New Delhi : कानपुर से 60 किमी दूर घाटमपुर ब्लॉक में मां कुष्मांडा देवी का अद्भुत मंदिर है। दुर्गा के नौ रूपों में से एक रूप देवी कुष्मांडा इस प्राचीन मंदिर में लेटी हुई मुद्रा में हैं। पिंड स्वरूप में लेटी मां कुष्मांडा से लगातार पानी रिसता रहता है। कहते हैं इस जल को पीने से कई तरह की बीमारियां दूर हो जाती हैं। हालांकि, यह अब तक रहस्य बना हुआ है कि पिंडी से पानी कैसे निकलता है। तो आइए जानते हैं माता कुष्मांडा की कहानी।
शिव महापुराण के अनुसार, भगवान शंकर की पत्नी सती के मायके में उनके पिता राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया था। इसमें सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया था। लेकिन शंकर भगवान को निमंत्रण नहीं दिया गया था। माता सती भगवान शंकर की मर्जी के खिलाफ उस यज्ञ में शामिल हो गईं। माता सती के पिता ने भगवान शंकर को भला-बुरा कहा था, जिससे अक्रोशित होकर माता सती ने यज्ञ में कूद कर अपने प्राणों की आहुति दे दी। माता सती के अलग-अलग स्थानों में नौ अंश गिरे थे। माना जाता है कि चौथा अंश घाटमपुर में गिरा था। तब से ही यहां माता कुष्मांडा विराजमान हैं।
मंदिर के पुजारी के मुताबिक, मां कुष्मांडा की पिंडी कितनी पुरानी है, इसकी गणना करना मुश्किल है। घाटमपुर क्षेत्र कभी घनघोर जंगल था। उस दौरान एक कुढाहा नाम का ग्वाला गाय चराने आता था। उसकी गाय चरते चरते मां की पिंडी के पास आ जाती थी और पूरा दूध माता की पिंडी के पास निकाल देती थी। जब कुढाहा शाम को घर जाता था तो उसकी गाय दूध नहीं देती थी। एक दिन कुढाहा ने गाय का पीछा किया तो उसने सारा माजरा देखा। यह देख उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने यह बात गांव में लोगों को बताई। सबने जाकर देखा तो माता कुष्मांडा की पिंडी मिली।
पिंडी से निकलने वाले पानी को लोग माता का प्रसाद मानकर पीने लगे। पुजारी कहते हैं कि अगर सूर्योदय से पहले नहा कर छह महीने तक इस नीर का इस्तेमाल किसी भी बीमारी में करे तो उसकी बीमारी सौ फीसदी ठीक हो जाती है। तालाब में नहीं होता पानी कम मंदिर पास बने तलाब में कभी पानी नहीं सूखता है। बुजुर्ग राम सिंह के मुताबिक बारिश हो या नहीं इस बात का तालाब पर कोई असर नहीं पड़ता। सूखा भी पड़ जाए तो इसमें पानी कम नहीं होता। उन्होंने अपनी उम्र 65 बताते हुए दावा किया कि कभी इसे सूखते नहीं देखा।