New Delhi : ऋषि कपूर के जाने से महानायक अमिताभ बच्चन काफी दुखी हैं। बिग बी ने सबसे पहले उनके निधन की जानकारी सोशल मीडिया पर दी थी। अब एक बार फिर उन्होंने ऋषि को याद किया है। अमिताभ बच्चन ने ट्विटर अकाउंट पर एक वीडियो सॉन्ग शेयर किया है। यह सॉन्ग उनकी फिल्म 102 नॉट आउट का है। इसमें अमिताभ और ऋषि कपूर ने साथ काम किया था। वीडियो में गाने के साथ फिल्म के कुछ सीन्स भी नजर आ रहे हैं। इसे पोस्ट करते हुए अमिताभ ने कैप्शन में लिखा – वक्त ने किया क्या हसीं सितम…तुम रहे न तुम, हम रहे न हम।
T 3517 – Waqt ne kiya kya haseen sitam .. Tum rahe na tum, Hum rahe na hum .. pic.twitter.com/JhDPneL3V8
— Amitabh Bachchan (@SrBachchan) May 1, 2020
बिग बी के इस पोस्ट पर उनके फैन्स ऋषि कपूर को श्रद्धांजलि दे रहे हैं। अमिताभ और ऋषि कपूर ने आखिरी बार फिल्म 102 नॉट आउट में काम किया था। इसमें ऋषि ने उनके बेटे की भूमिका निभाई थी। पिता बेटे के रिश्ते पर बनी इस फिल्म को बहुत पसंद किया गया। इससे पहले भी दोनों सितारे अमर अकबर एंथोनी, अजूबा, कुली और नसीब जैसी शानदार हिट फिल्मों में साथ काम कर चुके हैं।
इससे पहले ऋषि कपूर के देहांत पर अमिताभ बच्चन ने 30 अपैल की रात को ब्लॉग पर अपनी भावनाएं जाहिर की हैं। उन्होंने यह भी बताया कि कभी भी ऋषि को अस्पताल में मिलने नहीं गये और इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि वे संकट के उन पलों में उनके चेहरे को नहीं देख सकते थे। दोनों ने पहली बार ‘कभी कभी’ (1976) में और आखिरी बार ‘102 नॉट आउट’ (2018) में साथ काम किया था।
देर रात अमिताभ ने अपने ब्लॉग में इमोशनल होते हुए लिखा- मैंने ऊर्जावान, चुलबुला, आंखों में शरारत लिए चिंटू के दुर्लभ पलों को देखा था। जब एक शाम मुझे राजजी के घर पर आमंत्रित किया गया था। इसके बाद मैंने उन्हें अक्सर आरके स्टूडियो में देखा, जब वे फिल्म ‘बॉबी’ के लिए प्रशिक्षित हो रहे थे। और अभिनय की बारीकियां सीख रहे थे। वे आत्मविश्वास के साथ चलते थे जैसे उनके दादा पृथ्वीराज जी चलते थे।
हमने कई फिल्मों में साथ काम किया। जब वे अपनी लाइन बोलते थे, तो आपको उनके हर शब्द पर भरोसा होता था। उनका कोई विकल्प नहीं था। जिस दक्षता से वे गानों में लिप्सिंग करते थे, वैसा और कोई नहीं कर सकता। सेट पर उनका खिलंदड़ स्वभाव बेहद प्रभावी होता था। गंभीर दृश्यों पर भी वे हास्य ढूंढ लेते थे और सभी एकदम से हंस पड़ते थे।
न सिर्फ सेट पर… किसी औपचारिक समारोह में भी उनका व्यवहार ऐसा ही होता था। वे माहौल को हल्का-फुल्का बनाये रखते थे। अगर सेट पर वक्त मिलता था तो वो ताश निकाल लेते थे और दूसरों को खेलने के लिए बुला लेते थे। इस गेम में गंभीर स्पर्धा होती थी। यह मनोरंजन मात्र नहीं बचता था। इलाज के दौरान उन्होंने अपनी हालत पर कभी अफसोस नहीं जाहिर किया। हॉस्पिटल जाते वक्त वे हमेशा कहते रहे कि रूटीन विजिट है। जल्द फिर मिलते हैं। जीवन में आनंद से जीने का जीन उन्हें अपने पिता से विरासत में मिला था। मैं उनसे मिलने कभी अस्पताल नहीं गया क्योंकि मैं उनके हंसमुख चेहरे पर संकट नहीं देखना चाहता था। लेकिन एक बात तय है, जब वे गए तो उनके चेहरे पर एक सौम्य मुस्कान थी।