुजारता है। लेकिन देश के प्रधानमंत्री और दूसरे VVIP की सुरक्षा करने वाले एसपीजी कमांडो VIENNA TEST SYSTEM के जरिये कंप्यूटराइज्ड मनोवैज्ञानिक टेस्ट से गुजरते हैं। इसके जरिए ज्यादा स्टीक नतीजे आने की उम्मीद रहती है। इसी बात के चलते अब एनएसजी भी खुद को अत्याधुनिक बनाने के मकसद से ये कदम बढ़ा रहा है। इसी मकसद से अब एनएसजी में जवानों का सटीक मनोवैज्ञानिक टेस्ट लेने के लिए VIENNA TEST SYSTEM लाने पर विचार कर रही है।
26/11 Nov 27 2008, Maj. Sandeep Unnikrishnan NSG,7Bihar led commandos(cdo) in Taj Mahal Hotel rescuing number of hostages. When one of his cdo was injured,he fired back at terrorist,rescued the cdo. He continued firing at terrorists but was killed in action. Awarded Ashok Chakra. pic.twitter.com/TeHfzdgYhR
— Jo (@JoBeingjoe) November 27, 2019
It’s a welcome Modi Govt decision to remove NSG commandos from VIP security duties…
And not a day too soon…
It was a wasteful abomination, a complete dilution of the specialist anti-terror force…https://t.co/ceDQ3s7HAi
— Shekhar Gupta (@ShekharGupta) January 12, 2020
Never Say Giveup 🇮🇳🇮🇳NSG COMMANDOS🇮🇳🇮🇳 வந்தே மாதரம் 🙏🙏🙏#சுதந்திர_தின_நல்வாழ்த்துக்கள் pic.twitter.com/hwnh9zW7xl
— இமயம் விஜய் தமிழன் (@imayamvj94) August 15, 2020
The most hazardous of duties in connection with terrorist activities, be action in kidnappings, bombings, hostage taking & assassinations,they stake their lives for safety of the nation.
What is put in to the making of brave commandos of NSG?
Watch here:https://t.co/cYfRC4Jqrz pic.twitter.com/ptlox9V44G— G Kishan Reddy (@kishanreddybjp) November 16, 2019
एनएसजी का गठन भारत की विभिन्न फोर्सेज से विशिष्ट जवानों को छांटकर किया जाता है। एनएसजी में 53 प्रतिशत कमांडो सेना से आते हैं जबकि 47 प्रतिशत कमांडो 4 पैरामिलिट्री फोर्सेज- सीआरपीएफ, आईटीबीपी, आरएएफ और बीएसएफ से आते हैं। इन कमांडोज की अधिकतम कार्य सेवा पांच साल तक होती है। पांच साल भी सिर्फ 15 से 20 प्रतिशत को ही रखा जाता है, बाकी कंमाडोज के तीन साल के पूरे होते ही उन्हें उनकी मूल फोर्सेज में वापस भेज दिया जाता है।