New Delhi : मैं तब 2-3 साल था। भूख लगने पर रोता तो मेरी माँ के शराब दुकान पर पीने बैठे लोगों के रंग में भंग पड़ता। कुछ लोगमुझे चुप कराने के लिए मेरे मुंह में शराब की एक–दो बूंद डाल देते। दूध की जगह दादी भी एक–दो चम्मच शराब पिला देती और मैं भूखाहोते हुए भी चुपचाप सो जाता। कुछ दिनों में आदत पड़ गई। यह बात याद करते करते Maharashtra के धुले जिले के Dr Rajendra Bharud के आँखों में पानी आ जाता है। उनके जीवन की कहानी उन तमाम लोगों के लिए मिसाल है, जो हर चीज के लिए सुविधाएं नहींहोने का रोना रोते हैं।
Dainik Bhaskar की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ डा. राजेन्द्र भरुड़ बताते हैं – मैं गर्भ में था, तभी पिता गुजर गए। मुझे पिता की फोटो देखनेका भी सौभाग्य नहीं मिला। कारण– पैसों की तंगी। हाल यह था कि एक वक्त का खाना भी बमुश्किल जुटा पाता था। गन्ने के खरपतवारसे बनी छोटी सी झोपड़ी में हमारा 10 लोगों का परिवार रहता था। जब मैं गर्भ में था, तब लोग मां को सलाह देते थे कि गर्भपात करवालो। एक लड़का और लड़की तो है। तीसरे बच्चे की क्या जरूरत? क्या खिलाओगी? लेकिन, मां ने मुझे जिंदा रखा। मैं महाराष्ट्र के धुलेजिले के आदिवासी भील समाज से हूं।
बचपन में मेरे चारों तरफ अज्ञान, अंधविश्वास, गरीबी, बेरोजगारी और भांति–भांति के व्यसनों का दंश था। मां कमलाबहन मजदूरी करतीथीं। 10 रु. मिलते थे। इससे जरूरतें कैसे पूरी होती? इसलिए मां ने देसी शराब बेचनी शुरू की। मैं तब 2-3 साल का था। भूख लगने पररोता तो शराब पीने बैठे लोगों के रंग में भंग पड़ता। कुछ लोग तो चुप कराने के लिए मेरे मुंह में शराब की एक–दो बूंद डाल देते। दूध कीजगह दादी भी एक–दो चम्मच शराब पिला देती और मैं भूखा होते हुए भी चुपचाप सो जाता। कुछ दिनों में आदत पड़ गई।‘
राजेंद्र ने बताया कि सर्दी–खांसी हो तो दवा की जगह दारू मिलती। जब मैं चौथी कक्षा में था, घर के बाहर चबूतरे पर बैठकर पढ़ने बैठजाता था। लेकिन, पीने आने वाले लोग कोई न कोई काम बताते रहते। पीने वाले लोग स्नैक्स के बदले पैसे देते थे। उसी से किताबेंखरीदीं। 10वीं 95% अंकों के साथ पास की। 12वीं में 90% लाया। 2006 में मेडिकल प्रवेश परीक्षा में बैठा। मेरिट के तहत मुंबई के सेठजीएस मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिला। 2011 में कॉलेज का बेस्ट स्टूडेंट बना। उसी साल UPSC का फॉर्म भरा और IAS बना।लेकिन, मेरी मां को पहले कुछ पता नहीं चला। जब गांव के लोग, अफसर, नेता बधाई देने आने लगे तब उन्हें पता चला कि बेटा कलेक्टरकी परीक्षा में पास हो गया है। वह सिर्फ रोती रहीं।
राजेंद्र ने कहा – एक दिन शराब पीने घर आने वाले एक व्यक्ति ने कहा कि पढ़–लिखकर क्या करेगा? अपनी मां से कहना कि लड़का भीशराब ही बेचेगा। भील का लड़का भील ही रहेगा। मैंने ये बात मां को बताई। तब मां ने संकल्प किया कि बेटे को डॉक्टर–कलेक्टरबनाऊंगी। लेकिन, वह नहीं जानती थी कि UPSC क्या है। लेकिन, मैं इतना जरूर मानता हूं कि आज मैं जो कुछ भी हूं, मां के विश्वासकी बदौलत ही हूं।