New Delhi : पाकिस्तान एक वक्त अमेरिका का भरोसेमंद हुआ करता था। यही वजह थी कि अमेरिका के पूर्ववर्ती प्रशासनों की तरफ से जहां उस पर आंख मूंद कर भरोसा किया जाता रहा तो वहीं पाकिस्तान से उस भरोसे का बेजा इस्तेमाल कर खूब फायदा उठाया। लेकिन, आज चीन के साथ खड़े पाकिस्तान से अमेरिका का भरोसा पूरी तरह उठ चुका है। ट्रंप प्रशासन चीन के खिलाफ बहुपक्षीय कार्रवाई की तैयारी में है, ऐसे में पाकिस्तान अब उसके लिए कोई कोई मायने नहीं रख रहा है।
Pakistan no longer retains ‘same strategic firm’, US gearing up for ‘bigger battle’ with China: Think tank https://t.co/NDPqM66wuS
— FlyingBizDeals (@BizFlying) July 11, 2020
यूरोपीय थिंक टैंक का कहना है कि अमेरिका के पूर्ववर्ती प्रशासनों की तरफ से पाकिस्तान को रणीतिक उद्देश्य के लिए मदद ली जाती थी, लेकिन अब इस्लामाबाद उसके सामरिक उद्देश्य के लिए कोई मायने नहीं रखता है। इसकी बजाय ट्रंप प्रशासन ‘ड्रैगन’ के खिलाफ एक बड़ी और बहुपक्षीय लड़ाई के लिए तैयार हो रहा है।
यूरोपीय फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज (ईएफएसएएस) के मुताबिक, हकीकत ये है कि चीन का सदाबहार दोस्त पाकिस्तान अब अमेरिका के लिए वैसा आकर्षण नहीं रखता है जैसा कि एक बार अमेरिकी विदेश विभाग की रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया था कि इस्लामाबाद को 1998 के अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के तहत “देश विशेष की चिंता” (सीपीसी) के रूप में नामित किया गया, और इसे 2019 में सीपीसी के रूप में फिर से नामित किया गया।
विदेश विभाग की रिपोर्ट ने इस विचलित करने वाली वास्तविकता पर भी ध्यान आकर्षित किया कि पाकिस्तानी मदरसों ने कथित तौर पर ‘चरमपंथी के सिद्धांत’ को पढ़ाना जारी रखा है। इसके साथ ही कई मदरसों ने सरकार के साथ पंजीकरण करने या वित्त पोषण के अपने स्रोतों को बताने, विदेशी छात्रों को वैध वीजा, बैंकग्राउंड की जांच और कानून द्वारा आवश्यक सरकार की सहमति के मामले में विफल रहे।
From 1970-2019, China lifted its GDP from US$92.6 billion to US$14.3 trillion, and South Korea from US$9 billion to US$1.6 trillion, Pakistan’s GDP has grown from US$10 billion to just US$278.2 billion. worse than Bangladesh US$9 billion to US$302billion.https://t.co/PEKrQjO8Lu
— Salahuddin Gandapur (@gandapur) July 11, 2020
अप्रत्याशित रूप से, अमेरिका-तालिबान वार्ता को सुविधाजनक बनाने में पाकिस्तान की भूमिका को स्वीकार करने के बावजूद, यह रिपोर्ट उस कुटिल भूमिका को इंगित करने में विफल नहीं हुई जो पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में जारी रखी थी। इसके अलावा, अफगानिस्तान में आतंकवादी संगठनों को पाकिस्तान की तरफ से मिल रहे समर्थन ने भी इस ओर इशारा किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगानिस्तान ने अपनी सीमाओं की रक्षा में महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रहा है विशेष रूप से पाकिस्तान और ईरान की सीमा पर।