New Delhi: विपरीत परिस्थिति कम उम्र में भी लोगों को जिम्मेदार बना देती है। परेशानियां फूल जैसे मासूमों को भी चट्टान जैसा बना देती है। मजबूरियां इंसान को जीना सिखा देती है। लखनऊ के घंटा घर के पास रहने वाले 12 साल के मुदासीर की कहानी बताती है कि परिस्थितियां विपरीत हों तो कैसे एक मासूम बच्चे का कंधा जिम्मेदारियों तले दब जाता है। मुदसीर के भी कितने सपने होंगे लेकिन उसने अपने हर सपने को मार दिया सिर्फ इसलिए ताकि वो कमाई कर अपना घर चला सके। उनकी मासूम आंखों में खेलने की चाह से ज्यादा परिवार की चिंता है।
जिस उम्र में बच्चे खेल कूद और मस्ती करते हैं, उस उम्र में मुदासीर अपने पिता का सहारा बनकर घर की जिम्मेदारियां उठाए हुए हैं। पिता की तबियत खराब रहने की वजह से वो काम नहीं कर पाते। ऐसे में मुदसीर ने ही मात्र 12 साल की उम्र में अपने छोटे कंधों पर परिवार की जिम्मेदारी उठा ली है। मुदासीर अपना बचपन नहीं छोड़ना चाहता था लेकिन हालात कुछ ऐसे बने कि मात्र 12 साल की उम्र में ये बच्चा इतना बड़ा हो गया कि घर की जिम्मेदारियां संभाल रहा है।
मुदासीर इमली बेचने का काम करता है। वह रोजाना पिक्चर गैलरी के पास इमली का ठेला लगाता है। इमली बेच कर वह दिन भर में 300 से 400 रुपए की कमाई कर लेता है। मुदसीर ने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा। वह घर पर ही रहता था लेकिन जब उसने देखा कि उसके पिता की तबीयत खराब होने की वजह से घर चलाने में मुश्किल आ रही है तो उसने घर में खाली बैठने और इधर-उधर घूमने के बजाय काम कर के कुछ पैसे कमाने के बारे में सोचा।