New Delhi : सबके प्रिय देवों के देव महादेव अपने शांत और त्याग के लिए जाने जाते हैं। जब समुद्र मंथन से निकले विष का निपटान किसी से न हुआ तो शिव इसे पीने के लिए आगे आए। शिव का अर्थ ही है परम कल्याणकारी। यह जगत भगवान शिव की ही सृष्टि है। वे ऐसे देव हैं जो लय और प्रलय को अपने अधीन किए हुए हैं। शिव ऐसे देव हैं जिनमें परस्पर विरोधी भावों का सामंजस्य देखने को मिलता है। उनके मस्तक पर चंद्र है तो गले में विषधर। वे अर्धनारीश्वर होते हुए भी कामजित हैं। गृहस्थ हैं तो श्मशानवासी और वीतरागी भी। सौम्य आशुतोष हैं तो भयंकर रुद्र भी। शिव की पूजा तो वैसे साल भर होती है लेकिन सावन मास में शिव उपासना का महत्व बढ़ जाता है।
भोलेनाथ ने स्वयं कहा है—
द्वादशस्वपि मासेषु श्रावणो मेऽतिवल्लभ: । श्रवणार्हं यन्माहात्म्यं तेनासौ श्रवणो मत: ।।
श्रवणर्क्षं पौर्णमास्यां ततोऽपि श्रावण: स्मृत:। यस्य श्रवणमात्रेण सिद्धिद: श्रावणोऽप्यत: ।।
अर्थात मासों में श्रावण मुझे अत्यंत प्रिय है। इसका माहात्म्य सुनने योग्य है अतः इसे श्रावण कहा जाता है। इस मास में श्रवण नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होती है इस कारण भी इसे श्रावण कहा जाता है। इसके माहात्म्य के श्रवण मात्र से यह सिद्धि प्रदान करने वाला है, इसलिए भी यह श्रावण संज्ञा वाला है।
मान्यता है कि भोलेनाथ सावन मास में ही धरती पर अवतरित होकर अपने ससुराल गए थे। ससुराल में उनका जलाभिषेक के साथ भव्य स्वागत किया गया था। इसलिए पौराणिक मान्यता के अनुसार सावन में भोलेनाथ हर साल ससुराल आते हैं और धरतीवासी उनका जलाभिषेक और विभिन्न तरीकों से भव्य स्वागत करते हैं। एक अन्य कथा के अनुसार मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकंडेय को सावन मास में भगवान शिव की तपस्या करने से लंबी उम्र का वरदान मिला था इसलिए इस मास में शिव पूजा की जाती है। साथ ही समुद्र मंथन भी इसी महीने मे हुआ था जिसके बाद निकले विष को शिव ने अपने गले में धारण कर लिया था। ये देख सभी देवी देवताओं और असुरों ने विष का प्रभाव कम करने के लिए शिव पर जलाभिषेक किया था।
सावन में पूजा अर्चना के साथ साथ रहन-सहन और खान-पान का भी विशेष ध्यान रखाना पड़ता है। जैसे शिवलिंग पर हल्दी न चढ़ाएं, दूध का सेवन न कम से कम करें। बुजुर्गों और बड़ों का अपमान न करें। मासाहार न करें। इसके साथ ही हरी पत्ते वाली सब्जियों के सेवन से बचें क्योंकि इनमें जल्दी कीड़े लग जाते हैं।