New Delhi : मथुरा के बरसाने में राधा रानी मंदिर है। यह एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। बरसाना में बीचों-बीच एक पहाड़ी है जिसके ऊपर राधा रानी मंदिर स्थित है। इस मंदिर को बरसाना की लाड़ली जी का मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। बरसाना अपने आप में ही बहुत पवित्र जगह है। बरसाना की पहाड़ियों के जो पत्थर हैं वो काले तथा गोरे रंग के हैं, जिन्हें कृष्ण और राधा के अमर प्रेम का प्रतीत मानते हैं। बरसाना से 4 मील की दूरी पर ही नंदगाव है, जहाँ श्रीकृष्ण के पिता बाबा नंद का घर था। बरसाना-नंदगाव मार्ग पर एक संकेत नाम का गाँव है, जहाँ किंवदंती के अनुसार कृष्ण और राधा का पहला मिलन हुआ था।
नारी का गौरव हैं, सम्मान हैं राधा,
भक्ति एवं प्रेम की प्रतिमान हैं राधा।
कृष्ण की महिमा का गुणगान हैं राधा,
बरसाने की भूमि पर विराजमान हैं राधा।आप सभी को राधा रानी मंदिर, बरसाना से राधा अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं।#UPTourism #UmmazingUP #UPNahiDekhaTohIndiaNahiDekha pic.twitter.com/fTj3m3oXuf
— UP Tourism (@uptourismgov) August 26, 2020
राधा रानी मंदिर को ''बरसाने की लाड़ली जी का मंदिर'' के नाम से जाना जाता है। यह प्राचीन मंदिर बेहद ही खूबसूरत लाल और पीले पत्थरों का बना है। राधा-कृष्ण को समर्पित इस भव्य मंदिर का निर्माण राजा वीर सिंह ने करवाया था। यह अद्भुत मंदिर बरसाने का एक दर्शनीय स्थान है। #UPTourism pic.twitter.com/rvWqQ6odbi
— UP Tourism (@uptourismgov) March 25, 2019
#मथुरा राधा रानी मन्दिर बरसाने मे श्रद्धालुओं की रहती है अपार भीड़,मंदिर मे सुरक्षा का नही है कोई बंदोबस्त,@myogiadityanath @Uppolice @mathurapolice @up100 pic.twitter.com/pUlyTndUNI
— आंखों देखी LIVE (@AnkhoDekhiNews1) August 15, 2018
भगवान श्री कृष्ण की सबसे प्रिय गोपी राधा बरसाना की रहने वाली थी। कस्बे के मध्य श्री राधा की जन्मस्थली माना जाने वाला श्री राधावल्लभ मंदिर स्थित है। राधा का जिक्र पद्मा पुराण और ब्रह्म वैवर्त पुराण में भी मिलता है। पद्मा पुराण के अनुसार राधा वृषभानु नामक गोप की पुत्री थी और वृषभानु जाति के वैश्य थे। ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार राधा कृष्ण की मित्र थी और उसका विवाह रापाण/ रायाण (अथवा अयनघोष) नामक व्यक्ति के साथ हुआ था।
कुछ विद्वान मानते हैं कि राधा जी का जन्म यमुना के निकट बसे रावल गाँव में हुआ था और बाद में उनके पिता बरसाना में बस गए। इस मान्यता के अनुसार नन्दबाबा एवं वृषभानु का आपस में गहरा प्रेम था। कंस के द्वारा भेजे गये असुरों के उपद्रवों के कारण जब नंदराय अपने परिवार, समस्त गोपों एवं गोधन के साथ उनके पीछे-पीछे रावल गाँव को त्याग कर चले आये और बरसाना में आकार निवास करने लगे।
राधा रानी मंदिर में राधाष्टमी का पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। राधाष्टमी के दिन राधा रानी मंदिर को फूलों एवं मालाओं से सजाया जाता है। राधाष्टमी का पर्व बरसाना वासियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। जन्माष्टमी के 15 दिन बाद राधाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन पूरे बरसाना में ख़ुशी का माहौल छाया रहता है। राधा रानी मंदिर में 56 भोग लगाया जाता है।
श्री राधा रानी मंदिर,भानुगढ़ पहाड़ियों की चोटी पर स्थित बरसाने की प्रथम पूज्य`प्रेम की देवीश्री राधा रानी का पहला मंदिर है।बरसाना राधा रानी की जन्म स्थली है,और वहाँ के लोग उन्हें प्रेम से लाड़लीजी और श्रीजी पुकारते हैं!होली और राधाष्टमी लाडली लाल मंदिर के विश्व प्रसिद्ध उत्सव हैं pic.twitter.com/yNaqtUZAy8
— रा. सं. प्रा. National Monuments Authority (@NMANEWDELHI) March 9, 2020
मंदिर का निर्माण आज से लगभग 400 वर्ष पूर्व ओरछा नरेश ने कराया था। राधा रानी की प्रतिमा को ब्रजाचार्य श्रील नारायण भट्ट ने बरसाना स्थित ब्रहृमेश्वर गिरि नामक पर्वत में से संवत् 1626 की आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को निकाला था। जन्माष्टमी के पन्द्रह दिन बाद राधा अष्टमी मनाई जाती है। pic.twitter.com/IIonY6xazX
— Jaya_Upadhyaya (@Jayalko1) August 26, 2020
राधाष्टमी के दिन राधा रानी मंदिर में लड्डुओं का प्रसाद का भोग लगाया जाता है और उस प्रसाद को मोरों को खिला दिया जाता है। बाकी प्रसाद को श्रद्धालुओं में बांट दिया जाता है। मोर को राधा रानी का स्वरूप माना गया है। राधा रानी मंदिर में श्रद्धालु बधाई गान गाते हैं और नाच-गाकर राधाष्टमी का पर्व मनाते हैं। राधाष्टमी के पर्व पर भक्त गहवर वन की परिक्रमा भी लगाते हैं।