New Delhi : पद्मश्री फूल बासन बाई जो अपने आप में ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिये महिला सशक्तिकरण की मिसाल हैं। जिनकी कहानी सुन कभी मुख्यमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक द्रवित हो उठे उनकी कहानी आज आपको भी जाननी चाहिए। एक लड़की जिसे 6 साल की उम्र से ही अपने माता पिता के साथ उनके चाय के ठेले पर बर्तन मांजने पड़े। जिसे खाने के लिए रोज तरसना पड़ता। घर में गरीबी इतनी कि मां बाप जब बेटी का पेट नहीं भर सके तो उसकी 10 साल की उम्र में शादी कर दी। ऐसी तमाम समस्याएं जिसकी जिंदगी में आईं और उसने हार मानने की बजाए अपने आपको इतना सक्षम बनाया कि आज लाखों ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर होना सिखा रही हैं।
Phoolbasan Bai Yadav is from a small village in Chhattisgarh. Got married at the age of 10, became mother at 15, spent 20 years as cattle herder with her husband. As a child, her family didn’t have food to feed her. As a mother, she saw her kids sleeping without having any food. pic.twitter.com/YISqSQjpGt
— Soumya Aggarwal (@SoumyaAgg92) June 24, 2018
छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले की रहने वाली फूलबासन बाई का जन्म एक गरीब आदिवासी परिवार में हुआ था। परिवार की गरीबी का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि जब मां बाप 10 साल की लड़की को पालने में असक्षम हुए तो उन्होंने उसकी शादी कर दी। मां-बाप ने 10 साल की फूलबासन की शादी इसलिए इतनी जल्दी कर दी कि शायद अब उनकी बेटी की जिंदगी उसके ससुुराल में जाकर सुधर जाए। लेकिन फूलबासन की जिंदगी में दुख जैसे उसे विरासत में मिले थे, जो कि लंबे समय तक उनके साथ रहे। 10 साल की फूल जब बाल वधु बन ससुराल आईं तो यहां भी हालात लगभग वैसे ही थे। 6 सााल के अंतराल में फूल 4 बच्चों की मां बन गईं। अब बड़े परिवार की जिम्मेदारी पति को बोझ जैसी लगने लगी। जिस फूलबासन ने अपना बचपन एक टाइम का खाना खाकर गुजार दिया वो गरीबी के कारण अपने बच्चों का भी पेट नहीं भर सकी। इसके लिए फूलबासन को भीख तक मांगनी पड़ी।
फूलबासन आज रोते हुए कहती हैं कि उन्हें पढ़ने की बहुत इच्छा थ लेकिन वो गरीबी के कारण जैसे तैसे पांचवी तक पढ़ सकीं। शादी के बाद पेट पालने के लिए उन्होंन बकरियां और दूसरों के मवेशियों को चराना शुरू किया। इसके बाद खुद के मवेशी खरीदे और दूध से पैसा कमाना शुरू किया। फूलबासन ने इतनी गरीबी में रहकर भी एक सपना देखा था, वो सपना था कि जिस तरह उन्हें सालों सिर्फ भरपेट भोजन के लिए तरसना पड़ा इस तरह कोई दूसरा न तरसे। इसलिए जब उनकी आर्थिक स्थिति सुधरी तो उन्होंने ऐसे घरों में जाकर कुछ अनाज देने की शुरुआत की जहां कई दिनों से खाना नहीं बनता था। उनके ऐसा करने से और भी लोग प्रभावित हुए और उनका ये नेक विचार अब मुहिम बन गया।
Phoolbasan Bai Yadav, founder, Maa Bamleshwari Janhit Kare Samiti in Chattisgarh felicitated with BT's Most Powerful Women Impact Awards #BTMPW2018 @phoolbasanbai pic.twitter.com/H9fCGdzqk2
— Business Today (@BT_India) September 5, 2018
फूलबासन बाई के साथ कुछ सालों में पूरे जिले भर की महिलाएँ साथ आईं जिससे एक स्वं सेवी संगठन तैयार हो गया। साल 2001 में उन्होंने 2 रुपये और दो मुट्ठी चावल के नाम से संगठन बनाया। इस संगठन का काम महिलाओँ को आत्मनिर्भर बनाना था। धीरे धीरे संगठन ने डेयरी, मछली पालन, पशुपालन, खेतों के लिए गोबर से खाद बनाना जैसे बहुत से घरेलू कामों के जरिये प्रदेश की लाखों महिलाओं को रोजगार दिया। उनके इस नेक काम के लिए 2012 में उन्हें राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। इसके साथ ही उन्हें कई सम्मान मिल चुके हैं।