श्रीबदरीनाथ मंदिर के रावल नहीं आ पाये तो ब्रह्मचारी सरोला ब्राह्मण करेंगे कपाट पूजा

New Delhi : श्रीबदरीनाथ धाम का कपाट इसबार ब्रह्मचारी सरोला ब्राह्मण के जरिये कराया जा सकता है। क्योंकि बदरीनाथ के मुख्य रावल ईश्वरी प्रसाद नम्बूदरी केरल में फंसे हुए हैं। कोई उम्मीद नहीं है कि वे समय से यहां पहुंच पायें। इधर महाराष्ट्र सरकार ने श्रीकेदारनाथ के मुख्य रावल के उत्तराखंड जाने की स्वीकृति दे दी है। अब नजर पीएमओ पर है कि वे चार्टर हेलीकाप्टर से रावल को केदारनाथ भेजते हैं या सड़क मार्ग से।

केदारनाथ के रावल महाराष्ट्र में फंसे हुए हैं। लेकिन उनको महाराष्ट्र सरकार ने उत्तराखंड जाने की अनुमति दे दी है।

आपात स्थिति में किसी ब्रह्मचारी सरोला ब्राह्मण से पूजा कराने की व्यवस्था का जिक्र बाकायदा श्रीबदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के एक्ट में है। 30 अप्रैल को बदरीनाथ के कपाट खुलने हैं। सरकार का पूरा प्रयास है कि बदरीनाथ मंदिर के रावल ईश्वरी प्रसाद नम्बूदरी कपाट खुलने से पहले पहुंच जाएं। अगर वे नहीं पहुंच पाए तो फिर क्या होगा? 1939 के बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर एक्ट में वैकल्पित ब्यवस्था का उल्लेख है। मंदिर समिति के पूर्व मुख्य कार्याधिकारी जगत सिंह बिष्ट ने बताया कि एक्ट 1939 के रावल चेप्टर में लिखा है कि विशेष परिस्थिति में बदरीनाथ धाम में रावल उपलब्ध न रहने पर कोई सरोला ब्रह्मचारी ब्राह्मण वैकल्पिक तौर पर पूजा अर्चना कर सकता है।
विक्रम संवत 1833 (सन 1776) में तत्कालीन रावल रामकृष्ण स्वामी का बदरीनाध धाम में आकस्मिक निधन हो गया था। तब गढ़वाल नरेश प्रदीप शाह ने डिमरी जाति के पंडित गोपाल डिमरी को पूजा के लिए नियुक्त किया। श्रीबदरीनाथ धाम पुष्प वाटिका पुस्तक में पंडित अम्बिका दत्त डिमरी ने भी इसका उल्लेख किया है। केदारनाथ धाम के रावल 1008 भीमा शंकर लिंग के 29 अप्रैल को कपाट खुलने से पूर्व ऊखीमठ पहुंचने की उम्मीद बढ़ गई है। रावल ने बताया कि महाराष्ट्र सरकार ने अनुमति दे दी है।

चार धाम की यात्रा का सड़क मार्ग साफ करते मजदूर

उत्तराखंड देवस्थानाम बोर्ड के CEO रविनाथ रमन ने कहा – केदारनाथ धाम के रावल अभी महाराष्ट्र के नांदेड और श्री बदरीनाथ धाम के रावल केरल में हैं। ऐसे में केंद्र से चार्टेड प्लेन या सड़क मार्ग से लाने की विशेष मंजूरी मांगी गई है। श्री बदरीनाथ धाम की पूजा अर्चना को टिहरी के राजा की ओर से दूसरे विकल्प तय करने की भी व्यवस्था है। उसका भी अध्ययन हो रहा है।
केदारनाथ मंदिर के मुख्य रावल (गुरु) महाराष्ट्र के नांदेड में फंसे हुए हैं। उन्होंने PM Narendra Modi से कपाट खुलने से पहले केदारनाथ पहुंचने की अनुमति मांगी है। रावल भीमाशंकर ने इसके लिए प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। रावल भीमाशंकर ने सड़क मार्ग से उत्तराखंड जाने की इजाजत मांगी है। हालांकि, उन्हें अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है। उत्तराखंड सरकार उन्हें एयरलिफ्ट करने पर विचार कर रही है। उनके साथ मंदिर ट्रस्ट के चार और लोग भी हैं। केदारनाथ को पहनाया जाने वाला सोने का मुकुट भी उन्हीं के पास है। लॉकडाउन के चलते टिहरी राजघराने के सदस्यों का पहुंचना भी मुश्किल हो रहा है, परंपरा के मुताबिक कपाट खुलते वक्त उनका होना भी जरूरी है।
मंदिर के नजदीक 7 फीट गहराई तक बर्फ जमी है। किसी भी तरह की मशीनें यहां आ नहीं सकतीं, इसलिए गेंती-फावड़े से ही धीरे-धीरे बर्फ हटाई जा रही है। केदारनाथ पैदल मार्ग से बर्फ हटाने का कार्य में 150 श्रमिक जुटे हैं। इसके अलावा 32 श्रमिकों की एक टीम केदारनाथ पहुंची। यह दल केदारनाथ में बर्फ हटा रही है।


29 अप्रैल को धाम के कपाट खोले जाने हैं। ऐसे में प्रशासन का प्रयास है कि मार्ग पर 15 अप्रैल तक आवाजाही शुरू हो जाये। हालांकि अभी दो तीन दिनों का काम बाकी है। धाम के कपाट खुलने से पहले केदारनाथ पैदल मार्ग से बर्फ हटाना किसी चुनौती से कम नहीं है। केदारनाथ के प्रमुख पड़ाव गौरीकुंड से केदारनाथ तक 16 किलोमीटर लंबा पैदल मार्ग है। अब तक करीब 15 किलोमीटर हिस्से से बर्फ हटा ली गई है।
29 अप्रैल को सुबह 6 बजे से केदारनाथ के कपाट खुलने हैं, जबकि इससे पहले 26 अप्रैल को यमनोत्री गंगोत्री के कपाट खुलेंगे। हालांकि, सरकार ने इस बार चारधाम मंदिरों के दर्शन ऑनलाइन करवाने का फैसला लिया है। इस पर स्थानीय लोगों और पुजारियों ने आपत्ति जताई है। केदारनाथ के रावल महाराष्ट्र या कर्नाटक और बद्रीनाथ के केरल से होते हैं। ये लोग यहीं से हर साल यात्रा के लिए आते हैं। परंपरा के मुताबिक केदारनाथ के रावल खुद पूजा नहीं करते, लेकिन इन्हीं के निर्देश पर पुजारी मंदिर में पूजा करते हैं। वहीं, बद्रीनाथ के रावल के अलावा कोई और बद्रीनाथ की मूर्ति नहीं छू सकता। आदि शंकराचार्य के वक्त से चली आ रही परंपरा के मुताबिक, कपाट खुलते वक्त मुख्य पुजारी का वहां मौजूद रहना जरूरी है। केदारनाथ का स्वर्ण मुकुट इनके पास ही रहता है और पारंपरिक कार्यक्रमों में ये उसे पहनते भी हैं, जिसे कपाट खुलने पर केदारनाथ को पहनाया जाता है। कपाट खुलते वक्त रावल का वहां मौजूद रहना जरूरी है। केदारनाथ का स्वर्ण मुकुट इनके पास ही रहता है और पारंपरिक कार्यक्रमों में ये उसे पहनते भी हैं, जिसे कपाट खुलने पर केदारनाथ को पहनाया जाता है।

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