New Delhi : उत्तर प्रदेश की Yogi Adityanath की सरकार ने लखनऊ में CAA के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों के पोस्टर लगाने केमामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। आज गुरुवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि कोई क़ानून आपके फ़ैसले के पक्षों नहीं है। कोर्ट ने यह मामला बड़ी बेंच को भेज दिया है।
UP सरकार की ओर से सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 95 लोग शुरुआती तौर पर पहचाने गये जिनका पोस्टर लगाया गयाहै। सुप्रीम कोर्ट ने तर्कों को मानने से मना करते हुए कहा कि ऐसा कोई क़ानून नहीं है। यह क़ानूनन सही नहीं है।
बताते चलें कि Allahabad High-court ने सोमवार को उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि CAA हिंसा के आरोपियों के बैनर–पोस्टर 16 मार्च से पहले हटाए जाएं। हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपियों के पोस्टर लगाना उनकी निजता में सरकार का गैरजरूरी दखल है।चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा की बेंच ने कहा कि यूपी सरकार हमें यह बता पाने में नाकाम रही कि चंदआरोपियों के पोस्टर ही क्यों लगाए गए, जबकि यूपी में लाखों लोग गंभीर आरोपों का सामना कर रहे हैं। बेंच ने कहा कि चुनिंदा लोगोंकी जानकारी बैनर में देना यह दिखाता है कि प्रशासन ने सत्ता का गलत इस्तेमाल किया है।
राज्य सरकार ने 19 दिसंबर को लखनऊ में हुई हिंसा के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचने के लिए 57 लोगों को दोषी मानाथा और रिकवरी के लिए इनके पोस्टर लगाए थे। कोर्ट ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लिया था और रविवार को भी सुनवाई की थी।
हाईकोर्ट ने रविवार को सुनवाई के दौरान कहा था– कथित CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों के पोस्टर लगाने की सरकार की कार्रवाई बेहदअन्यायपूर्ण है। यह संबंधित लोगों की आजादी का हनन है।ऐसा कोई कार्य नहीं किया जाना चाहिए, जिससे किसी के दिल को ठेसपहुंचे। पोस्टर लगाना सरकार के लिए भी अपमान की बात है और नागरिक के लिए भी। किस कानून के तहत लखनऊ की सड़कों परइस तरह के पोस्टर लगाए गए? सार्वजनिक स्थान पर संबंधित व्यक्ति की इजाजत के बिना उसका फोटो या पोस्टर लगाना गलत है। यहRight Of Privacy का उल्लंघन है।
श्रवण राम दारापुरी: पूर्व आईपीएस दारापुरी ने कहा– फैसले से साफ हो गया कि देश में योगी सरकार की अराजकता का नहीं, कानूनऔर संविधान का राज चलेगा। लोकतंत्र की जीत हुई, तानाशाही की हार हुई है। पोस्टर लगने के बाद हम लोगों की जान को खतरा है।अगर हमारी जान को कोई भी हानि होती है तो इसकी जिम्मेदार उत्तर प्रदेश सरकार होगी।
सदफ जफर: कांग्रेस नेता व एक्ट्रेस सदफ ने कहा, “ये संविधान और कानून की जीत है। कोर्ट का साफ संदेश है कि राज्य हो या देश, यह तानाशाही से नहीं चलेंगे। देश संविधान और कानून से चलेगा। यह ऐतिहासिक फैसला एक नजीर है कि किसी की आवाज कोदबाया नहीं जा सकता है।
दीपक मिश्रा कबीर: समाजसेवी दीपक मिश्र ने कहा– सरकार ने जो किया था, वह सरासर गलत है। इसकी पुष्टि हाईकोर्ट ने भी अपनेफैसले में कर दी है। कोर्ट का फैसला देश में संविधान और कानून का राज साबित करता है।
मोहम्मद शोएब: रिहाई मंच के प्रमुख मोहम्मद शोएब ने कहा, “सरकार ने सार्वजनिक तौर पर हमारी निजता का हनन किया है। इसकेबाद अगर किसी की जानमाल को खतरा होगा, इसकी जिम्मेदारी सरकार की होगी।‘ रिहाई मंच पर मुस्लिम संगठन पीएफआई से जुड़ेहोने का आरोप है।
19 दिसंबर, 2019 को जुमे की नमाज के बाद लखनऊ के चार थाना क्षेत्रों में हिंसा फैली थी। ठाकुरगंज, हजरतगंज, कैसरबाग औरहसनगंज में तोड़फोड़ करने वालों ने कई गाड़ियां भी जला दी थीं। राज्य सरकार ने नुकसान की भरपाई प्रदर्शनकारियों से कराने की बातकही थी। इसके बाद पुलिस ने फोटो–वीडियो के आधार पर 150 से ज्यादा लोगों को नोटिस भेजे। जांच के बाद प्रशासन ने 57 लोगों कोसार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का दोषी माना। उनसे 88 लाख 62 हजार 537 रुपए के नुकसान की भरपाई कराने की बात कहीगई। लखनऊ के डीएम अभिषेक प्रकाश ने कहा था– अगर तय वक्त पर इन लोगों ने जुर्माना नहीं भरा, तो इनकी संपत्ति कुर्क की जाएगी।
होर्डिंग में शामिल लोग बोले– मॉब लिंचिंग का खतरा
जिन लोगों की तस्वीरें होर्डिंग में लगाई गई हैं उनमें पूर्व आईपीएस एसआर दारापुरी, एक्टिविस्ट सदफ जफर और दीपक कबीर भीशामिल हैं। कबीर ने कहा– सरकार डर का माहौल बना रही है। होर्डिंग में शामिल लोगों की कहीं भी मॉब लिंचिंग हो सकती है। दिल्लीहिंसा के बाद माहौल सुरक्षित नहीं रह गया है। सरकार सबको खतरे में डालने का काम कर रही है।