New Delhi : हिंदू पंचांग का तीसरा माह ज्येष्ठ माह शुरु हो चुका है। जेठ के महीने में मंगलवार को भगवान हनुमान की आराधना से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। सनातन धर्म में ऐसी मान्यता है कि जो भक्त बजरंगबली की सच्ची श्रद्धा और भक्ति से पूजा करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस माह का यूं तो हर दिन ही विशेष महत्व रखता है लेकिन इस माह के हर मंगलवार को बड़ा मंगल की संज्ञा दी गई है।
नमो नमः,
ज्येष्ठ माह के प्रथम मंगलवार(बडा मंगल) पर रात्रि 12 बजे वैदिक मंत्रोच्चार के साथ हनुमानजी महाराज के पट खुलने के साथ ही मंगल आरती का दर्शन #lucknowbadamangal #Lucknow #badamangal #JaiShreeRam #JaiShriRam 🙏🙏🚩@myogiadityanath @CMOfficeUP pic.twitter.com/R0c5wIyUhs— Nikhil Mishra (@nikhilm299) May 12, 2020
कोरोना आपदा और लॉकडाउन की वजह से देशभर के मंदिर तो बंद हैं। इस वजह से श्रद्धालु तो नहीं पहुंचे मंदिरों में लेकिन आज पुजारियों ने श्रद्धा के साथ हनुमान जी का श्रृंगार, अभिषेक, पूजन वंदन किया गया। मंदिर में मौजूद पुजारियों द्वारा भगवान की आराधना की गई। प्रमुख मंदिर में भोर की आरती श्रद्धा और भक्ति के साथ की गई।
बजरंगबली को भगवान शिव का 11 वां अवतार माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि कलियुग में भी बजरंगबली एकमात्र ऐसे अवतार हैं जो धरती पर ज़िंदा हैं। मुश्किल वक्त में याद करने पर बजरंगबली अपने भक्तों की रक्षा और सहायता करते हैं। कहते हैं हनुमान जी का जन्म तो दिवाली के एक दिन पहले यानी नरक चतुदर्शी के दिन हुआ था लेकिन उन्हें अमरत्व का वरदान ज्येष्ठ मास के पहले मंगलवार को मिला था। इसी कारण ज्येष्ठ माह के मंगल को बड़ा मंगल मंगल कहते हैं। बड़ा मंगल को बजरंगबली की निष्ठापूर्वक पूजा करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं। इस वर्ष ज्येष्ठ माह का आरंभ आठ मई को हो चुका है जोकि ज्येष्ठ पूर्णिमा के साथ पांच जून का खत्म होगा। इस बार चार बड़े मंगल होंगे। पहला बड़ा मंगल 12 मई, दूसरा 19 मई, तीसरा 26 मई और चौथ दो जून को होगा।
जिन लोगों के घर-परिवार में हमेशा झगड़े होते रहते हैं उन्हें बड़ा मंगलवार के दिन किसी नदी में लाल मसूर की दाल प्रवाहित करनी चाहिए। इस दौरान हनुमान जी का ध्यान करें। परेशानी दूर हो जाएगी। बजरंगबली को प्रसन्न करने और उनकी कृपा हासिल करने के लिए मीठे पूएं चढ़ाएं। गुड़ के बने सात पूएं चढ़ाने से आपकी सारी मनोकामनाएं भी पूरी होंगी। जय श्रीराम।