बेटे को पढ़ाने के लिये पिता ने किडनी बेचने का बना लिया था मन- आईपीएस है गरीब किसान का बेटा

New Delhi : संघ लोक सेवा आयोग यानी UPSC की परीक्षा देकर हर साल लाखों युवा आईएएस और आईपीएस जैसे रुतबे वाले पद के लिए अपनी किस्मत आजमाते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार, झारखंड में इस नौकरी के लिए बड़ा सम्मान होता है। यहां का हर परिवार चाहता है कि उनके परिवार का कोई सदस्य इस रुतबे वाली नौकरी को पा सके। इसके लिए विद्यार्थी से लेकर उसका पूरा परिवार कई त्याग उठाने को राजी हो जाता है। आज हम आपको ऐसे ही परिवार के एक पिता की कहानी बताएंगे जो अपने बेटे को पढ़ाने के लिए अपनी किडनी तक को बेचने की बात कर चुके थे।

लेकिन जब बेटे ने समझाया तो आखिर उन्होंने अपने खेत को बेचकर बेटे की पढ़ाई के लिए पैसा जुटाया। हम बात कर रहे हैं। झारखंड के इंद्रजीत महथा की जो आज आईपीएस ऑफिसर हैं। उन्होंने साल 2008 में दूसरे प्रयास में परीक्षा पास की थी।
कहानी भले ही पुरानी हो लेकिन जो भी व्यक्ति जिस समय भी उनकी इस संघर्ष भरी जिंदगी के बारे में जानता है उसे नई ऊर्जा ही मिलती है। इसके पीछे कारण है इंद्रजीत को वो मेहनत जिसने हर मुसीबत को ठेंगा दिखाकर अपने सपनों को पूरा किया। उनके इस संघर्ष में उनके पिता ने भी बड़े त्याग किए। कच्चे घर में रहते हुए इंद्रजीत ने पढ़ाई की। यहां तक कि उनके पास नई एडीशन की किताबें खरीदने तक के पैसे नहीं होते थे। इंद्रजीत खुद बताते हैं कि उन्होंने पुरानी और रद्दी हो चुकी किताबों से पढ़ाई की।
जब इंद्रजीत को गांव छो़ड़ अपनी परीक्षा की तैयारी के लिए दिल्ली आना पड़ा तो उनके पास पैसे नहीं थे तब उनके पिता ने अपनी किडनी बेच कर पैसे जुटाने का मन बनाया था। ये जानकर बेटे ने पढ़ाई छोड़ने का फैसला किया इंद्रजीत के इस फैसले के आगे पिता की एक न चली और उन्होंने ये जिद छोड़ अपने खेत बेचकर पैसे जुटाए। एक किसान के लिए उसके खेत उसकी औलाद से कम नहीं होते लेकिन पिता को अपने बेटे पर पूरा विश्वास था। सबसे बड़ी बात ये है कि जिस जगह के इंद्रजीत हैं। वहां शायद ही इस पद के बारे में कभी किसी ने सुना हो। पिछले पचास-साठ सालों से वहां से कोई नहीं बना।

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Posted by Akshat Singh on Thursday, September 16, 2010

एक इंटरव्यू में इंद्रजीत ने अपने संघर्ष को बताते हुए कहा कि जिस घर में वो रहते थे, वह मिट्टी और खपरैल से बना था। एक समय ऐसा आया था कि जब उस घर में भी दरारें आ गई थीं। मजबूरी में उनकी मां और दोनों बहनों को घर छोड़कर मामा के घर जाना पड़ा, लेकिन वो नहीं गए, क्योंकि उनकी पढ़ाई का नुकसान होता। इंद्रजीत आगे बताते हैं कि केवल एक आदमी के सहयोग से उनके पिताजी ने खुद घर बनाया।

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