New Delhi : अगर आप में आगे बढ़ने का जुनून हो। आप जीवन में कुछ हासिल करना चाहते हों और सही दिशा में मेहनत करें तो आपका रास्ता किसी भी तरह की बाधा नहीं रोक पाती। आप हर हाल में लक्ष्य हासिल कर ही लेते हैं। मध्यप्रदेश के पन्ना जिला पंचायत के नये मुख्य कार्यपालिका अधिकारी (CEO) Balaguru के इसके जीते-जागते उदाहरण बन गये हैं। उनके माता पिता मजदूरी करते थे और वे बहुत अभावों में पढ़कर IAS बन गये। उन्होंने जरूरत पड़ने पर सिक्यूरिटी गार्ड की नौकरी भी की।
It takes immense strength of conviction to give up on a well paying job to chase a dream, especially when one comes from a background of poverty. But that is exactly what Balaguru did to achieve his dream of becoming an IAS Officer. Read more at https://t.co/8KOHPG8rXw. pic.twitter.com/n9U9fxShOp
— SharonPly (@SharonPlyIndia) February 11, 2019
An interaction with tribal people of Koodan village… An interior village in panna tiger reserve pic.twitter.com/ZRg71c0fWL
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— Balaguru IAS (@BalagurukIAS) February 16, 2020
मूलरूप से तमिलनाडु राज्य के अरावकुरिची के गांव थेरापडी के निवासी इस युवा आईएएस अधिकारी की संघर्षपूर्ण जीवन गाथा बेहद दिलचस्प, रोमांचकारी और प्रेरणादायी है। 32 साल के बालागुरु ने अब तक जहां जहां काम किया है वहां की कार्यप्रणाली भी पूरी तरह से बदल गई है। उनका नाम सबसे तेजतर्रार अफसरों में गिना जाता है।
वर्ष 2014 में यूपीएससी परीक्षा उत्तीर्ण कर आईएएस अधिकारी बनने वाले बालागुरू ने बताया – बचपन से ही उनका सपना कलेक्टर बनने का था, लेकिन आर्थिक तंगी और गरीबी के चलते सपने को पूरा करना सहज नहीं था। उनके पिता कुमारसामी खेतिहर मजदूर थे तथा मां मवेशी पालकर किसी तरह घर चलाती थीं। सरकारी स्कूल में शुरुआती शिक्षा के बाद उन्होंने चार हजार रुपए वेतन के लिए एक अस्पताल में सिक्यूरिटी गार्ड की नौकरी की। नाइट शिफ्ट में सुरक्षागार्ड की नौकरी करते हुये पत्राचार कोर्स से स्नातक की डिग्री हासिल की और इस दौरान बहन जानकी का विवाह भी कराया।
यूपीएससी की परीक्षा पास करने के बाद बालागुरू ने इस बात का जिक्र मीडिया के साथ करते हुए बताया कि अपने सपने को पूरा करने के लिये वे आगे बढ़ें, इसके पूर्व बहन की शादी कर उसे सेटल करना चाहते थे। संघर्ष के दिनों को याद करते हुये बालागुरू बताते हैं – परीक्षा की तैयारी के लिये न्यूज पेपर पढऩे वह नाई की दुकान में जाते थे।
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Learning Never ends… pic.twitter.com/Q9Gu9OImFU
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Donate blood.. Save lives pic.twitter.com/yy9wqFnB8O
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फिर उन्होंने चेन्नई की पब्लिक लाइब्रेरी में भी जाना शुरू किया, जहां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले कई युवकों से परिचय हुआ। लगातार तीन बार असफलता मिली और चौथी बार कामयाब हुये। अपनी इस कामयाबी का श्रेय अपनी माँ को देते हुए उन्होंने कहा कि वे शासकीय सेवा में आने के बाद से अपने पिता व मां को हमेशा अपने पास ही रखते हैं।