डिबिया: कोरोना की कालिख में उम्मीदों का उजाला

डिबिया: राशन कार्ड से जो मिटटी का तेल मिलाता है, सर्वहारा के घर में उसी से जलता है ये डिबिया. कभी कभी करूवा तेल का भी जलाते हैं. घर में खाली पड़ी शीशी से तो कभी मिटटी से मड़ के लोक-जन घर के लिए ‘डिबिया’ बना लेते हैं. इसी की लौ में घर में खाना बनता है, बच्चा लोग पढता है और रात को बाहर निकलना हो तो यही डिबिया टोर्च का भी काम करता है. जिस ताखा पर रखा जाता है, इसकी लौ के निकले कालिख से ताखा भी करिया रंग का हो जाता है.

कई बार शहर से लौटे लौंडे इसी ताखा का फोटो खींचकर इसको रोमांचित तरीके से पेश करते हैं. खैर आजकल उसी गाम देहात की लड़की-लड़के इसकी लौ पकड़ कर चलने की कोशिश कर रहे हैं. बंदी के तुरंत बाद मधेपुरा जिले के कुछ युवाओं का एक समूह पका हुआ भोजन जरुरतमंदों तक पहुँचाने का काम शुरू करते हैं. उनके पास जो भी साधन उपलब्ध थे, उसी में कई दिनों तक राहत कार्य को अंजाम देते रहे. इस शुरुवात को परिवार के कई सदस्यों और पारिवारिक मित्रों ने, खास कर महिलाओं ने, अपने सहयोग से आगे बढ़ाया और अब ये डिबिया समूह के नाम से जरूरतमंद परिवारों को राशन की सुविधा उपलब्ध करा रहे हैं.

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डिबिया समूह अलग अलग गाँवों, टोला, वार्ड मुहल्लों और हाशिये पर बसे परिवारों तक जाकर पहले गरीब परिवारों की सूचि तैयार करती है फिर उस परिवार को राशन मुहैया करती है. इस समूह ने अभी तक जिले के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों जैसे कि निहालपट्टी, मुरहो, हनुमान नगर, यादव नगर, पररिया, तुनियाही तथा शहर स्थित विभिन्न स्थानों जैसे की सिंगेश्वर और उसके आस पास के क्षेत्र और शहर के कई वार्डों का दौरा किया है और जरूरत मंदों को राशन मुहैया कराया है.

यह समूह जरुरतमंदों की सूचि उसी गाँव और क्षेत्र के स्थानीय निवासियों द्वारा बनवाती है और स्थानीय ग्रामीणों के निर्देशों पर राशन का वितरण करती है. राशन समाग्री में ‘डिबिया’ चावल, दाल, आलू, नमक, सरसों तेल, हल्दी, आलू, प्याज, साबुन, चीनी आदि सामानों का वितरण करती है.

डिबिया की इस अब तक की छोटी यात्रा में मिले अनुभव, लोगों से मिलना जुलना, अपने इलाके को और करीब से देखना ही असल शिक्षा है. इन्ही कुछ अनुभवों को ‘डिबिया’ ने अपने फेसबुक पेज पर साझा भी किया है. इसी यात्रा में टीम की ऐसे लोगों से मुलाकात होती है जो स्तब्ध कर देती है. उदारहरण के तौर पर मधुबनी जिले के तीन परिवार जिनका पेशा खेल दिखाना है वो लॉकडाउन के समय से ही निहालपट्टी (मधेपुरा, बिहार) में फसे हुए हैं. खुले मैदान में टेंट लगा कर रह रहे हैं. ना राशन कार्ड, न ही कोई जमापूंजी और न हीं कोई योजना का लाभ इन तक पहुच पाया.

ऐसे में डिबिया टीम ने सुचना मिलते ही इन परिवारों तक राहत पहुँचाया, जो अब भी तिनके के सामान ही है. आगे, यात्रा के दौरान गाँव के किसी छोर पर जैसे तैसे घर बांधे और नहर किनारे फूस के घरों में रहने वाले और भी कई परिवार मिले, जिनके पास राशन कार्ड नहीं है और वो कटाई के बाद खेतों में गिरे अनाज के दानों को चुनकर ही अपना गुजारा कर रहे हैं. इन्ही में से एक परिवार के मुखिया अपनी बिटिया को गोद में लिए डिबिया टीम से कहते हुए भावुक हो उठे: “महमारी से बचे ले मुह पर कपड़ा ते बेंध लेवेअ, भूख से बचे ले पेट पर केतना दिन कपड़ा बानभें ?” (“महामारी से बचने के लिए मुह पर कपड़ा तो बाँध लेंगे, लेकिन भूख से बचने के लिए पेट पर कब तक कपड़ा बांधेंगे ?”). कमर पर लाल मटमैला गमछा बांधे वह पिता बाबा नागार्जुन की याद दिलाता है: “अन्नब्रह्म ही ब्रह्म है, बाकी सब पिशाच”.

आगे, वितरण के दौरान समूह के सदस्यों ने पाया की ग्रामीणों के पास मास्क और हाथ धोने के लिए साबुन की कमी है. साथ ही ‘देह से दूरी’/ शारीरिक दूरी के मामले में जागरूकता की भी कमी है. जिसके पश्चात ये समूह अब मास्क, डेटोल और साबुन के वितरण पर कार्य कर रही है और आने वाले समय में COBID 19 के विषय में लोगों को और जागरूक करने के लिए भी प्रयासरत है.

डिबिया समूह का ध्यानाकर्षण करने वाला एक पहलु ये भी है कि इस संस्था में बच्चे ही राशन सामग्री की पेकिंग का कार्य करते हैं. अभिभावकों के संरक्षण में ये बच्चे ही राशन समग्री की पेकिंग करते हैं. सृष्टि, श्रीधि, सुरभि, रोनित और आयुषी; ये सभी बच्चे सुबह ऑनलाइन क्लास भी करते हैं और खाली समय में राहत समाग्रि की पेकिंग करते हैं और ‘डिबिया’ की लौ को और तेज़ करते हुए हमे यह बतलाते है कि, यह पीढ़ी हमारे लिए उम्मीद है. सस्ती राजनीति से दूर निश्चलता वाली उम्मीद, जहाँ सिर्फ और सिर्फ मानवता बसती है.

इस प्रयास का हिस्सा बनने के लिए और किसी भी प्रकार से अपना सहयोग देने के लिए डिबिया को जरूर संपर्क करें . डिबिया के युवाओं की टोली में हैं: श्रेयश राज, सुमन सौरभ, रजत राय, तारिक अनवर, मयंक, गौरव कुमार, अभिनव कुमार, रवि कुमार इत्यादि.

  • पल्लवी

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