New Delhi : कुछ क्षण के लिए अंधेरा हो जाने से बेचैन हो जाने वाले हम जरा सोच कर देखें कि कैसे कोई लड़का जिसका पूरा जीवन अंधेरे में बीता, मेथ्स और सांइस के पैचीदा समीकरण सुलझा कर अपनी तकदीर को बदलता है। अक्सर लोग कहते हैं कि उन्हें मेथ्स और सांइस में कोई रुचि नहीं लेकिन एक दृष्टिबाधित लड़का सांइस स्ट्रीम के साथ ही 12वीं में 98 प्रतिशत अंको के साथ टॉप करता है। योग्य होने के बाद भी जब उसे IIT में डिसेबल्ड बताकर एडमिशन नहीं दिया जाता तो वो विदेश जाकर पढ़ाई करता है और अपनी मेहनत के दम पर बन जाता है 50 करोड़ की कंपनी का सीईओ।
#SrikanthBolla #BollantIndustries @SrikanthBolla_
I was hoping to be offered a bit part,but apparently even if I am somehow in this film, they are going to cast a better actor than me to play me. 😂😂😂
"Coming soon, a biopic on Srikanth Bolla"
https://t.co/PEfst16E1F pic.twitter.com/OGZ7YWViGy— Ravi Mantha (@rmantha2) July 1, 2020
Is it possible to overcome your disabilities through abilities? Srikanth Bolla, who has been listed in ‘30 under 30’ by Forbes, ideally overcome the limitations with his skills. Refer:- https://t.co/DCurKDkutr#knowmebetter #indiantalent #SrikanthBolla #inspiring #journey pic.twitter.com/XytHrsr5hw
— Drilers (@drilers) October 15, 2019
ये कोई हवाई बातें नहीं हैं न ही किसी फिल्म की काल्पनिक कहानी है। ये सच्ची कहानी है हमारे देश के श्रीकांत बोला की जिन्होंने अपने जीवन में न जाने कितनी समस्याओं को हरा कर वो कामयाबी हासिल की जो अच्छे खासे पढ़े लिखे लोग हासिल नहीं कर पाते। अगर आप उनके बारे में अभी तक नहीं जानते हैं तो हम आपको बताएंगे उनके जीवन के बारे में जो आज न केवल दृष्टिबाधितों के लिए बल्कि आम लोगों के लिए भी प्रेरणा पुंज हैं।
7 जुलाई 1992 को आंध्रप्रदेश के मछलीपट्टम में जब श्रीकांत पैदा हुए तो खुशियां नहीं मनाई गईं क्योंकि वो दृष्टिहीन थे। यहां तक कि श्रीकांत बताते हैं कि उनके पैदा होने पर आस-पड़ोस वालों ने उनके मां-बाप से उन्हें उसी समय मार देने तक को कहा था ताकि आगे चलकर वो उनके लिए बोझ न बन जाएं। ऐसे ही समाजिक ताने सुनकर उनका बचपन बीता। वो किसी की बात का बुरा नहीं मानते थे। आज जब वो अपने बारे में बताते हैं तो कहते हैं कि मेरा धैर्य ही मुझे यहां तक लाया। जब वो पढ़ने स्कूल गए तो उनके जैसा उनके गांव में तो क्या उनके शहर भर में कोई नहीं था इसलिए मुश्किल से उन्हें एक सामान्य स्कूल में एडमिशन मिला। वो पढ़ने में इतने होशियार थे कि बिना पूरी ब्रेल सामग्री के सामान्य बच्चों से ज्यादा अंक लाते थे और इसके बाद तो वो कर क्लास में टॉप करने लगे।
आठवीं के बाद 9वीं कक्षा से मैथ्स और साइंस की कठिन पढ़ाई शुरू हो जाती है, जिसमें आमतौर पर दृष्टिबाधितों को उनकी क्षमता को देखते हुए प्रवेश न देकर उन्हें भाषा संबंधी विषय ही पढ़ाए जाते हैं। श्रीकांत के साथ भी यही हुआ वो जब आठवीं पास कर 9वीं में पहुंचे तो उन्हे मैथ्स और साइंस के विषय नहीं दिए गए। जबकि उनकी रुचि इन्हीं विषयों में थी इसके लिए उन्होंने कानूनी लड़ाई लड़ी जिसके बाद उन्हें ये विषय पढ़ने की इजाजत मिली। 10वीं अच्छे अंकों के साथ पास कर उन्होंने साइंस स्ट्रीम में जाना चाहा पर यहां भी वही अड़चन आई। एक बार फिर उन्हें कानून की मदद लेनी पड़ी जिसके बाद उन्हें अपने रिस्क पर इस स्ट्रीम में पढ़ाई करने की अनुमती दी गई। श्रीकांत ने अपनी सभी अड़चनों को अपनी प्रतिभा के दम पर जवाब दिया उन्होंने 12वीं में साइंस स्ट्रीम के साथ 98 प्रतिशत अंक लाकर सभी को चौंका दिया।
12वीं में टॉप करने के बाद जब उन्होंने IIT में एडमिशन लेना चाहा तो यहां भी उनकी योग्यता को नहीं उनकी अक्षमता को देखा गया। IIT ने अपने नियमों का हवाला देते हुए जब उन्हें संस्थान में एडमिशन देने से मना कर दिया तो उन्होंने देश के इस सर्वश्रेष्ठ इंजिनियरिंग इंस्टिट्यूट को अपने ही अंदाज में जवाब दिया। उन्होंने अमेरिका के विश्वप्रसिद्ध MIT से ग्रैजुएशन किया। यहां वो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहले ब्लाइंड स्टूडेंट थे। जिन्हें कभी पीटी क्लास तक के लायक नहीं समझा जाता था उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर दृष्टिबाधित क्रिकेट और शतरंज खेला। उन्हें अमेरिका में ही कई कॉर्पोरेट अवसर दिए गए थे, लेकिन वे भारत में कुछ नये आईडिया की तलाश में थे जिस कारण वो अमेरिका से वापस भारत लौट आए।
भारत में आने के कुछ सालों बाद ही उन्होंने 2012 में रतन टाटा के सहयोग से बोलेंट कंपनी की स्थापना की। आज ये कंपनी कई सौ लोगों को रोजगार मुहैया कराती है। इस कंपनी में पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए नगरपालिका के कचरे या गंदे कागज से पर्यावरण के अनुकूल पुनर्नवीनीकरण क्राफ्ट पेपर का उत्पादन होता है।
यहां पुनर्नवीनीकरण कागज से पैकेजिंग उत्पादों, पेड़ पौधों की पत्तियों से डिस्पोजेबल उत्पादों और पुनर्नवीनीकरण कागज और पुन: उपयोग योग्य उत्पादों के लिए प्लास्टिक को रीसाईकल किया जाता है। बोलेंट ने स्थापना के बाद से औसतन 20% की औसत वृद्धि के साथ 150 करोड़ रुपये का कारोबार किया। आज इस कंपनी की वैल्यू 50 करोड़ तक है और श्रीकांत इस कंपनी के मालिक हैं। उन्हें भारत सरकार ने कई पुरस्कारों से नवाजा भी है।